नर्मदा किनारे जो बस्ती है उसे विष्णुपुरी कहते हैं
आज हम आप के लिए भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों में से चौथे ज्योतिर्लिंग की जानकारी लाए हैं जो कि श्री ओंकारेश्वर-ज्योतिर्लिंग है। ॐकारेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है। यह नर्मदा नदी के बीच मन्धाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है। यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगओं में से एक है। यह यहां के मोरटक्का गांव से लगभग (14 कि॰मी॰) दूर बसा है। यह द्वीप हिन्दू पवित्र चिन्ह ॐ के आकार में बना है।
यहां दो मंदिर स्थित हैं ।
- ॐकारेश्वर
- ममलेश्वर
ॐकारेश्वर का निर्माण नर्मदा नदी से स्वतः ही हुआ है। यह नदी भारत की पवित्रतम नदियों में से एक है और अब इस पर विश्व का सर्वाधिक बड़ा बांध परियोजना का निर्माण हो रहा है।
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ऐसा, ज्योतिर्लिंग जिसके दर्शन मात्र से ही होती हैं हर मनोकामना पूरी
ऐसा ज्योतिर्लिंग जहां तीन प्रसिद्ध नदियों का होता हैे “महासंगम”
जिस ओंकार शब्द का उच्चारण सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता विधाता के मुख से हुआ, वेद का पाठ इसके उच्चारण किए बिना नहीं होता है। इस ओंकार का भौतिक विग्रह ओंकार क्षेत्र है। इसमें 68 तीर्थ हैं। यहाँ 33 कोटि देवता परिवार सहित निवास करते हैं तथा 2 ज्योतिस्वरूप लिंगों सहित 108 प्रभावशाली शिवलिंग हैं। मध्यप्रदेश में देश के प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से 2 ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं। एक उज्जैन में महाकाल के रूप में और दूसरा ओंकारेश्वर में ओम्कारेश्वर- ममलेश्वर के रूप में विराजमान हैं।
ओंकारेश्वर लिंग किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा, तराशा या बनाया हुआ नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक शिवलिंग है। इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है। प्राय: किसी मन्दिर में लिंग की स्थापना गर्भ गृह के मध्य में की जाती है और उसके ठीक ऊपर शिखर होता है, किन्तु यह ओंकारेश्वर लिंग मन्दिर के गुम्बद के नीचे नहीं है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि मन्दिर के ऊपरी शिखर पर भगवान महाकालेश्वर की मूर्ति लगी है। कुछ लोगों की मान्यता है कि यह पर्वत ही ओंकाररूप है।
राजा मान्धाता की तपस्या से यहां प्रसन्न हुए थे भगवान शिव-
ओंकारेश्वर पवित्र धाम को लेकर कई प्रकार की कथाएं प्रचलित हैं। बताया जाता हैं कि ओंकारेश्वर धाम मन्धाता द्वपि पर स्थित हैं। मन्धाता द्वीप के राजा मान्धाता ने यहां पर्वत पर घोर तपस्या की थी। जिससे प्रसन्न हुए भगवान शिव से राजा ने वरदान स्वरूप यही निवास करने का वरदान मांगा। जिसके बाद भगवान ने राजा के वचन अनुसार यहां पवित्र ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान शिव विराजमान हुए एवं राजा के राज्य में रहने वाली हर जनता की सुरक्षा एवं रक्षा भगवान शिव स्वयं करते रहें। प्राचीन कथाओं के अनुसार ओंकारेश्वर को तीर्थ नगरी ओंकार-मान्धाता के नाम से भी प्राचीन समय में जाना जाता था।
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इसलिए इस तीर्थ का नाम हैं ओंकारेश्वर-
राजा मान्धाता ने अपनी प्रजा के हित तथा मोक्ष के लिए तपस्या कर भगवान शिव से यही विराजमान होने का वरदान मांगा था। जिसके बाद से यहां पहाड़ी पर ओंकारेश्वर तीर्थ ॐ के आकार में बना हुआ हैं। ॐ शब्द का उच्चारण सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता विधाता के मुख से हुआ तथा वेद का पाठ उच्चारण किए बिना नही होता हैं। इसलिए इस तीर्थ का नाम ओंकारेश्वर हैं। आस्था हैं कि ॐ आकार से बने तीर्थ की परिक्रमा करने पर अत्यंत लाभदायक फल तथा मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
मान्यता
