श्राद्धकर्ता के सम्पूर्ण पापकर्मों का विनाश हो जाता है…
पितृपक्ष PitruPaksha के समय में प्रत्येक तिथि का अपना महत्व और उद्देश्य होता है। एकादशी का श्राद्ध Sraddha सर्वश्रेष्ठ दान माना जाता है। वह समस्त वेदों का ज्ञान प्राप्त कराता है। श्राद्धकर्ता के सम्पूर्ण पापकर्मों का विनाश हो जाता है तथा उसे निरंतर ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
वहीं, द्वादशी तिथि के श्राद्ध Sraddha से राष्ट्र का कल्याण तथा प्रचुर अन्न की प्राप्ति कही गई है। त्रयोदशी Trayodashi के श्राद्ध से संतति, बुद्धि, उत्तम पुष्टि, दीर्घायु तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। जो पूर्णमासी के दिन श्राद्ध आदि करता है, उसकी बुद्धि, पुष्टि, स्मरणशक्ति, धारणाशक्ति, पुत्र-पौत्रादि एवं ऐश्वर्य की वृद्धि होती। वह पर्व का पूर्ण फल भोगता है। जो सप्तमी को श्राद्ध आदि करता है, उसको महान यज्ञों के पुण्य फल प्राप्त होते हैं। अष्टमी को श्राद्ध करने वाला सम्पूर्ण समृद्धियां प्राप्त करता है। नवमी तिथि को श्राद्ध करने से ऐश्वर्य एवं मन के अनुकूल चलने वाली स्त्री को प्राप्त करता है। दशमी तिथि का श्रद्धा मनुष्य ब्रह्मत्व की लक्ष्मी प्राप्त कराता है।
श्राद्ध करने की विधि
श्राद्ध Sraddha करने के लिए किसी ब्राह्मण को आमंत्रित करें, भोज कराएं और अपनी सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा भी दें।
श्राद्ध Sraddha के दिन अपने सामर्थ्य या इच्छानुसार खाना बनाएं।
आप जिस व्यक्ति का श्राद्ध कर रहे हैं, उसकी पसंद के मुताबिक खाना बनाएं, तो उचित रहेगा।
मान्यता है कि श्राद्ध Sraddha के दिन स्मरण करने से पितर घर आते हैं और अपनी पसंद का भोजन कर तृप्त हो जाते हैं।
खाने में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल न करें।
शास्त्रों में पांच तरह की बलि बताई गई हैं: गौ (गाय) बलि, श्वान (कुत्ता) बलि, काक (कौवा) बलि, देवादि बलि, पिपीलिका (चींटी) बलि।
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पौराणिक ग्रंथों के अनुसार
श्राद्ध करने की भी विधि होती है। यदि पूरे विधि विधान से श्राद्ध कर्म न किया जाए तो मान्यता है कि वह श्राद्ध Sraddha कर्म निष्फल होता है और पूर्वजों की आत्मा अतृप्त ही रहती है। शास्त्रसम्मत मान्यता यही है कि किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के जरिए ही श्राद्ध कर्म (पिंड दान, तर्पण) करवाना चाहिए। श्राद्ध कर्म में पूरी श्रद्धा से ब्राह्मणों को तो दान दिया ही जाता है, साथ ही यदि किसी गरीब, जरूरतमंद की सहायता भी आप कर सकें तो बहुत पुण्य मिलता है। इसके साथ-साथ गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए।
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सर्वपितृ श्राद्ध
श्राद्ध Sraddha करने के लिए सबसे पहले जिसके लिए श्राद्ध करना है उसकी तिथि का ज्ञान होना जरूरी है। जिस तिथि को मृत्यु हुई हो, उसी तिथि को श्राद्ध करना चाहिए। लेकिन कभी-कभी ऐसी स्थिति होती है कि हमें तिथि पता नहीं होती तो ऐसे में आश्विन अमावस्या Amavasya का दिन श्राद्ध कर्म के लिए श्रेष्ठ होता है क्योंकि इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है। दूसरी बात यह भी महत्वपूर्ण है कि श्राद्ध करवाया कहां पर जा रहा है। यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है।
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