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यूपी में बेसिक शिक्षा में अफसरशाही चरम पर है……यहां मनतंत्र चल रहा है……जी हां,….मनतंत्र इतना की अफसर लेटर होने के बाद भी नियुक्ति नहीं दे रहे……कारण साफ है कि अफसर के मन का कुछ नहीं हुआ है…..अफसर का मन बगैर रिश्वत लिए नियुक्ति न दिए जाने का है…….लेकिन मजदूर का बेटा रिश्वत कहां से लाए…..अफसर के मन पर धनतंत्र इतना हावी है कि उसे अपने आलाधिकारियों की भी फिक्र नहीं है……पीड़ित विकलांग है और इसी कोटे में उसका चयन शिक्षक भर्ती में हुआ है…..लेकिन जब पीड़ित अपने नियुक्तिपत्र के लिए शिक्षाविभाग पहुंचता है तो उसे टहलाने का खेल यहां के घाघ बाबू शुरू कर देते हैं…..ये गरीब अभी ही पढ़ने में फेल हो गया…….यह अफसरों के मनतंत्र को नहीं पढ़ सका…..अगर पढ़ लेता तो उसे तकलीफ की चादर ओढ़ कर फुटपाथ पर न सोना पड़ता……
बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों और बाबूओं को किसी भी ऊपर वालों से डर नहीं……..मंत्री, नेता के आदेश भी मन के आधीन काम करता है….मन ने जोर मारा तो काम किनारे लगाया और मन ने जोर नहीं मारा तो काम को ही किनारे कर दिया….बड़े-बड़े इस दफ्तर की चौखट पर आए……चिल्लाए-धमकाए लेकिन अफसर का मन नहीं बदला…….यहां शिक्षा मंत्री की नहीं चलती…..प्रदेश के पॉवरफुल मंत्री की भी नहीं बात मानी गई……डीएम कई बार कह चुके हैं लेकिन यह बावरा मन सुनता ही नहीं…….सरकार कुछ भी कहे लोकतंत्र और जनतंत्र पर मनतंत्र हावी है…….जब नेता और आलाधिकारी खुद परेशान हैं तो आम जन लोगों का क्या….ये अफसर जानते हैं कि कुछ भी हो तंत्र फेल हो जाए पर मन नहीं होना चाहिए……शायद इसे मनबढ़ई कहते हैं..
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