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वैसाख शुक्ल त्रयोदशी के उपलक्ष्य में शुक्र प्रदोष पर्व मनाया जाएगा। परमेश्वर शिव को समर्पित त्रयोदशी तिथि सभी दोषों का नाश करती है अतः इसे प्रदोष कहते हैं। भविष्य पुराण अनुसार त्रयोदशी के स्वामी कामदेव हैं व इसके अमृत कला का पान कुबेर करते हैं। इस तिथि का विशेषण जय-करा है।
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शास्त्रनुसार इस दिन समस्त दिव्यात्माएं अपने सूक्ष्म स्वरूप में शिवलिंग में समा जाते हैं। इस दिन प्रदोषकाल में शिवलिंग के दर्शन मात्र से सर्व जन्मों के पाप नष्ट होते हैं व बिल्वपत्र चढ़ाकर दीप जलाने से अनेक पुण्य प्राप्त होते हैं। वार अनुसार प्रदोष पूजन करने का शास्त्रीय विधान है।
शुक्र प्रदोष के बारे में छंद कहा गया है “अभीष्ट सिद्धि की कामना, यदि हो हृदय विचार। धर्म, अर्थ, कामादि, सुख, मिले पदार्थ चार”।
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दांपत्य सुख में आ रही कमी दूर होती है शुभ न
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शुक्र प्रदोष की पौराणिक कथा अनुसार कालांतर में एक धनिक पुत्र का उसके विवाह पश्चात गौना शेष था। धनिक पुत्र ने तुरन्त पत्नी को लाने का निश्चय किया। उस समय शुक्र अस्त थे। ऐसे में विवाह मंगनी व गौनाहीं होता।
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माता पिता व ससुराल पक्ष ने उसे समझाया परंतु धनिक पुत्र नहीं माना। ससुराल ने विवश होकर कन्या की विदाई कर दी। विदाई के बाद ही उसकी बैलगाड़ी का पहिया अलग हो गया व बैल की टांग टूट गई।
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रास्ते में दंपत्ति को डाकुओं ने लूट लिया। दोनों रोते-पीटते घर पहुंचे। वहां धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया। वैद्य ने निरीक्षण के बाद घोषणा की कि धनिक पुत्र तीन दिन में मर जाएगा।एक विद्वान ब्राह्मण ने माता-पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने का परामर्श दिया व पुनः दंपत्ति को ससुराल भेजने को कहा। तथा इन घटनाओं का कारण शुक्रास्त होना बताया।
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धनिक पुत्र ने ब्राह्मण की सलाह मानी व ससुराल पहुंचते ही धनिक पुत्र की हालत ठीक हो गई। महर्षि सूत के अनुसार शुक्र प्रदोष व्रत करने से महादेव से जीवनसाथी की समृद्धि का वर मिलता है। जीवन में ऐश्वर्य प्राप्त होता। दांपत्य सुख में आ रही कमी दूर होती है।
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पूजन विधि
संध्या काल शिवालय जाकर शिवलिंग का विधिवत पूजन करें। गौघृत का दीप करें, चंदन धूप करें, गुलाबी फूल चढ़ाएं, गुलाल चढ़ाएं, इत्र चढ़ाएं, खीर का भोग लगाएं तथा इस विशेष मंत्र का 1 माला जाप करें। पूजन के बाद भोग किसी सुहागन को भेंट करें।
पूजन मुहूर्त: शाम 18:50 से रात 19:50 तक।
पूजन मंत्र: क्लीं काममूर्तये नमः शिवाय क्लीं॥
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