Ashtami and Navami Havan Vidhi : चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri 2024) का त्योहार लोग अधिक धूमधाम के साथ मनाते हैं। इस बार चैत्र नवरात्र की शुरुआत 09 अप्रैल से हुई है और इसका समापन 17 अप्रैल को होगा। Ashtami and Navami Havan Vidhi
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नवरात्र (Navratri) के नौ दिनों तक, मां दुर्गा के विभिन्न रूपों को पूजा और व्रत किया जाता है। इसके बाद, अष्टमी और नवमी तिथि पर नौ कन्या को पूजना जाता है। इस पूजन को कंजक पूजन कहा जाता है। कन्या पूजन में हवन भी होता है। 16 अप्रैल को अष्टमी है और 17 अप्रैल को नवमी है। मान्यता है कि अष्टमी और नवमी तिथि पर सही प्रकार से हवन करने से साधक को जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं कि अष्टमी और नवमी पर हवन करने की विधि के बारे में।
हवन सामग्री लिस्ट (Havan Samgri List)
हवन के लिए आपको एक गोला या सूखा नारियल, मुलैठी की जड़, कलावा, एक हवन कुंड, लाल रंग का कपड़ा, अश्वगंधा, ब्राह्मी और सूखी लकड़ियां, चंदन की लकड़ी, बेल, नीम, पीपल का तना, आम की लकड़ी, छाल, गूलर की छाल, पलाश शामिल हैं। इनके अतिरिक्त काला तिल, कपूर, चावल, गाय का घी, लौंग, लोभान, इलायची, गुग्गल, जौ और शक्कर।
अष्टमी और नवमी हवन विधि (Ashtami and Navami Havan Vidhi)
अष्टमी या नवमी तिथि पर ब्रह्म मुहूर्त में उठें और मां दुर्गा का ध्यान करें। इसके बाद स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें। अब हवन कुंड बनाएं या आप मार्किट से बना हुआ हवन कुंड भी ला सकते हैं। देशी घी का दीपक और धूप जलाएं। कुंड पर स्वास्तिक बनाकर विधिपूर्वक मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना करें। इसके बाद हवन कुंड में आम की लकड़ी से अग्नि जलाएं और अग्नि में सामग्री, शहद समेत आदि चीजों की मंत्रों के जाप के साथ की आहुति दें। इसके बाद जीवन में सुख और शांति के लिए मां दुर्गा से प्रार्थना करें।
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हवन करते समय इन मंत्रों के साथ दें आहुति
ऊं आग्नेय नम: स्वाहा
ऊं गणेशाय नम: स्वाहा
ऊं गौरियाय नम: स्वाहा
ऊं नवग्रहाय नम: स्वाहा
ऊं दुर्गाय नम: स्वाहा
ऊं महाकालिकाय नम: स्वाहा
ऊं हनुमते नम: स्वाहा
ऊं भैरवाय नम: स्वाहा
ऊं कुल देवताय नम: स्वाहा
ऊं न देवताय नम: स्वाहा
ऊं ब्रह्माय नम: स्वाहा
ऊं विष्णुवे नम: स्वाहा
ऊं शिवाय नम: स्वाहा
ऊं जयंती मंगलाकाली, भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा
स्वधा नमस्तुति स्वाहा।
ऊं ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु स्वाहा।
ऊं गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वर: गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा।
ऊं शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते।
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