दशकों से चल रही थी मांग
दलितों के समान ही सामाजिक संरचना रखने वाली 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग दशकों से चल रही थी, समय-समय पर सरकारों ने इसके प्रयास भी किए लेकिन मौका देखते ही योगी सरकार ने इसे भी अपने पक्ष में भुना लिया.
अब दूसरी दलित जातियों के साथ-साथ 17 अति पिछड़ी जातियां जिसमें कहार, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, कश्यप, बिंद, प्रजापति, धीवर, भर, राजभर, ढीमर, बाथम, तुरहा, मांझी, मछुआ और गोड़िया अब अनुसूचित जाति का सर्टिफिकेट प्राप्त कर सकती हैं.
कुल आबादी की लगभग 14 फीसदी है
माना जाता है कि इन 17 अति पिछड़ी जातियों की आबादी कुल आबादी की लगभग 14 फीसदी है जो एक बहुत बड़ा वोट बैंक है और इसने पिछले चुनाव में बीजेपी को एकमुश्त वोट भी किया था. अति पिछड़े होने की वजह से यह न तो पिछड़ी जातियों का लाभ उठा पा रहे थे और न ही दलितों का. ऐसे में इन जातियों के अनुसूचित जाति में शामिल होने से इसका फायदा इन्हें होगा.दरअसल, अनुसूचित जाति का दर्जा देने का आंदोलन पिछले कई सालों से चल रहा था.
अदालत ने इस प्रस्ताव पर लगाई अपनी रोक हटा दी और इन 17 जातियों के अनुसूचित जाति का सर्टिफिकेट पाने का रास्ता साफ हो गया. अपने इस कदम से बीजेपी ने ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के एजेंडे को भी छीन लिया है.