पंजाब यूनिवर्सिटी के तिब्बती भाषा एवं बौद्ध अध्ययन केप्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष ने लिखी पुस्तक
Arti Pandey
Chandigarh
बौद्ध की शिक्षाएं समयातीत और अमूल्य हैं। उनके द्वारा उपदिष्ट अष्टांगिक मार्ग की प्रासंगिकता आज भी है और यह विश्व शांति हेतु समझदारी का मार्ग है। महात्मा बुद्ध के उपदेश भौतिकता की अंधी दौड़ में अविद्या के कारण उत्पन्न हुई जीवन के अधिकांश समस्याओं के निराकरण का मार्ग अहिंसा व महाकरुणा को केन्द्र में रख कर सुझाते हैं।भाग्यवाद बनाम कर्मफल की बाध्यता के प्रतिष्ठापन में बौद्ध परम्परा सर्वत्र सर्वदा उत्साहित रहती है।
तिब्बती बौद्ध साहित्य भारितीय बौद्ध परम्परागत पुस्तकों के पुनस्र्थापन के लिए सर्वथा प्रमाणिक स्रोत सिद्ध हुए हैं।तिब्बती बौद्ध साहित्य का संवर्धन सदियों से विहारों में भिक्षुओं जिन्हें लामा कहा जाता है के द्वारा उनके अबाधित बौद्ध साधनाओं के माध्यम से किया जाता रहा है। भारत अपने बौद्ध साहित्य की खोई थाती को तिब्बतियों से पुन: प्राप्त करने में धन्यभागी हुआ है। तिब्बती बौद्ध परम्पराओं में सर्वप्रथम है जिसकी नींव नालन्दा से जाकर पद्मसंभव ने डाली थी। अन्य परम्पराएं, साक्या, काग्र्युद और गेलुग हैंजिनके अनुयायी आज विश्व के लगभग सभी देशों में हैं।गेलुग परम्परा के सर्वधिक लोकप्रिय होने तथा इसकेअनुयायियों संख्या की अधिकता इनके द्वारा बुद्ध की शिक्षाओं की अपेक्षाकृत सरल व्याख्या है। विपश्यना कीसाधना जिसे अत्यन्त सरलीकृत रूप में श़ी.ने तथा ल्हा.थोङकहा गयाए अन्य परम्पराओं यहां तक की प्रकारान्तर से बौद्धेतर साधनाओं में भी समादृत है। प्रेक्षा.ध्यान तथासुदर्शन क्रिया भी ऐसी ही साधनाएं हैं। बोधिचित्तोत्पाद एक ऐसी भावनापूर्ण साधना है जिसके लिए सभी परम्पराओं में सम्मान है और जो सभी जीवों के प्रति हमारे दृष्टिकोण तथाएतदर्थ व्यवहार को सुनिश्चित करती है। सभी जीवों के प्रतियही करुणामय व्यवहार और सम्यक दर्शन बुद्धदेशना काउद्देश्य है। प्रस्तुत पुस्तक बौद्ध परम्परा के कतिपय पक्षों कोप्रस्तुत करती है और यह सभी शांतिप्रिय और बौद्ध परम्पराकी संरक्षा में उद्यत रहने वाले तिब्बत के निवासियों के प्रतिआदरांजलि है जिन्होंने अपने देश छोडऩे की कीमत पर भीअपनी संस्कृति की रक्षा की है।
लेखक का परिचय
डा. विजय कुमार सिंह वर्तमान में पंजाब विश्वविद्यालय में तिब्बती भाषा एवं बौद्ध अध्ययन के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हैं। आप विगत 25 से भी अधिक वर्षों से बौद्धविद्या तथा तिब्बती भाषा के अध्ययन.अध्यापन में रत हैं।मूलत: बिहार के पटना के निवासी डा. विजय कुमार सिंह ने दिल्ली विश्वविद्यालय में लामा प्रोफेसर गेशे गेलेक ग्यात्सो को निर्देशन में बौद्ध अध्ययन तथा तिब्बती भाषा की शिक्षा ग्रहण की है। प्रोफेसर सिंह राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय मंचों से बौद्ध विद्या के अध्ययन के महत्त्व के रेखांकित करते रहे हैं।प्रकाशितआपकी पहली पुस्तक sects in Tibetan Buddhism देश विदेश के कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रममें सम्मिलित है। आपकी अभी अभी हिन्दी में एक पुस्तक प्रकाशित हुई है जिसका शीर्षक हैए बौद्ध विद्या तथा तिब्बतीपरम्पराएं। इस पुस्तक में तिब्बती परम्पराओं तथा भातीय बौद्ध अध्ययन का स्तरीय विवरण दिया गया है तथा एकसमीक्षात्मक दृष्टिकोण से इसकी प्रस्तुति विद्यार्थियों तथाशोधकर्ताओं के मध्य इसे लोकप्रिय बनाती है।