डांट से नहीं, प्यार से बदलें #बच्चे की आदतें
बड़ों का कहना न मानना, असभ्य भाषा का प्रयोग, किसी का भी आदर न करना छोटे #बच्चों की ये आदतें ऐसी हैं जो किसी को भी अच्छी नहीं लगती। टीनएजर्स की ऐसी आदतों को अगर समय पर न सुधारा जाए तो ये आगे चलकर उनकी रुटीन बन जाती है। अगर आप भी नन्हें बच्चे की मां हैं और चाहती हैं कि आपके बच्चे में ऐसी आदतें न पड़े तो इन चार बातों का हमेशा ध्यान रखें।
घर है पहला स्कूल
आमतौर पर 2-3 साल की उम्र में बच्चा बड़ों का कहना मानने शुरु कर देता है और पेंरेंट्स को इसी उम्र में बच्चे में अच्छी आदतें डालनी शुरु कर देनी चाहिए। बच्चे का खिलौने के लिए अपने दोस्त और छोटे भाई- बहन से छीना-झपटी या मार-पीट करना हम उसे छोटा बच्चा समझकर अनदेखा कर देते हैं पर ऐसी आदतें बच्चों में एक उम्र के बाद बदलनी मुश्किल हो जाती है। उसे अपनी खाने- पीने वाली चीजों और खिलौनों को शेयर करना सिखाएं।
बड़ों का सम्मान
बच्चों की शरारतें और प्यारी-प्यारी बातें सभी को अच्छी लगती हैं पर कई बार बातचीत के दौरान वे अपशब्दों का भी प्रयोग करते हैं। दादा-दादी की मदद करना और उनकी बातें ध्यान से सुनना जैसी आदतें बच्चों में छोटी उम्र से ही विकसित करनी चाहिए।
सामाजिक व्यवहार करना सिखाएं
केवल परिवार के साथ ही नहीं बल्कि आसपास के उन सभी लोगों का सम्मान करना सिखाएं जो किसी न किसी भी रूप में हमारे मददगार होते हैं जैसे- आया, नौकर,ड्राइवर, सफाई कर्मचारी और सिक्युरिटी गार्ड आदि। उसे अपनों से बड़ों को जी कहना सिखाएं और रिश्तों की अहमियत समझाएं।
हर बात न मानें बच्चे की
छोटी-छोटी बातों के लिए बच्चों का रूठना और जिद करना उनकी आदत होती है। बच्चा रो-चिल्लाकर किसी चीज़ के लिए जि़द करे तो उस वक्त उसकी कोई भी मांग पूरी न करें। उसे प्यार से शांत करें अगर डिमांड वाजिब है तभी उसकी बात मानें।
ग्राउंड में अनुशासन
रोजाना शाम को बच्चों को अपने साथ पार्क ले जाएं। वहां अगर वह किसी दोस्त को धक्का देकर गिराने या उसके साथ मारपीट जैसी हरकतें करे तो इसे बच्चे की मासूम शरारत समझकर इग्नोर न करें उसे प्यार से मिलजुल कर रहना सिखाएं। बच्चों में दूसरों की तकलीफ समझने की भावना विकसित करें। पार्क में बच्चे झूले पर सबसे पहले बैठने के लिए जिद्द करने लगते हैं। ऐसे में आप उन्हें अपनी बारी का इंतजार करना सिखाएं।