Kadak Singh Review : हिंदी थ्रिलर फिल्म कड़क सिंह (Kadak Singh Review) जी5 पर रिलीज हुई है। अनिरुद्ध ने इस बार एक डिस्फंक्शनल फैमिली की कहानी को चिट फंड घोटाले के साथ पिरोकर थ्रिलर फिल्म बनाई है। और इसमें पंकज त्रिपाठी का जरा अलग अंदाज दिखा है, कुछ ऐसा जो उन्होंने अब तक नहीं किया और ये इस फिल्म को देखने की एक बड़ी वजह है. Kadak Singh Review
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कड़क सिंह किसी किरदार का नाम नहीं है, बल्कि एक सख्त पिता को बच्चों द्वारा दी गई उपमा है, जो पिता के प्रति बच्चों की भावनाओं को व्यक्त करता है. इसके अलावा, कड़क सिंह एक व्यक्ति के चरित्र को भी दिखाता है, जो यादाश्त खोने के बावजूद अपने काम में एकदम ‘कड़क’ है और एक उलझी हुई गुत्थी को सुलझाने की कोशिश करता है। कड़क सिंह एक थ्रिलर है जिसका सुरूर धीरे-धीरे चढ़ता है।क्या है कड़क सिंह की कहानी? Kadak Singh Review
एके श्रीवास्तव (पंकज त्रिपाठी) डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल क्राइम्स में अधिकारी है। बीवी कुछ साल पहले एक दुर्घटना में मर गई थी। बेटी साक्षी (संजना सांघी) बेटा आदित्य (वरुण बुद्धदेव) हैं। पिता और बच्चे बिल्कुल नहीं बनती। एके गोल्डन शाइन चिट फंड कम्पनी के 200 करोड़ रुपये के घोटाले की जांच कर रहा है, जिसका मास्टमाइंड अशोक अग्रवाल (जिसका नाम सामने नहीं आता) है।
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एके की टीम उसकी खोज में जुटी है। इधर, आदित्य बुरी संगत में पड़कर ड्रग्स करने लगा है और एक हादसे के बाद पुलिस की गिरफ्त में आ जाता है। साक्षी, भाई को बचाने के लिए पुलिस को घूस देने के लिए तैयार हो जाती है। पुलिस इंस्पेक्टर पैसे देने के लिए उसे एक सस्ते होटल में बुलाता है।
एके भी वहां एक रेड के सिलसिले में गया हुआ है। बेटी को होटल में उसके दोस्त के साथ देखकर एके को गलतफहमी होती है। सरेआम बाप-बेटी के बीच कहासुनी होती है। एके अपमानित महसूस करता है और ऑफिस में आत्महत्या की कोशिश करता है।
वो बच जाता है, मगर यादाश्त चली जाती है। कुछ बातें याद रह जाती हैं। बेटी साक्षी को भूल जाता है, लेकिन बेटा आदित्य याद रहता है, जिसकी उम्र वो पांच साल बताता है। घटना के बाद एके का व्यक्तित्व भी पूरी तरह बदल जाता है। गुस्सैल और कड़क रहने वाला एके अब मजाक भी करने लगा है।
इस बीच एक फोन कॉल के आधार पर विभाग उसका कनेक्शन घोटाले के मास्टरमाइंड अशोक अग्रवाल से जोड़ देता है, जिसके चलते वो सस्पेंड हो जाता है। अब साक्षी के सामने पिता की यादाश्त वापस लाने और इस सबके पीछे सच्चाई का पता लगाने की चुनौती है।
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कैसा है फिल्म का स्क्रीनप्ले?
कड़क सिंह की कथाभूमि कोलकाता शहर है। रितेश शाह और विराफ सरकारी ने कड़क सिंह के स्क्रीनप्ले को चार कहानियों में बांटकर लिखा है। ये कहानियां फिल्म के प्रमुख किरदारों का एके श्रीवास्तव को लेकर उनका अपना वर्जन हैं और उन घटनाओं का जिक्र हैं, जो एके की जिंदगी में घटी होती हैं।
चारों कहानियां सुनने के बाद सिरे से सिरा पकड़ते हुए एके क्लाइमैक्स में एक चौंकाने वाली साजिश का खुलासा करता है कि किस तरह उसे फंसाया गया है और सम्भावित मास्टरमाइंड के नाम से भी पर्दा उठाता है, जिसके बाद विभागीय जांच कमेटी की दिशा को नया मोड़ मिलता है। यह बिंदु थोड़ा नाटकीय लगता है, मगर रोमांचक है।
कैसा है अभिनय?
एके श्रीवास्तव के किरदार में पंकज त्रिपाठी दोहरी भूमिका जीते हैं। हादसे से पहले का एके और बाद वाला एके। पंकज ने दोनों शख्सियत को बिल्कुल अलग रखने में सफलता पाई है। सरेआम बेटी के साथ पंकज की बहस का सीन बेहतरीन है। साक्षी के किरदार में संजना सांघी ठीक लगी हैं।
पिता से नाराज रहने वाली बेटी हादसे के बाद किस तरह उसके खिलाफ हो रही साजिश की तह तक जाने में जुटी है, इसे निभाने में संजना ने कामयाबी हासिल की है। हमेशा मुस्कुराते रहने वाले त्यागी के किरदार में दिलीप शंकर जमते हैं। उसका व्यक्तित्व रहस्य को बढ़ाता है।
कैसी है फिल्म?
दो घंटा 8 मिनट की अवधि की फिल्म गति पकड़ने में थोड़ा वक्त लेती है। फिल्म काफी हद तक पंकज त्रिपाठी के अभिनय पर टिकी है। स्क्रीनप्ले के जरिए इसे रोमांचक बनाया गया है।