ARTI PANDEY
नोएडा: ICAN 5 में मंगलवार को ‘लाहौर-दिल्ली डॉक्यूमेंट्री फिल्म्स वर्कशॉप’ में विभिन्न प्रकार की डाक्यूमेंट्री फिल्मों पर और स्त्री शिक्षा के मुद्दों पर चर्चा की गई। कार्यशाला की शुरुआत डीएमई के स्टूडियो-62 में दो डाक्यूमेंट्री फिल्मों- ‘कन्याशाला’ और ‘पाकिस्तान: शिक्षा और महिला’ की स्क्रीनिंग के साथ हुई। पाकिस्तान से दो फिल्म निर्माता ऑनलाइन मोड में सत्र में शामिल हुए। डॉ गौरी चक्रवर्ती, प्रोफेसर, टाइम्स स्कूल ऑफ मीडिया और अध्यक्ष, यूनिवर्सिटी वीमेन डेवलपमेंट सेल, बेनेट यूनिवर्सिटी, ने भारत और पाकिस्तान में स्त्री शिक्षा से संबंधित मुद्दों की चर्चा करते हुए सत्र की शुरुआत की।
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डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माण के महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में बोलते हुए, डॉ वजीहा रज़ा रिज़वी, सह-अध्यक्ष, जेंडर एंड कम्युनिकेशन अनुभाग IAMCR और स्कूल ऑफ़ मीडिया एंड मास कम्युनिकेशन और एसोसिएट प्रोफेसर, बीकनहाउस नेशनल यूनिवर्सिटी, पाकिस्तान ने कहा, “शोध करना, शूटिंग से पहले स्थानों का दौरा करना और विषय की पृष्ठभूमि का अध्ययन करने से फिल्म निर्माण में सहायता मिलती है।”
डॉ आराधना कोहली कपूर, भारतीय फिल्म निर्माता, मैनेजिंग ट्रस्टी, IWART इंडिया चैप्टर ने संवेदनशील मुद्दों पर डाक्यूमेंट्री निर्माण की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए बहुमूल्य जानकारी दी। उसने कहा, “हमें अपने आस पास की हर चीज़ के साथ एक भावनात्मक बंधन बनाने की जरूरत है। विषय से जुड़ाव बेहद ज़रूरी है – यह जमीनी वास्तविकताओं को आत्मसात करने में सहायक होती है। ”
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अपने देश में लड़कियों की शिक्षा के महत्वपूर्ण पहलुओं और चिंता वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, खोज-सोसाइटी फॉर पीपुल्स एजुकेशन, पाकिस्तान की संस्थापक और निदेशक सुश्री नसीरा हबीब ने कहा, “लड़कियों की शिक्षा में महत्वपूर्ण बात दृष्टिकोण है। अर्थात यह लड़के की शिक्षा से अलग कैसे हो सकती है।” उन्होंने कहा, “हम हमेशा संख्यायों पर, और सुविधाओं की गैरमौजूदगी पर चर्चा करते हैं लेकिन वास्तव में सबसे बड़े मुद्दे सामाजिक बाधाएं हैं।” डीएमई मीडिया स्कूल के प्रोफेसर और डीन और ICAN 5 के संयोजक डॉ अंबरीष सक्सेना ने एक महत्वपूर्ण बात कही कि कैसे पूरा समाज लड़कियों को शिक्षित करने में विफल रहा है। इसका जवाब देते हुए, सुश्री नसीरा ने कहा, “राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी इस मुद्दे का मूल कारण है।”
सम्मेलन के सातवें तकनीकी सत्र में ‘मेटावर्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, फेक न्यूज एवं पत्रकारिता में इन्क्लूजन’ विषय पर विचार-विमर्श हुआ। इसकी अध्यक्षता डॉ मंजू रुघवानी, स्कूल के प्रमुख और प्रोफेसर, स्कूल ऑफ फिल्म एंड मीडिया अजिंक्य डी वाई पाटिल विश्वविद्यालय, पुणे, महाराष्ट्र ने की। श्री मोहम्मद कामिल, सहायक प्रोफेसर, डीएमई मीडिया स्कूल ने सत्र की सह-अध्यक्षता की। अपने उद्घाटन भाषण में, डॉ अम्बरीष सक्सेना ने कहा कि एआई और मेटावर्स जैसी तकनीकी प्रगति अवसरों के नए द्वार खोलेगी। उन्होंने कहा, “हमें इसके नकारात्मक प्रभावों के बारे में भी सतर्क रहना होगा।”
अंतर्राष्ट्रीय मीडिया सम्मेलन के चौथे दिन ICAN 5 का समापन पीआर उद्योग में विविधता, समानता और समावेशिता पर वैश्विक रूप से समृद्ध पैनल चर्चा के साथ हुआ, जहां महिला प्रोफेशनल्स ने DEI के वैचारिक और निष्पादन संबंधी पहलुओं के बारे में बात की। सत्र का संचालन कैथरीन लैंसियोनी, लेखक और प्रख्यात पीआर प्रोफेशनल, न्यू जर्सी, यूएसए द्वारा किया गया था, जबकि पैनल में पाओला चियासेरिनी, ओम्नीकॉम पब्लिक रिलेशंस ग्रुप, इटली शामिल थे। इसके अलावा लामिया कामेल, असिस्टेंट मिनिस्टर ऑफ़ टूरिज्म एंड एंटीक्विटिस फॉर प्रमोशन, मिस्र; राम्या चंद्रशेखरन, मुख्य संचार अधिकारी, सिंगापुर; और डॉ पूजा अरोड़ा, वरिष्ठ पीआर प्रोफ़ेशनल और शोधकर्ता, भारत भी शामिल थे।
पैनल का परिचय देते हुए, डॉ अंबरीष सक्सेना, प्रोफेसर और डीन, डीएमई मीडिया स्कूल और संयोजक, ICAN 5 ने कहा, “आज हमारे पैनलिस्ट दुनिया भर से विविध पृष्ठभूमि से हैं। यह हमें डीईआई प्रथाओं के बारे में एक वैश्विक परिप्रेक्ष्य प्रदान करेगा।” डॉ पूजा अरोड़ा ने भारतीय जनसंपर्क क्षेत्र में डीईआई प्रथाओं का वर्णन किया। उन्होंने अपने अनुभवों को याद करते हुए अपनी कम उम्र के कारण कार्यस्थल पर पूर्वाग्रहों सम्बन्धी अनुभवों को याद किया। उन्होंने कहा, “विविधता केवल जेंडर तक सीमित नहीं है,”।
मिस्र के दृष्टिकोण का लामिया कामेल द्वारा उल्लेख किया गया। उन्होंने कहा कि उन्हें सबसे ज्यादा चिंता इस बात की है कि शीर्ष पदों पर बैठी महिलाएं अन्य महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में उल्टा काम कर रही हैं। “पुरुषों से हमारे लिए ऐसा करने की अपेक्षा करने से पहले हमें एक-दूसरे का समर्थन करने की आवश्यकता है।” डॉ सुस्मिता बाला, प्रोफेसर और प्रमुख, डीएमई मीडिया स्कूल और मुख्य सहयोगी संयोजक, ICAN 5 ने अपनी टिप्पणी के साथ सत्र का समापन किया। उन्होंने कहा, “विविधता, समानता और समावेशिता हमारे समाज का एक मूलभूत हिस्सा होना चाहिए।”