रंगों-उमंगों का त्यौहार रंगोत्सव ब्रज में बसंत पंचती के दिन से शुरु हो जाएगा. भारत तथा विभिन्न देशों में मनाया जाने वाला यह उत्सव अगले पचास दिन तक चलेगा. ब्रज में बसंत पंचमी के दिन मंदिरों में ठाकुरजी को गुलाल अर्पण कर, रसिया, धमार आदि होली गीतों का गायन प्रारम्भ हो जाता है और मंदिरों में दर्शन के लिए आने वाले भक्तों पर भी गुलाल के छींटे डाले जाते हैं.
प्राचीन परम्पराओं के अनुसार, मंदिरों में होली की तैयारियों के साथ ही आम समाज में भी होली का आगाज़ हो जाता है. फाल्गुन शुक्ल पूर्णमासी की रात होली जलाए जाने वाले चौराहों पर डांढ़ा गाड़ दिया जाता है जो इस बात का प्रतीक होता है कि ब्रज में अब होली के पारम्परिक आयोजन शुरु हो गए हैं.
डांढ़ा लकड़ी का एक टुकड़ा होता है जिसके आसपास होलिका सजाई जाती है. इसी दिन, राधारानी के गांव बरसाना में पहली चौपई यानि चौपहिया बैलगाड़ियों पर शोभायात्रा निकाली जाएगी. चौपई के साथ बरसानावासी होली के गीत गाते-नाचते पूरे कस्बे का भ्रमण करेंगे.