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Dussehra 2024
Dussehra : दशहरा हिंदू धर्म का ये प्रमुख त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। जैसे श्रीराम ने रावण पर जीत पाई थी, ठीक उसी प्रकार दुनिया का हर इंसान अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में जीत हासिल करने का इच्छुक होता है।
इन मंत्रों का करता है जप
लेकिन कई बार जीवन में एेसी कुछ मुसीबतें आ जाती हैं, जिनका न चाहते हुए भी सामना करना ही पड़ता है। कहते हैं किसी भी प्रकार की जीत को हासिल करने के लिए मेहनत करना अनिवार्य है लेकिन आपको बता दें कि मेहनत के साथ-साथ कुछ एेसे मंत्र भी है जिनके माध्यम से हर क्षेत्र में आसानी से जीत हासिल की जा सकती है। तो आइए आज हम आपको एेसे मंत्रों के बारे में बताते हैं जो असल में तुलसीदास कृत रामचरित मानस की कुछ चौपाईयां हैं। इन चौपाईयां का आध्यात्मिक रूप से बहुत महत्व है। अगर कोई साधारण व्यक्ति इन मंत्रों का जप करता है तो वह मानसिक रूप से मज़बूत तो बनता ही है, साथ ही उसे ईश्वरीय कृपा भी प्राप्त होती है।
रामचरित मानस में वर्णित एक प्रसंग के अनुसार प्रभु श्रीराम और रावण के युद्ध के समय जब रावण रथ पर सवार था और श्रीराम पैदल ही रण में थे। ये दृश्य देखकर विभीषन बेहद भयभीत हो गए और उन्होंने सोचा कि प्रभु पैदल रथ पर बैठे रावण का मुकाबला कैसे करेंगे। विभीषन को घबराया हुआ देखकर श्रीराम ने उनसे कहा कि जो भी मनुष्य धर्म, सत्य और ईश्वर पर भरोसा रखता है जीत उसी को मिलती है।
ये हैं चौपाईयां
कुछ विद्वानों के अनुसार ये चौपाईयां इतनी शक्तिशाली हैं कि दशहरा के दिन इनके 3 बार जाप से प्रत्येक क्षेत्र में जीत मिलती है। दशहरा बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाता है इसीलिए इस दिन इसके जाप का सर्वाधिक महत्व है।
इन चौपाईयों को जरूर जपें
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा ।
देखि बिभीषन भयउ अधीरा।।
अधिक प्रीति मन भा संदेहा।
बंदि चरन कह सहित सनेहा।।
अर्थात
जब रावण को रथ और श्रीराम को पैदल देखकर बिभीषन बेचैन हो गए और प्रभु से अधिक स्नेह होने के कारण उनके मन में संदेह आ गया कि श्रीराम कैसे रावण का मुकाबल करेंगे। श्रीराम के चरणों की वंदना कर वो कहने लगे।
चौपाई
नाथ न रथ नहि तन पद त्राना।
केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥
सुनहु सखा कह कृपानिधाना।
जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥
अर्थात
हे नाथ आपके पास न रथ है, न शरीर की रक्षा करने वाला कवच और पैरों में पादुकाएं हैं, इस तरह से रावण जैसे बलवान वीर पर जीत कैसे प्राप्त हो पाएगी। जिसके बाद प्रभु राम बोले- हे सखा सुनो, जिससे जय होती है, वह रथ ये नहीं कोई दूसरा ही है॥
चौपाई
सौरज धीरज तेहि रथ चाका।
सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥
बल बिबेक दम परहित घोरे।
छमा कृपा समता रजु जोरे॥
चौपाई
अमल अचल मन त्रोन समाना।
सम जम नियम सिलीमुख नाना॥
कवच अभेद बिप्र गुर पूजा।
एहि सम बिजय उपाय न दूजा॥
अर्थात
पाप से मुक्त और स्थिर मन तरकस के समान है। वश में किया हुआ मन, यम-नियम, ये बहुत से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है। इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है।
चौपाई
सखा धर्ममय अस रथ जाकें।
जीतन कहं न कतहुं रिपु ताकें॥
अर्थात
हे सखा (विभीषण) यदि किसी योद्धा के पास ऐसा धर्ममय रथ हो तो उसके सामने शत्रु होता ही नहीं, वो हर क्षेत्र में जीत हासिल करता है।
चौपाई
महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर।
जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर।।
अर्थात
हे धीरबुद्धि वाले सखा सुनो, जिसके पास ऐसा दृढ़ रथ हो, वह वीर संसार (जन्म मरण का चक्र) रूपी महान दुर्जय शत्रु को भी जीत सकता है,फिर रावण को जीतना मुश्किल कैसे हो सकता है।
चौपाई
सुनि प्रभु बचन बिभीषन हरषि गहे पद कंज।
एहि मिस मोहि उपदेसेहु राम कृपा सुख पुंज।।
अर्थात
श्रीराम के वचन सुनकर विभीषण प्रफुल्लित हो गए और उन्होंने प्रभु के चरण पकड़कर कहा, हे प्रभु, आपने इस युद्ध के बहाने मुझे वो महान उपदेश दिया है जिससे जीवन के किसी भी क्षेत्र में विजय पाने का मार्ग मिल गया है। ये मंत्र पाकर मैं धन्य हो गया।
अर्थात
इस चौपाई में श्रीराम ने उस रथ के बारे में बताया है जिससे जीत हासिल की जाती है। धैर्य और शौर्य उस रथ के पहिए हैं। सदाचार और सत्य उसकी मजबूत ध्वजा और पताका हैं। विवेक, बल, इंद्रियों को वश में करने की शक्ति और परोपकार ये चारों उसके अश्व हैं। ये क्षमा, दया और समता रूपी डोरी के जरिए रथ में जोड़े गए हैं।
चौपाई
ईस भजनु सारथी सुजाना।
बिरति चर्म संतोष कृपाना॥
दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा।
बर बिग्यान कठिन कोदंडा॥
अर्थात
इस चौपाई में प्रभु ने सारथी के बारे में बताया है। जो रथ को चलाता है। ईश्वर का भजन ही रथ का चतुर सारथी है। वैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है। दान फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान धनुष है।
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