Chhaava: बॉक्स ऑफिस पर बड़ी-बड़ी फिल्मों को धूल चटाने वाली विकी कौशल की ऐतिहासिक फिल्म ‘छावा’ अब विवादों में घिर गई है. Chhaava
विकी कौशल (Vicky Kaushal) की फिल्म ‘छावा’ में ये दिखाया गया है कि कैसे छत्रपति संभाजी महाराज के साथ उनके अपनों ने ही गद्दारी की और इस गद्दारी की वजह से औरंगजेब उन्हें बंदी बनाने में कामयाब हुआ. हालांकि फिल्म में जिस गणोजी और कान्होजी को गद्दार बताया गया है, उनका परिवार इस कहानी को गलत बता रहा है.
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100 करोड़ रुपये का मानहानि का दावा
दरअसल मराठा सरदार गणोजी और कन्होजी शिर्के के वंशजों ने फिल्म के निर्माताओं पर उनके पूर्वजों को गलत तरीके से दिखाने का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि यह फिल्म उनके परिवार की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाती है और उन्होंने निर्माताओं के खिलाफ 100 करोड़ रुपये का मानहानि का दावा दायर करने की धमकी दी थी.
लक्ष्मण उतेकर ने मांगी माफी
लोकल न्यूज पोर्टल पुढारी के अनुसार, नोटिस मिलने के बाद फिल्म के निर्देशक लक्ष्मण उतेकर ने ये कहते हुए माफी मांगी है कि उन्होंने फिल्म में किसी भी उपनाम का इस्तेमाल नहीं किया है. अब एनसीपी के विधायक अमोल मिटकारी ने भी इस फिल्म पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि इस फिल्म में सोयराबाई को खलनायक के रूप में गलत तरीके से पेश किया गया है.
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विकी कौशल की फिल्म छावा भले ही ‘छत्रपति संभाजी महाराज’ के बारे में हो, लेकिन ये फिल्म मशहूर मराठी राइटर शिवाजी सावंत के उपन्यास ‘छावा’ के रेफरेंस के साथ बनाई गई है और इस नॉवेल में जो लिखा है, वही निर्देशक लक्ष्मण उतेकर ने अपनी फिल्म में दिखाया है. दरअसल छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके बेटे छत्रपति संभाजी महाराज को आज भी महाराष्ट्र की संस्कृति और गौरव का प्रतीक माना जा जाता है. आज भी यहां के लोगों के दिलों में इस पिता-पुत्र के लिए खास स्थान है. यही वजह है कि हमारे पूर्वजों ने संभाजी महाराज के साथ गद्दारी की, ये इल्जाम कोई भी परिवार अपने सिर पर नहीं लेना चाहता. शिर्के परिवार उनमें से ही एक है. ‘छावा’ की वजह से फिर एक बार ये विवाद छिड़ गया है कि आखिर किसने संभाजी महाराज के साथ गद्दारी की और वो कौन था, जिसकी वजह से संभाजी महाराज को औरंगजेब ने पकड़ लिया?
मेरी फिल्म के निर्देशक लक्ष्मण उतेकर से बात हुई है, उन्होंने माफी भी मांगी, लेकिन मैंने उनसे ये गुजारिश की है कि इस फिल्म से वो हिस्सा हटाया जाए, जो हमें गलत दिखाता है.
आगे भूषण शिर्के ने कहा है कि आज भी भोसले (शिवाजी महाराज का परिवार) और शिर्के खानदान के बीच रिश्ते होते हैं, अगर हम छत्रपति के साथ कुछ गलत करते, तो दोनों परिवारों के बीच सब कुछ बिगड़ जाता. आज हमारे बच्चे जब स्कूल जाएंगे, तब उन्हें भी पूछा जाएगा कि हम गद्दार थे क्या? यही वजह है कि हम चाहते हैं कि इस फिल्म से हमारी बदनामी करने वाली बातें हटाई जाएं.
क्या कहते हैं इतिहासकार?
इतिहास शोधकर्ता इंद्रजीत सावंत का कहना है कि गणोजी शिर्के और कान्होजी शिर्के की बात करें तो वे दोनों संभाजी महाराज पर हुए हमले के पहले ही औरंगजेब से मिल गए थे. कान्होजी पहले गए थे और संभाजी महाराज के साले और उनकी बहन के पति गणोजी कान्होजी के कुछ समय बाद औरंगजेब की फौज में शामिल हो गए थे. इस घटना के कई साल बाद यानी 1689 में संभाजी महाराज को मुगलों ने पकड़ लिया था. ‘छावा’ फिल्म में कहीं पर भी गणोजी और कान्होजी का उपनाम नहीं लिया गया है. लेकिन फिल्म में ये जरूर दिखाया गया है कि संभाजी महाराज को पकड़ने में इन दोनों का बहुत बड़ा हाथ था. फिल्म में ये भी दिखाया गया है कि शेख निजाब मुकर्रबखान कोल्हापुर में था और फिर स्वराज्य के ये दो गद्दार वहां से अम्बा घाट से होते हुए संगमेश्वर तक इस खान को लेकर गए. फिल्म में दिखाया गया ये सीन गणोजी शिर्के पर किया गया अन्याय है. वो मुगलों से जरूर मिले होंगे, लेकिन अपनी ही बहन के सुहाग को इस तरह से मुगलों को सौंपने की बेशर्मी उस समय के मराठाओं में नहीं थी.
इस बारे में आगे बात करते हुए इंद्रजीत सावंत कहते हैं कि फिल्म में जो दिखाया गया है, इसके विरुद्ध इतिहास से एक बड़ा सबूत हमारे पास है और वो ये है कि इस बड़ी फितूरी के बारे में फ्रेंच भाषा में कुछ लिखा गया है. दरअसल संगमेश्वर के नजदीक राजपुर में फ्रेंच लोगों की छोटी सी फैक्ट्री थी, राजपुर तब एक बड़ा बंदरगाह था. उस समय पांडिचेरी का प्रमुख था, फ्रांसिस्को मार्टिन, उसे इस फैक्ट्री से एक खबर मिली थी और उसने वो खबर अपनी डायरी में लिखकर रखी थी. उन्होंने फ्रेंच में लिखा था. संभाजी महाराज फरवरी में पकड़े गए थे और उन्होंने इस बारे में मार्च के आस-पास अपनी डायरी में लिखा था. इसका हिंदी में अनुवाद ये है कि संभाजी महाराज को उनके सह-कारकुन ने कवि कलश के प्रति उनकी नफरत की वजह से धोखा दिया. भले ही इस डायरी में उस इंसान का नाम नहीं लिखा था. लेकिन अन्नाजी दत्तो उस समय वो जिम्मेदारी निभा रहे थे. उन्हें संभाजी महाराज ने हाथी के पैरों के नीचे डाल दिया था, लेकिन उनके निधन के बाद उनके कई साथी वहीं मौजूद थे, संगमेश्वर का कुलकर्णी पद जहां महाराज पकड़े गए थे, वो अन्नाजी दत्तों के पास था. हालांकि संभाजी महाराज को बंदी बनाने के पीछे किसका हाथ था, इसे लेकर कई थ्योरी मौजूद हैं.