#ChhathPuja : हिन्दी पंचाग के अनुसार, छठ पूजा का खरना कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है। छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय होता है। उसके बाद दूसरा दिन खरना होता है। खरना को लोहंडा भी कहा जाता है। इसका छठ पूजा (ChhathPuja) में विशेष महत्व होता है। खरना के दिन छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद बनाया जाता है। खरना के दिन भर व्रत रखा जाता है और रात प्रसाद स्वरुप खीर ग्रहण किया जाता है।
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आइए जानते हैं कि इस वर्ष खरना कब है और इसका क्या महत्व है?
छठ पूजा : 20 नवंबर, दिन शुक्रवार को
नहाय-खाय : 18 नवंबर, दिन बुधवार को
छठ पूजा का दूसरा दिन: खरना या लोहंडा
नहाय-खाय के बाद खरना छठ पूजा का मुख्य पड़ाव है। इस साल खरना 19 नवंबर दिन गुरुवार को है। खरना या लोहंडा के दिन सूर्योदय सुबह 06 बजकर 47 मिनट पर होगा, वहीं सूर्यास्त शाम 05 बजकर 26 मिनट पर होगा।
क्या है खरना…
छठ पूजा (ChhathPuja) का व्रत (vrat) रखने वाला व्यक्ति खरना के पूरे दिन व्रत रखता है। उसके बाद रात को खीर खाता है और फिर सूर्योदय के अर्घ्य देकर पारण करने तक ना कुछ खाता है और न ही जल ग्रहण करता है। खरना एक प्रकार से शारीरिक और मानसिक शुद्धि की प्रक्रिया है। इसमें रात में भोजन के बाद अगले 36 घंटे का कठिन व्रत रखा जाता है।
छठ पूजा का प्रसाद
खरना के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। इसमें गुड़ और चावल का खीर बनाया जाता है, साथ ही पूड़ियां, खजूर, ठेकुआ आदि बनाया जाता है। पूजा के लिए मौसमी फल और कुछ सब्जियों का भी प्रयोग होता है। व्रत रखने वाला व्यक्ति इस प्रसाद को छठी मैया को अर्पित करता है। खरना के दिन प्रसाद ग्रहण कर वह व्रत प्रारंभ करता है। छठ पूजा का प्रसाद बनाते समय इस बात का खास ध्यान रखा जाता है कि चूल्हे में आग के लिए केवल आम की लकड़ियों का ही प्रयोग हो।खरना के बाद अगले दिन संध्या का अर्घ्य तथा उसके अगले दिन सूर्योदय का अर्घ्य महत्वपूर्ण होता है।
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