Bilkis Bano Case : बिलकिस बानो (Bilkis Bano) सामूहिक दुष्कर्म मामले और 2002 के गुजरात दंगों के दौरान उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के 11 दोषियों की सजा में छूट को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने सोमवार को बड़ा फैसला सुनाया है। Bilkis Bano Case
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गुजरात सरकार (Government of Gujarat) के निर्णय को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने बिलकिस बानो मामले में दोषियों की सजा माफी को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि दोषियों को फिर से जेल जाना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जहां अपराधी के खिलाफ मुकदमा चला और सजा सुनाई गई, वही राज्य दोषियों की सजा माफी का फैसला कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार दोषियों को माफी देने का निर्णय नहीं ले सकती, बल्कि महाराष्ट्र सरकार करेगी। गौरतलब है कि बिलकिस बानो मामले की सुनवाई महाराष्ट्र में हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार का फैसला पलटा
सोमवार को मामले में न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की विशेष पीठ ने फैसला सुनाया। पीठ ने गुजरात सरकार के निर्णय को पलटते हुए कहा कि राज्य ने शक्ति का प्रयोग सत्ता पर कब्जा और सत्ता के दुरुपयोग का एक उदाहरण है। फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि प्लेटो ने कहा था कि सजा सुधार के लिए नहीं बल्कि प्रतिशोध के लिए है। क्यूरेटिव थ्योरी के अनुसार, सजा को दवा से तुलना करते हुए, अगर कोई अपराधी का उपचार संभव है, तो उसे मुक्त कर देना चाहिए। यह सुधारात्मक सिद्धांत का आधार है। पीड़ितों के अधिकार महत्वपूर्ण हैं। महिला सम्मान की योग्य है। क्या महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों को छूट दी जा सकती है? ये वो मुद्दे हैं जो उठते हैं।
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जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “हम योग्यता और स्थिरता दोनों के आधार पर रिट याचिकाओं पर विचार करने के लिए आगे बढ़ते हैं। इस मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद ये बातें सामने आती हैं: 1. क्या पीड़िता द्वारा धारा 32 के तहत दायर याचिका सुनवाई योग्य है? 2. क्या छूट के आदेश पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिकाएं मानने योग्य हैं।? 3. क्या गुजरात सरकार छूट आदेश पारित करने में सक्षम थी? 4. क्या दोषियों को छूट का आदेश कानून के अनुसार दिया गया?
याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सभी दोषियों की सजा में मिली छूट को रद्द कर दिया। गुजरात सरकार ने पिछले साल मामले में 11 दोषियों को रिहा किया था। अब कोर्ट के फैसले के बाद सभी 11 दोषियों को वापस जेल जाना होगा।
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने 11 दिन की सुनवाई के बाद दोषियों की सजा में छूट को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर पिछले साल 12 अक्टूबर को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।
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सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखते हुए केंद्र और गुजरात सरकार को 16 अक्टूबर तक 11 दोषियों की सजा में छूट संबंधी मूल रिकॉर्ड जमा करने का निर्देश दिया था। अदालत ने पिछले साल सितंबर में मामले की सुनवाई करते हुए पूछा था कि क्या दोषियों को माफी मांगने का मौलिक अधिकार है।
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शीर्ष अदालत ने पहले की सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार से कहा था कि राज्य सरकारों को दोषियों को सजा में छूट देने में ‘‘चयनात्मक रवैया’’ नहीं अपनाना चाहिए और प्रत्येक कैदी को सुधार तथा समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर दिया जाना चाहिए।
इस मामले में बिलकिस की याचिका के साथ ही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा समेत अन्य ने जनहित याचिकाएं दायर कर सजा में छूट को चुनौती दी है। तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा ने भी दोषियों की सजा में छूट और समय से पहले रिहाई के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने की थी अहम टिप्पणियां
याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र और गुजरात सरकार ने दोषियों की रिहाई के फैसले का बचाव किया था और कहा कि दोषियों ने दुर्लभतम अपराध नहीं किया है और उन्हें सुधार का एक मौका दिया जाना चाहिए। इस पर कोर्ट ने सवाल किया कि रिहाई में छूट का फायदा सिर्फ बिलकिस बानो के दोषियों को क्यों दिया गया? बाकी कैदियों को ऐसी छूट क्यों नहीं दी गई? साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या दोषियों को माफी मांगने का मौलिक अधिकार है? इस पर दोषियों के वकील ने माना कि दोषियों को माफी मांगने का मौलिक अधिकार नहीं है। गुजरात में साल 2002 में हुए दंगों के दौरान उग्र भीड़ ने बिलकिस बानो के घर में घुसकर सात लोगों की हत्या कर दी थी। इस दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप किया गया।