कौस्तुभ मिश्रा
कानपुर। खेती-किसानी के मामले में इजराइल देश की मिशाल दी जाती है। वंहा के किसान आधुनिक खेती पर विशेष ध्यान देते है और फसलों को पानी देने के लिए आधुनिक मशीनों का इस्तेमाल करते है। लेकिन कृषि प्रधान देश भारत में अभी भी किसान जुगाड़ लगाकर सिंचाई करते है। जिससे खेतो में कभी ज्यादा पानी चला जाता है और कभी कम। इन दोनो स्थितियों में फसल को नुकसान तो पहुंचता ही है साथ ही किसान की लागत भी बढ़ जाती है। किसानो की इस समस्या को देखते हुए कानपुर के प्रांजल सिंह ने किसानो के लिए एक ऐसा मॉडल तैयार किया जो काबिले-तारीफ़ है।
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प्रांजल सिंह कोई वैज्ञानिक नहीं है बल्कि एक निजी स्कूल में पढ़ने वाले छात्र है और यह अक्सर नए प्रोजेक्ट को बनाने में लगे रहते है। इस बार प्रांजल ने एग्रीकल्चर यूजिंग आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस नाम का मॉडल बनाया है। प्रांजल ने डेमो देते हुए बताया कि इसमें इलेक्ट्रोनिक डिवाइस का इस्तेमाल कर बनाया गया है। इसको लगाने के बाद फसल को कितने पानी की जरुरत है यह ऑटोमैटिक उतना पानी खेतो में पहुंचा देगा। उनका यह भी कहना है कि इसमें लगे सोलर पैनल की वजह से बिजली की जरुरत नहीं होगी।
प्रांजल का कहना है कि भारत में मौसम एक सा नहीं रहता है।
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जिससे किसानो को बहुत नुकसान झेलना पड़ता है। किसान की फसल खराब हो जाती है तो वो कर्जदार हो जाता है और बहुत से किसान आत्महत्या तक कर लेते है। किसानो की इसी समस्या को देखते हुए इस प्रोजेक्ट को बनाया गया है। प्रांजल का यह प्रोजेक्ट काफी आधुनिक है क्योकि अगर कोई किसान चावल की खेती करता है और मोबाइल पर लोड एप्प पर किसी भी भाषा में बोलता है कि मैंने चावल बोया है।जिसके बाद गूगल से सारा डाटा लेकर यह अपने अंदर सेव कर लेता है। उसके बाद इसमें लगे सेंसर पता कर लेगा की कितना चाहिए। जितना चाहिए होगा उतना ही पानी यह खेतो में रिलीज कर देगा। प्रांजल कोई वैज्ञानिक नहीं है। इसलिए इनको इसको बनाने में तीन साल का समय लगा। उनका कहना है कि इसको बनाते समय हर चीज का ध्यान रखा गया है।
हालाँकि प्रांजल का यह प्रोजेक्ट छोटा जरूर है। लेकिन बड़े काम का है। अगर इसको बड़े स्तर पर बनाया जाय तो इसकी लागत करीब एक लाख रुपये तक आएगी। साथ ही किसान भाइयो के चेहरों पर ख़ुशी भी देखने को मिलेगी।
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