RAHUL PANDEY
HIGHCOURT: इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High court) ने कहा है कि पुलिस अधिकारी के समाने दिए गए अपराध स्वीकारोक्ति के बयान को साक्ष्य मान कर अभियुक्त को सजा सुनाना विधि विरुद्ध है। कोर्ट (COURT) ने 630 किलो गांजा के साथ पकड़े गए आरोपियों को विशेष न्यायालय इलाहाबाद द्वारा सुनाई गई सजा रद्द करते हुए उन्हे बरी कर दिया है। कोर्ट (COURT) ने कहा है कि अभिसूचना अधिकारी के समक्ष अपराध स्वीकार करने का बयान को साक्ष्य नहीं माना जा सकता। यह फैसला न्यायमूर्ति अजित कुमार ने नजीबाबाद आजमगढ़ निवासी विजय कुमार उर्फ प्यारे लाल व विनोद कुमार की सजा के खिलाफ अपील को स्वीकार करते हुए दिया है।
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गांजा बरामदगी व सैंपल जांच के लिए भेजने में धारा 52 ए नारकोटिक्स एक्ट की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। स्वतंत्र गवाह भी पेश नहीं किए गए। विचारण न्यायलय ने साक्ष्यों पर विचार किए बिना पुलिस के सामने अपराध स्वीकार करने के आधार पर सजा सुनाई है । जो सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के तूफान सिंह केस के विधि सिद्धांत के विपरीत है।
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अपीलार्थियों के अधिवक्ता का कहना था कि
अपीलार्थियों के अधिवक्ता का कहना था कि नारकोटिक्स विभाग वाराणसी के इंटेलिजेंस अधिकारी कौशल कांत मिश्र ने सूचना पर टीम लेकर इलाहाबाद की ट्रांसपोर्ट कंपनी पर छापा मारा। कंपनी के दो कर्मचारियों की गवाह बनने की सहमति लेकर 20 प्लाई बाक्स बरामद किया।जिसमे 630 किलो गांजा भरा था।बाक्स के पास खड़े विजय कुमार बताया कि गांजा विनोद कुमार के लिए लेने आया है । इस बयान के आधार पर पुलिस (POLICE) ने माल जब्त किया और 25ग्राम को दो सेट सैंपल लेकर फोरेंसिक जांच के लिए भेज दिया। दो दिन बाद बरामद गांजा जूट के बैग में भरकर सील कर वाराणसी के मालखाने में जमा कर दिया।
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चार्जशीट के बाद विशेष न्यायालय ने आरोपियों को सजा सुनाई । जिसे अपील में चुनौती दी गई थी।
अधिवक्ता का कहना था कि स्वतंत्र गवाह व जब्त माल कोर्ट (COURT) में पेश नहीं किया गया। पुलिस के सामने अपराध स्वीकार करने के बयान को आधार मानकर सजा सुना दी गई । जब कि ऐसे बयान साक्ष्य मे स्वीकार्य नही है। फोन काल्स पी सी ओ की है,स्पष्ट नही। अधिनियम की धारा 52 ए का पालन नहीं किया गया। बिना साक्ष्य के दोषी करार दिया गया । जो विधि विरुद्ध होने के करण रद्द होने योग्य है।
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