History of Khichdi: क्या आप जानते हैं कि शाही थालियों में एक बेहद सादा और घरेलू पकवान- खिचड़ी (Khichdi) भी शामिल थी? सिर्फ इतना ही नहीं, इसे पसंद करने वाले कोई मामूली व्यक्ति नहीं, बल्कि खुद मुगल सम्राट अकबर थे! History of Khichdi
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सम्राट खिचड़ी के दीवाने थे लेकिन आखिर क्या था इस सादे से दिखने वाले व्यंजन में ऐसा खास? क्या इसकी खुशबू, स्वाद या फिर इसके पीछे छिपा कोई अनोखा इतिहास?
चलिए, आज हम आपको बताते हैं खिचड़ी की वो कहानी जो सिर्फ रसोई तक सीमित नहीं, बल्कि शाही इतिहास और भारतीय संस्कृति में भी गहराई से जड़ें जमाए हुए है।
वैदिक युग से मुगल दरबार तक (From the Vedic Age to the Mughal Court)
खिचड़ी का जिक्र हमें प्राचीन भारतीय ग्रंथों में भी मिलता है। ‘चरक संहिता’ और ‘सुस्रुत संहिता’ जैसे आयुर्वेदिक ग्रंथों में खिचड़ी को सुपाच्य, सेहतमंद और संतुलित भोजन के रूप में बताया गया है। चावल और दाल का यह मिश्रण न सिर्फ पौष्टिक होता है, बल्कि यह पेट के लिए भी बेहद आरामदायक होता है।
माना जाता है कि खिचड़ी का इतिहास 2,000 वर्षों से भी पुराना है। यह भारत के लगभग हर हिस्से में किसी न किसी रूप में खाई जाती है-कहीं उसमें सब्जियां मिलाई जाती हैं, तो कहीं तड़का लगाकर इसका स्वाद बढ़ाया जाता है। कुछ क्षेत्रों में इसे गुड़ और घी के साथ परोसा जाता है, तो कहीं इसे अचार या पापड़ के साथ।
अकबर और खिचड़ी का अनोखा रिश्ता
मुगल सम्राट अकबर का खानपान काफी विविध था। वे भारतीय व्यंजनों के साथ-साथ फारसी और मध्य एशियाई पकवानों का भी भरपूर आनंद लेते थे, लेकिन इतिहासकारों की मानें तो अकबर को खासतौर पर ‘खिचड़ी’ बहुत पसंद थी।
‘आइन-ए-अकबरी’, जो कि अकबर के शासनकाल का एक विस्तृत दस्तावेज है और जिसे उनके प्रधानमंत्री अबुल फजल ने लिखा था, उसमें अकबर के भोजन और उनके पसंदीदा व्यंजनों का उल्लेख मिलता है। उसमें लिखा है कि अकबर अक्सर सादा भोजन करना पसंद करते थे और खिचड़ी उनमें से एक थी। खासतौर पर उपवास या किसी विशेष धार्मिक अनुष्ठान के दिनों में वे खिचड़ी को प्रमुखता से अपने आहार में शामिल करते थे।
अकबर की खिचड़ी में सिर्फ चावल और दाल नहीं, बल्कि उसमें देसी घी, हल्दी, जीरा और कभी-कभी सूखे मेवे भी डाले जाते थे, ताकि वह स्वाद में भी लाजवाब हो और हेल्दी भी।
स्वाद अनेक, संस्कृति एक (Many tastes, one culture)
खिचड़ी केवल एक रेसिपी नहीं है, यह भारत की सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक है। उत्तर भारत में जहां इसे मूंग दाल और चावल के साथ बनाया जाता है, वहीं दक्षिण भारत में इसमें नारियल का तड़का भी लगाया जाता है। बंगाल में इसे ‘खिचुरी’ कहते हैं और दुर्गा पूजा में इसका विशेष स्थान होता है। गुजरात में इसे ‘खिचड़ी-कढ़ी’ के साथ खाया जाता है तो बिहार में इसे घी, चोखा और दही के साथ परोसा जाता है।
स्वाद, सेहत और सादगी (Taste, health and simplicity)
खिचड़ी की सबसे बड़ी खूबी उसकी बहुमुखी प्रतिभा है। इसे बच्चों के लिए सादा बनाएं, बुजुर्गों के लिए हल्का और रोगियों के लिए सुपाच्य-हर परिस्थिति में यह फिट बैठती है। यही वजह है कि ये व्यंजन सदियों से हमारे भोजन का हिस्सा बना हुआ है।
आज जब हम फास्ट फूड और विदेशी व्यंजनों के पीछे भाग रहे हैं, तब खिचड़ी हमें हमारे सांस्कृतिक मूल्यों और पारंपरिक स्वाद की याद दिलाती है।