यहाँ पर आने वालों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं
श्री वैद्यनाथ शिवलिंग का समस्त ज्योतिर्लिंगों की गणना में नौवां स्थान बताया गया है। भगवान श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर जिस स्थान पर अवस्थित है, उसे वैद्यनाथ धाम कहा जाता है। यह स्थान झारखण्ड प्रान्त, पूर्व में बिहार प्रान्त के संथाल परगना के दुमका नामक जनपद में पड़ता है।
सावन में ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक करने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है
झारखंड के देवघर जिला स्थित वैद्यनाथ धाम का विशाल शिव मंदिर सभी 12 ज्योर्तिपीठों से अलग है. यही कारण है कि सावन में यहां के ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक करने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है. इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके शीर्ष पर त्रिशूल नहीं, ‘पंचशूल’ है, जिसे सुरक्षा कवच माना गया है.
शिवपुराण में ज्योतिर्लिंग की पूजा का महत्व
धर्माचार्यों का कहना है कि शिवपुराण में ज्योतिर्लिंग की पूजा का महत्व बताया गया है. कहा गया है कि कोई अगर छह महीने तक लगातार शिव ज्योतिर्लिंग की पूजा करता है, तो उसे पुनर्जन्म का कष्ट नहीं उठाना पड़ता. वैद्यनाथ मंदिर के शीर्ष पर लगे पंचशूल के विषय में धर्म के जानकारों का अलग-अलग मत है. एक मत है कि त्रेता युग में रावण की लंकापुरी के द्वार पर सुरक्षा कवच के रूप में भी पंचशूल स्थापित था.
रावण को पंचशूल यानी सुरक्षा कवच को भेदना आता था
धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि रावण को पंचशूल यानी सुरक्षा कवच को भेदना आता था, जबकि यह भगवान राम के वश में भी नहीं था. विभीषण ने जब युक्ति बताई, तभी राम और उनकी सेना लंका में प्रवेश कर सकी थी. उन्होंने कहा कि सुरक्षा कवच के कारण ही इस मंदिर पर आज तक किसी भी प्राकृतिक आपदा का असर नहीं हुआ है.
पंडितों का कहना है कि पंचशूल का दूसरा कार्य मानव शरीर में मौजूद पांच विकार-काम, क्रोध, लोभ, मोह व ईर्ष्या का नाश करना है. इस पंचशूल को पंचतत्वों-क्षिति, जल, पावक, गगन तथा समीर से बने मानव शरीर का द्योतक बताया.
यह भी खबरें पढें :
शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप
ऐसा, ज्योतिर्लिंग जिसके दर्शन मात्र से ही होती हैं हर मनोकामना पूरी
29 साल बाद #RAKSHABANDHAN पर महासंयोग, जानें शुभ मुहूर्त
इस लिंग को “कामना लिंग” भी कहा जाता हैं
वैद्यनाथ मन्दिर, देवघर वैद्यनाथ मन्दिर के राज्य झारखंड में अतिप्रसिद्ध देवघर नामक स्थान पर अवस्थित है। पवित्र तीर्थ होने के कारण लोग इसे वैद्यनाथ धाम भी कहते हैं। जहाँ पर यह मन्दिर स्थित है उस स्थान को “देवघर” अर्थात देवताओं का घर कहते हैं। बैद्यनाथ स्थित होने के कारण इस स्थान को देवघर नाम मिला है। यह एक सिद्धपीठ है। कहा जाता है कि यहाँ पर आने वालों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस कारण इस लिंग को “कामना लिंग” भी कहा जाता हैं।
स्थापना व कथा
इस लिंग की स्थापना का इतिहास यह है कि एक बार रावण ने हिमालय पर जाकर शिवजी की प्रसन्नता के लिये घोर तपस्या की और शिवजी को लंका ले जाने और उन्हें वहां विराजमान होने के लिए आज्ञा मांगी,परतु कैलाश पर्वत और माता पार्वती को छोड़ कर जाना संभव नहीं था। इसलिए उन्होंने रावण को लंका जाने से माना कर दिया,यह बात सुनकर रावण क्रोधित हो उठा,और पूरे कैलाश पर्वत को ही उठाने का प्रयास करने लगा।इससे माता पार्वती विचलित हो गयी,और उन्होंने महादेव से उसे रोकने को कहने लगी,फिर महादेव ने कैलाश को अपने पैरों से जोर से दबा दिया,जिस कारण रावण के हाथ कैलाश पर्वत के नीचे आ गए। दर्द से कहराते हुवे,रावण महादेव से छमा याचना मांगने लगा।( जो शिव तांडव स्तोत्रं के नाम से जाना जाता है)माता पार्वती,रावण को दर्द में देख,महादेव को छमा करने के लिए कहने लगी,और दयालु महादेव रावण की सारी गलती को भुला कर उसे माफ़ कर देते है।रावण फिर भी महादेव को लंका ले जाने की जिद करता रहा,तब महादेव उसे एक शिवलिंग प्रदान करते है,और कहा इस शिवलिंग को पूजना,हमें पूजने के बराबर है।