Central Pollution Control Board report : कानपुर में गंगा का पानी आचमन लायक नहीं बचा। इस साल फरवरी में यूपी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने इसको लेकर रिपोर्ट दी है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (Central Pollution Control Board report) की रिपोर्ट बताती है, ये नदियां अब जीवनदायिनी न होकर बीमारियां बांट रही हैं। इसमें प्रदेश की कुल 13 नदियों को शामिल किया गया। सबसे ज्यादा 40 नमूने गंगा नदी के हैं। Central Pollution Control Board report
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कानपुर में गंगा का पानी न पीने लायक, न नहाने लायक
कानपुर, कन्नौज, मिर्जापुर, सोनभद्र, वाराणसी, गाजीपुर और बलिया…ये वो शहर हैं, जहां गंगा का पानी इस्तेमाल करने लायक नहीं है। न तो पीने के लिहाज से सही है और न ही इससे नहाया जा सकता है। कानपुर में नानामऊ गंगा ब्रिज, भैरव घाट, डी एस शुक्ला गंज, गोला घाट, जाजमऊ ब्रिज, जाना गांव और पुराना राजापुर जैसे स्पॉट हैं। यहां पानी इंसानों के पीने और नहाने लायक नहीं है। इसी तरह वाराणसी में गोमती नदी में मिलने से पहले भुसावल और जमनिया गंगा ब्रिज का पानी न आचमन करने लायक है, न ही नहाने लायक।
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) के प्रोफेसर डॉ. बीडी त्रिपाठी ने गंगा नदी पर रिसर्च किया है। वह कहते हैं, जिस पानी में मानक से ज्यादा डिजॉल्व ऑक्सीजन और बैक्टीरिया होंगे वो किसी इस्तेमाल के लायक नहीं रहेगा। प्रोफेसर त्रिपाठी सरकार की रिपोर्ट को लेकर कहते हैं- पूरी गंगा ही D या E कैटेगरी में है, ऐसा नहीं है। जिन जगहों से ये सैंपल लिए गए हैं, वहां गंदगी ज्यादा है।
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गंगा में प्रदूषण के लिए खुला सीवेज और इंडस्ट्रियल वेस्ट जिम्मेदार
कानपुर का चमड़ा उद्योग गंगा में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार बताया जाता है। चमड़ा बनाने वाली फैक्ट्रियों से केमिकल वेस्ट किसी न किसी रास्ते गंगा नदी में पहुंचता है। पिछले कुछ सालों में नमामि गंगे परियोजना के तहत फैक्ट्रियों से निकलने वाले कचरे को ट्रीटमेंट के बाद गंगा में गिराने की कवायदें की गई हैं।
वासाणसी में गंगा आस्था का प्रतीक है। इसके बावजूद शहर का सीवेज, आसपास की फैक्ट्रियों का वेस्ट और पूजा-पाठ सामग्री सीधे गंगा में जाता रहा है।
2014 के बाद नमामि गंगे परियोजना के तहत यहां रामनगर, दीनापुर और भगवानपुर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का भी निर्माण किया गया है। इस साल तक गंगा में बाई तरफ से गिरने वाले 23 नालों में से 22 बंद किए जा चुके हैं।
5 कैटेगरी में बांटा है पॉल्यूशन
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने नदियों को स्वच्छता के आधार पर 5 कैटेगरी में बांटा है। इसमें कैटेगरी A, B, C, D और E है। किसी नदी का पानी अगर A कैटेगरी में है, तो इसका मतलब है कि बिना किसी तरह के प्यूरिफिकेशन के पिया जा सकता है।
अगर B कैटेगरी है, तो सिर्फ नहाया जा सकता है। C में है तो प्यूरिफाई करके पिया जा सकता है। सबसे खराब कैटेगरी D और फिर E है। यानी इस कैटेगरी का पानी न इंसानों के इस्तेमाल के लायक बचता है न जानवरों के। E कैटेगरी का पानी तो सिंचाई के लिए भी नहीं इस्तेमाल किया जा सकता है।