नर्मदा क्षेत्र में ओंकारेश्वर सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है। शास्त्र मान्यता है कि कोई भी तीर्थयात्री देश के भले ही सारे तीर्थ कर ले किन्तु जब तक वह ओंकारेश्वर आकर किए गए तीर्थों का जल लाकर यहाँ नहीं चढ़ाता उसके सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं। ओंकारेश्वर तीर्थ के साथ नर्मदाजी का भी विशेष महत्व है। शास्त्र मान्यता के अनुसार जमुनाजी में 15 दिन का स्नान तथा गंगाजी में 7 दिन का स्नान जो फल प्रदान करता है, उतना पुण्यफल नर्मदाजी के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है।
ओंकारेश्वर तीर्थ क्षेत्र में चौबीस अवतार, माता घाट (सेलानी), सीता वाटिका, धावड़ी कुंड, मार्कण्डेय शिला, मार्कण्डेय संन्यास आश्रम, अन्नपूर्णाश्रम, विज्ञान शाला, बड़े हनुमान, खेड़ापति हनुमान, ओंकार मठ, माता आनंदमयी आश्रम, ऋणमुक्तेश्वर महादेव, गायत्री माता मंदिर, सिद्धनाथ गौरी सोमनाथ, आड़े हनुमान, माता वैष्णोदेवी मंदिर, चाँद-सूरज दरवाजे, वीरखला, विष्णु मंदिर, ब्रह्मेश्वर मंदिर, सेगाँव के गजानन महाराज का मंदिर, काशी विश्वनाथ, नरसिंह टेकरी, कुबेरेश्वर महादेव, चन्द्रमोलेश्वर महादेव के मंदिर भी दर्शनीय हैं
मंदिर का इतिहास
इस मंदिर में शिव भक्त कुबेर ने तपस्या की थी तथा शिवलिंग की स्थापना की थी। जिसे शिव ने देवताओ का धनपति बनाया था। कुबेर के स्नान के लिए शिवजी ने अपनी जटा के बाल से कावेरी नदी उत्पन्न की थी। यह नदी कुबेर मंदिर के बाजू से बहकर नर्मदाजी में मिलती है, जिसे छोटी परिक्रमा में जाने वाले भक्तो ने प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में देखा है, यही कावेरी ओमकार पर्वत का चक्कर लगाते हुए संगम पर वापस नर्मदाजी से मिलती हैं, इसे ही नर्मदा कावेरी का संगम कहते है।
धनतेरस पूजन
इस मंदिर पर प्रतिवर्ष दिवाली की बारस की रात को ज्वार चढाने का विशेष महत्त्व है इस रात्रि को जागरण होता है तथा धनतेरस की सुबह ४ बजे से अभिषेक पूजन होता हैं इसके पश्चात् कुबेर महालक्ष्मी का महायज्ञ, हवन, (जिसमे कई जोड़े बैठते हैं, धनतेरस की सुबह कुबेर महालक्ष्मी महायज्ञ नर्मदाजी का तट और ओम्कारेश्वर जैसे स्थान पर होना विशेष फलदायी होता हैं) भंडारा होता है लक्ष्मी वृद्धि पेकेट (सिद्धि) वितरण होता है, जिसे घर पर ले जाकर दीपावली की अमावस को विधि अनुसार धन रखने की जगह पर रखना होता हैं, जिससे घर में प्रचुर धन के साथ सुख शांति आती हैं I
ओंकारेश्वर-दर्शन
नर्मदा किनारे जो बस्ती है उसे विष्णुपुरी कहते हैं। यहाँ नर्मदाजी पर पक्का घाट है। सेतु (अथवा नौका) द्वारा नर्मदाजी को पार करके यात्री मान्धाता द्वीपमें पहुँचता है। उस ओर भी पक्का घाट है। यहाँ घाट के पास नर्मदाजी में कोटितीर्थ या चक्रतीर्थ माना जाता है। यहीं स्नान करके यात्री सीढ़ियों से ऊपर चढ़कर ऑकारेश्वर-मन्दिर में दर्शन करने जाते हैं। मन्दिर तट पर ही कुछ ऊँचाई पर है।
पंचमुख गणेशजी की मूर्ति
मन्दिर के अहाते में पंचमुख गणेशजी की मूर्ति है। प्रथम तल पर ओंकारेश्वर लिंग विराजमान हैं। श्रीओंकारेश्वर का लिंग अनगढ़ है। यह लिंग मन्दिर के ठीक शिखर के नीचे न होकर एक ओर हटकर है। लिंग के चारों ओर जल भरा रहता है। मन्दिर का द्वार छोटा है। ऐसा लगता है जैसे गुफा में जा रहे हों। पास में ही पार्वतीजी की मूर्ति है। ओंकारेश्वर मन्दिर में सीढ़ियाँ चढ़कर दूसरी मंजिल पर जाने पर महाकालेश्वर लिंग के दर्शन होते हैं।
ममलेश्वर
ममलेश्वर भी ज्योतिर्लिंग है। ममलेश्वर मन्दिर अहल्याबाई का बनवाया हुआ है। गायकवाड़ राज्य की ओर से नियत किये हुए बहुत से ब्राह्मण यहीं पार्थिव-पूजन करते रहते हैं। यात्री चाहे तो पहले ममलेश्वर का दर्शन करके तब नर्मदा पार होकर औकारेश्वर जाय; किंतु नियम पहले ओंकारेश्वर का दर्शन करके लौटते समय ममलेश्वर-दर्शन का ही है। पुराणों में ममलेश्वर नाम के बदले विमलेश्वर उपलब्ध होता है ममलेश्वर-प्रदक्षिणा में वृद्धकालेश्वर, बाणेश्वर, मुक्तेश्वर, कर्दमेश्वर और तिलभाण्डेश्वरके मन्दिर मिलते हैं।