RAHUL PANDEY
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने सोमवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा जारी दिशानिर्देशों पर विचार करे। हाईकोर्ट (High Court) ने यह निर्देश यहां दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है।
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क्या है समान नागरिक संहिता
संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 तक के द्वारा राज्यों को कई मुद्दों पर सुझाव दिए गए हैं। जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने इस कानून की जरूरत पर बल देते हुए कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 44 में उम्मीद जताई गई है कि राज्य अपने नागरिकों के समान नागरिक संहिता की सुरक्षा करेगा। अनुच्छेद की यह भावना महज उम्मीद बनकर ही नहीं रह जाए। अनुच्छेद 44 राज्य को सही समय पर सभी धर्मों के लिए समान नागरिक संहिता बनाने का निर्देश देता है।
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भारतीय संविधान और यूनिफॉर्म सिविल कोड
भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) का उल्लेख किया गया है। इस अनुच्छेद में कानून को लेकर नीति निर्देश दिया गया है और कहा गया है कि समान नागरिक संहिता लागू करना हमारा लक्ष्य होगा। यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर कई बार सुप्रीम कोर्ट भी केंद्र सरकार को निर्देश दे चुका है।
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भारत में क्यों है कि पर्सनल लॉ?
भारत में अगल-अगल धर्मों के मसलों को सुलझाने के लिए पर्सनल लॉ बनाया है। इस कानून के तहत शादी, तलाक, परिवार जैसे मामले आते हैं। भारत में अधिकतर निजी कानून धर्म के आधार पर तय किए गए हैं। हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म हिंदू विधि के अंतर्गत आते हैं, जबकि मुस्लिम और ईसाई के लिए अपने अलग कानून हैं। मुस्लिमों का कानून शरीअत पर आधारित है जबकि अन्य धार्मिक समुदायों के कानून भारतीय संसद के संविधान पर आधारित हैं।
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देश में क्या है मौजूदा स्थिति
भारत में फिलहाल संपत्ति, शादी, तलाक और उत्तराधिकार जैसे मामलों के लिए हिंदू और मुसलमानों का अलग-अलग पर्सनल लॉ है। इस कारण एक जैसे मामले को निपटाने में पेचीदगियों का सामना करना पड़ता है।