ARTI PANDEY
कानपुर के GSVM Medical College में नेत्र रोग विभाग को स्टेम सेल पर शोध में अप्रत्याशित सफलता मिली है। जन्म से न देख पाने वालों को भी आशा की नई किरण मिली है। स्टेम सेल की मदद से उन लोगों को भी रोशनी मिली है, जिनका रेटिना खराब हो गया था। ऐसे में 4 मरीजों की आंखों की रोशनी वापस आ चुकी है। गुरुवार को डा. परवेज खान ने मीडिया के सामने इसकी जानकारी दी।
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स्टेम सेल निकाले जाते हैं
डॉक्टर परवेज खान ने बताया कि मां के गर्भ में शिशु नाल द्वारा प्लेसेंटा सुरक्षित रहता है। डिलीवरी के बाद बच्चे के साथ प्लेसेंटा और उसकी परतें बाहर आ जाती हैं। इन अवशेषों को एकत्र किया जाता है और इससे स्टेम सेल निकाले जाते हैं। इसे सर्जरी के बाद रेटिना पर इम्प्लांट कर दिया जाता है। जुलाई 2022 से वे प्लेसेंटा के अवशेषों से स्टेम सेल निकालकर आंखों के क्षतिग्रस्त रेटिना में ट्रांसप्लांट करने पर शोध कर रहे हैं। अभी तक 4 मरीजों को ठीक किया जा चुका है।
जन्म से ही नहीं दिखता था
मध्य प्रदेश के रीवा के रहने वाले पेशे से कारपेंटर मुकेश कुमार को जन्म से ही नहीं दिखता था। उनके साथ ही उन्नाव के निवासी सिपाही मो. असीम को रेटिना की लाइलाज बीमारी थी। धीरे-धीरे उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी। इन दोनों मरीजों में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किया गया। इससे चार महीने में ही इनकी आंखों की रोशनी लौट आई। दो और मरीजों के आखों की रोशनी भी इसी तरीके से लौटाई जा चुकी हैं।
जल्द लोग भी कर सकेंगे अफोर्ड
डॉ. परवेज ने बताया कि यह प्रोसीजर आने वाले समय में आम आदमी भी अफोर्ड कर पाएंगे। अभी इसकी कॉस्टिंग ज्यादा है, लेकिन कुछ समय में लगभग 50 हजार के आसपास ये ट्रांसप्लांट किया जा सकेगा। बताया कि एक ऑपरेशन के दौरान कॉम्प्लिकेशन आई, जिसमें स्टेम सेल जो कि एक कवच की तरह होता है वह पंचर हो गया था। लेकिन, उसे रिपेयर कर लिया गया और ऑपरेशन सफल रहा।
केंद्र से मांगा गया शोध के लिए बजट
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग के हेड डा. परवेज खान ने बताया कि चार महीने के रिसर्च की विस्तृत रिपोर्ट केंद्र सरकार के ICMR को भेजी गई है। अब रिसर्च को आगे बढ़ाने के लिए सुविधाएं और संसाधन जुटाने के लिए अनुदान मांगा गया है। मेडिकल कॉलेज में नगर ही नहीं आसपास जिलों से भी इलाज कराने के लिए आते हैं।
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