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न करें एेसे मंत्रों का जाप, हो सकता है अनर्थ
अक्सर लोगों को कहते सुना होगा कि बुढ़ापे की उम्र के पास पहुंचते-पहुंचते इंसान को पाठ-पूजा शुरू कर देना चाहिए। इसलिए लोग 50 की उम्र के बाद अधिक पूजा पाठ आदि शुरू कर देते हैं। कुछ लोग हर समय मंत्रों का जाप करते रहते हैं।
सस्वर पाठ बंद कर देना
- आज हम आपको इसी से संबंधित एक बात बताने जा रहे हैं कि 50 की उम्र तक पहुंचकर हर व्यक्ति को मंत्रों का सस्वर पाठ बंद कर देना चाहिए।
- सिर्फ उपांशु अर्थात होंठ हिलते रहें और उच्चारण न हों, या मानस जब अर्थात होंठ भी न हिलें और मन ही मन जप को किया जा सकता है पर मंत्र का उच्चारण करते हुए जप नहीं करना चाहिए।
- वेदों के अनुसार मंत्रों का उच्चारण शुद्धता पूर्वक होना चाहिए। अगर उच्चारण में कहीं भी कोई गड़बड़ी हो तो अनिष्ट और अनर्थ हो सकता है।
- एेसा माना जाता है कि 50 की उम्र के बाद इस तरह से मंत्रों का उच्चारण करते हैं तो वे जल्दी हृदय के रोग से ग्रसित होने लगते हैं।
- जाप से रोग का संबंध है जो लोग साधना उपासना के दौरान कुछ बीजमंत्रों का वाचिक जाप करते हैं, जिससे उन्हें दिक्कत होती है।
- वाचिक जप में होंठो के साथ, जीभ, दांत, तालु, नासिका, मूर्धा और कंठ आदि अंगों का उपयोग भी होता है।उम्र बढ़ने पर ये अंग भी कमज़ोर होने लगते हैं।
- इस कारण मंत्रों का ठीक से उच्चारण नहीं हो पाता। उनमें विकार आने लगता है।
- विकृत उच्चारण से मंत्र कोई लाभ पहुंचाने के बजाय नुकसान देने लगता है।
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