फिर रावण ने लंका में जाकर उस लिंग को स्थापित करने के लिये उसे ले जाने की आज्ञा माँगी। शिवजी ने अनुमति तो दे दी, पर इस चेतावनी के साथ दी कि यदि मार्ग में इसे पृथ्वी पर रख देगा तो वह वहीं अचल हो जाएगा। अन्ततोगत्वा वही हुआ। रावण शिवलिंग लेकर चला पर मार्ग में एक चिताभूमि आने पर उसे लघुशंका निवृत्ति की आवश्यकता हुई। रावण उस लिंग को एक अहीर जिनका नाम बैजनाथ था , को थमा लघुशंका-निवृत्ति करने चला गया। इधर उन अहीर ने ज्योतिर्लिंग को बहुत अधिक भारी अनुभव कर भूमि पर रख दिया। फिर क्या था, लौटने पर रावण पूरी शक्ति लगाकर भी उसे न उखाड़ सका और निराश होकर मूर्ति पर अपना अँगूठा गड़ाकर लंका को चला गया। इधर ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की। शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की वहीं उसी स्थान पर प्रतिस्थापना कर दी और शिव-स्तुति करते हुए वापस स्वर्ग को चले गये। जनश्रुति व लोक-मान्यता के अनुसार यह वैद्यनाथ-ज्योतिर्लिग मनोवांछित फल देने वाला है।
देवघर का शाब्दिक अर्थ है देवी-देवताओं का निवास स्थान। देवघर में बाबा भोलेनाथ का अत्यन्त पवित्र और भव्य मन्दिर स्थित है। हर साल सावन के महीने में स्रावण मेला लगता है जिसमें लाखों श्रद्धालु “बोल-बम!” “बोल-बम!” का जयकारा लगाते हुए बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने आते है। ये सभी श्रद्धालु सुल्तानगंज से पवित्र गंगा का जल लेकर लगभग सौ किलोमीटर की अत्यन्त कठिन पैदल यात्रा कर बाबा को जल चढाते हैं।
यह भी खबरें पढें :
ऐसा #JYOTIRLINGA जहां प्राणत्याग करने से ही मिल जाती है मुक्ति
ऐसा #JYOTIRLINGA जहां विराजित है ब्रह्मा, विष्णु और महेश
भारत की नई शिक्षा नीति, स्कूल-कॉलेज की व्यवस्था में बड़े बदलाव
मन्दिर के समीप में स्थित पवित्र तालाब
मन्दिर के समीप ही एक विशाल तालाब भी स्थित है। बाबा बैद्यनाथ का मुख्य मन्दिर सबसे पुराना है जिसके आसपास अनेक अन्य मन्दिर भी बने हुए हैं। बाबा भोलेनाथ का मन्दिर माँ पार्वती जी के मन्दिर से जुड़ा हुआ है।
पवित्र यात्रा
बैद्यनाथ धाम की पवित्र यात्रा श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) में शुरु होती है। सबसे पहले तीर्थ यात्री सुल्तानगंज में एकत्र होते हैं जहाँ वे अपने-अपने पात्रों में पवित्र गंगाजल भरते हैं। इसके बाद वे गंगाजल को अपनी-अपनी काँवर में रखकर बैद्यनाथ धाम और बासुकीनाथ की ओर बढ़ते हैं। पवित्र जल लेकर जाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वह पात्र जिसमें जल है, वह कहीं भी भूमि से न सटे।
बैजू मन्दिर
बाबा बैद्यनाथ मन्दिर परिसर के पश्चिम में देवघर के मुख्य बाजार में तीन और मन्दिर भी हैं। इन्हें बैजू मन्दिर के नाम से जाना जाता है। इन मन्दिरों का निर्माण बाबा बैद्यनाथ मन्दिर के मुख्य पुजारी के वंशजों ने किसी जमाने में करवाया था। प्रत्येक मन्दिर में भगवान शिव का लिंग स्थापित है।
click and buy from amazon
वैद्यनाथधाम में महाशिवरात्रि व पंचशूल की पूजा
भारत में झारखण्ड के देवघर जिले में स्थित वैद्यनाथ का मंदीर है। विश्व के सभी शिव मंदिरों के शीर्ष पर त्रिशूल लगा दीखता है मगर वैद्यनाथधाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण व अन्य सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं।
यहाँ प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि से 2 दिनों पूर्व बाबा मंदिर, माँ पार्वती व लक्ष्मी-नारायण के मंदिरों से पंचशूल उतारे जाते हैं। इस दौरान पंचशूल को स्पर्श करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। वैद्यनाथधाम परिसर में स्थित अन्य मंदिरों के शीर्ष पर स्थित पंचशूलों को महाशिवरात्रि के कुछ दिनों पूर्व ही उतार लिया जाता है। सभी पंचशूलों को नीचे लाकर महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व विशेष रूप से उनकी पूजा की जाती है और तब सभी पंचशूलों को मंदिरों पर यथा स्थान स्थापित कर दिया जाता है। इस दौरान बाबा व पार्वती मंदिरों के गठबंधन को हटा दिया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन नया गठबंधन किया जाता है। गठबंधन के लाल पवित्र कपड़े को प्राप्त करने के लिए भी भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। महाशिवरात्रि के दौरान बहुत-से श्रद्धालु सुल्तानगंज से कांवर में गंगाजल भरकर 105 किलोमीटर पैदल चलकर और ‘बोल बम’ का जयघोष करते हुए वैद्यनाथधाम पहुंचते हैं।