अधिकांश फिल्मों को दर्शाने का मिजाज हमेशा हल्का ही रखा
ऋषिकेश मुखर्जी भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के सबसे अहले दर्जे के फिल्म निर्देशक के रूप में जाने जाते हैं. उन्होंने घर के छोटे मुद्दों से लेकर समाज के संवेदनशील मुद्दों पर फिल्में बनाईं. मगर ऋषिकेश मुखर्जी की एक खास बात थी कि उन्होंने अपनी अधिकांश फिल्मों को दर्शाने का मिजाज हमेशा हल्का ही रखा. बहुत डार्क वे किसी फिल्म को नहीं ले गए.
उनकी दूरदर्शी सोच उनकी फिल्मों में साफ नजर आती थी. तभी तो वे गोलमाल में भवानी प्रसाद के रूप में उत्पल दत्त के किरदार को मुकम्मल कर पाए या आनंद में हंसते मुस्कुराते एक बीमार शख्स का किरदार जिसे राजेश खन्ना ने प्ले किया था. उन्होंने अपने किस्म का सिनेमा बनाया जिसका कर्जदार बॉलीवुड हमेशा रहेगा.
जन्म 30 सितंबर, 1922 को कोलकाता में हुआ था
ऋषिकेष मुखर्जी का जन्म 30 सितंबर, 1922 को कोलकाता में हुआ था. वहीं 27 अगस्त 2006 को मुंबई में उनका निधन हो गया. 1957 में मुसाफिर फिल्म से उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की. फिल्म में दिलीप कुमार और किशोर कुमार लीड रोल में थे. वहीं बहुत कम लोगों को ही ये बात पता होगी कि उन्होंने 1998 में झूठ बोले कौआ काटे नाम से एक फिल्म बनाई थी. इस फिल्म की कास्ट में अनिल कपूर और जूही चावला थे. यही फिल्म उनके करियर की आखरी फिल्म रही.
मुसाफिर
उनकी पहली ही फिल्म थी मुसाफिर और उतनी ही खास भी थी. इस फिल्म में उन्होंने कई अलग अलग कहानियों को लेकर फिल्म बनाई थी. फिल्म को पार्ट्स में बनाया गया था. कमाल के थॉटप्रॉसेस के साथ बनी इस फिल्म में किशोर कुमार, सुचित्रा सेन और दिलीप कुमार लीड रोल में थे. ऋषि दा की पहली ही फिल्म ऐसी थी कि इस किस्म की फिल्म उस समय तक बॉलीवुड में पहले कभी नहीं बनी थी.
आशीर्वाद
आशीर्वाद फिल्म को ऋषि दा ने दादा मुनी यानी अशोक कुमार के करियर की सबसे बेहतरीन फिल्म बना दी. अशोक कुमार का कैरेक्टर अपने आप में एक ऐसे इंसान की दास्ता बयां करता है जो कला से परिपूर्ण होता है और आत्मिक रूप से आध्यात्मिक. मगर हालात की मार के कारण उसे अपने जीवन का अधिकांश समय जेल में बिताना पड़ता है. फिल्म में अशोक कुमार की जर्नी वाकई किसी के भी आंखों में आसू ला सकती है.
सत्यकाम
धर्मेंद्र, शर्मिला टैगोर और संजीव कुमार के अभिनय से सजी ये फिल्म क्लासिक फिल्मों में गिनी जाती है. फिल्म में रिश्तों के अलग अलग शेड्स दिखाए गए हैं जो वक्त वक्त में आपको काफी इमोशनल कर देते हैं. धर्मेंद्र ने इस फिल्म में कमाल की एक्टिंग की थी.
आनंद
इस फिल्म को भला कौन भूल सकता है. यही वो फिल्म थी जिसने राजेश खन्ना को सुपरस्टार बना दिया. फिल्म में उनका हंसता खेलता किरदार सभी का दिल मोह लेने में कामयाब होता है. साथ ही इसी फिल्म ने सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के करियर की नींव भी रखी थी. फिल्म टाइमलेस है और आज की जनरेशन में भी इसके डायलॉग्स काफी मशहूर हैं.
अर्जुन पंडित
संजीव कुमार ने इस फिल्म में अर्जुन पंडित का लीड रोल प्ले किया. फिल्म का किरदार इतना स्ट्रॉन्ग था कि इससे प्रभावित हुए बिना रहा ही नहीं जा सकता. संजीव कुमार ने काफी परफैक्शन के साथ इस रोल को प्ले किया. एक चिड़चिड़े, अकड़ू और पत्थर दिल इंसान से वे कैसे एक ऐसे इंसान में बदल जाते हैं जो ज्ञान के महासागर में गोते लगा रहा है और एक मामूली नौकर होने के बाद भी लोगों को प्रकाशमय बनाने का काम पूरी जिम्मेदारी के साथ कर रहा है. अर्जुन पंडित का ये बदलाव दिल को छू लेने वाला है.
गुड्डी
बड़े ही रेयर विषय पर ऋषि दा ने ये फिल्म बनाई थी. शायद ऋषि दा के अलावा ऐसे मुद्दे पर फिल्म बनाने की कोई सोच भी नहीं सकता और इतनी खूबसूरत तो बनाने से रहा. ऋषि दा ने काफी पहले ही दर्शकों को बता दिया था कि सच कितना अलग होता है. इंसान कई दफा अपने ख्यालों में इतना लीन हो जाता है कि उसे वही सच्चाई लगने लग जाती है. फिल्में कैसे असल जीवन नहीं और असल जीवन कितना अलग है नादान गुड्डी के दृष्टिकोण से ये ऋषि दा ने इस फिल्म में समझाया था.
बावर्ची
ये फिल्म घर-परिवार के किस्से कहानियों का दर्पण थी. कैसे छोटी-छोटी बातों पर हम एक दूसरे से मुंह फुला कर बैठ जाते हैं और रिश्तों के वास्तविक सौंदर्य की अनदेखी कर देते हैं. मगर वक्त जानता है कि उसे रिश्तों की अहमियत कब और कैसे समझानी है. वहीं राजेश खन्ना के यायावरी किरदार को गढ़ना भी इतना आसान नहीं. एक नौकर उसे हालात ने बनाया है या वो खुदा का भेजा हुआ एक मसीहा है जो घर-घर नौकर बनकर पहुंचता है और छुट-पुट मन मुटाव, द्वेष, ईष्या जैसे गंदगियों को प्यार में तब्दील कर निकल जाता है निरंतर चलते रहने के लिए, खोजने कोई और मकान जहां प्यार की कमी हो और जरूरत भी.