Kalashtami 2024 : हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की पूजा और साधना की जाती है। Kalashtami 2024
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सामान्य जन काल भैरव की पूजा करते हैं। वहीं, तंत्र सीखने वाले साधक काल भैरव देव की कठिन साधना करते हैं। काल भैरव देव कठिन साधना से प्रसन्न होकर साधक को सिद्धि प्रदान करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार काल भैरव देव की पूजा करने से व्रतियों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साथ ही घर में सुख और शांति बनी रहती है। इसके अलावा, घर में व्याप्त नकारात्मक शक्ति भी दूर हो जाती है। इस उपलक्ष्य पर बाबा की नगरी काशी में काल भैरव देव की विशेष पूजा की जाती है। लेकिन क्या आपको पता है कि काल भैरव को बाबा की नगरी काशी का कोतवाल क्यों कहा जाता है? आइए, इससे जुड़ी पौराणिक कथा जानते हैं-
कथा
सनातन शास्त्रों में निहित है कि चिरकाल में एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के मध्य श्रेष्ठता को लेकर द्वंद हो गया। दोनों एक दूसरे के विचार से सहमत नहीं हुए। यह खबर तीनों लोकों में अग्नि की तरह फैल गई। उस समय देवताओं और ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी को देवों के देव महादेव के पास चलने का अनुरोध किया। इस बारे में ऋषि-मुनियों का कहना था कि महादेव के पास अवश्य कोई न कोई हल होगा। यह जान सभी देवी-देवता एवं ऋषि-मुनि शिव लोक पहुंचे।
भगवान शिव को पूर्व से ही जानकारी थी कि श्रेष्ठता को लेकर भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के मध्य द्वंद चल रहा है। उस समय भगवान शिव ने कहा कि मेरे द्वारा उत्पन्न ज्योत के अंतिम छोर पर आप दोनों में जो सबसे पहले पहुंचेगे। उसे ही श्रेष्ठ घोषित किया जाएगा। अगर आप दोनों ने कोई छल करने की कोशिश की या झूठ बोलने की कोशिश की, तो परिणाम गंभीर होगा। अब आप दोनों तय कर लें कि क्या सहमत हैं?
यह सुन भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी दोनों सहमत हो गये। उसी क्षण भगवान शिव के तेजोमय शरीर से एक ज्योत निकली, जो पाताल और नभ की ओर बढ़ रही थी। ज्योत प्रकट होने के बाद भगवान विष्णु नभ की ओर बढें। वहीं, ब्रह्मा जी पाताल की ओर बढ़ें। दोनों ज्योत के शीर्ष और शून्य स्थिति पर पहुंचने में सफल नहीं हुए। थक हारकर दोनों लौट आए। उस समय भगवान शिव ने पूछा- क्या आप दोनों ज्योत की अंतिम बिंदु तक पहुंच पाने में सफल हो पाए थे। भगवान विष्णु ने कहा-हे देवों के देव महादेव! आपकी लीला अपरंपार है। भला कोई कैसे समझ पाएगा। मैं ज्योत के शीर्ष पर पहुंचने में सफल नहीं हो पाया। मुझे क्षमा करें।
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इसके बाद भगवान शिव ने ब्रह्मा जी से पूछा- क्या आप ज्योत की अंतिम बिंदु तक पहुंच पाए। श्रेष्ठता की उपाधि पाने के लिए ब्रह्मा जी ने झूठ बोल दिया। ब्रह्मा जी ने कहा पाताल में एक निश्चित स्थान पर ज्योत की अंतिम बिंदु है। उस समय भगवान शिव बोले- हे ब्रम्ह देव! आप झूठ बोल रहे हैं। इस ज्योत का अंत नहीं है। यह जान भगवान शिव ने विष्णु जी को श्रेष्ठ घोषित कर दिया। इससे ब्रह्मा जी अप्रसन्न हो गए और भगवान शिव पर पक्षपात करने का आरोप लगाया।
यह सुन भगवान शिव क्रोधित हो उठे। उनके क्रोध से काल भैरव देव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव देव ने तत्क्षण ही अपने नाखूनों से ब्रह्म देव के चौथे मुख को शरीर से अलग कर दिया। काल भैरव देव के क्रोध को देख ब्रह्म देव को बोध हुआ कि उनसे गलती हुई। उस समय ब्रह्मा जी ने भगवान शिव से क्षमा याचना की। काल भैरव देव को ब्रह्म वध का पाप लगा।
इसके पश्चात काल भैरव देव ब्रह्म वध से मुक्ति पाने के लिए तीनों लोकों का भ्रमण किया। किसी स्थान पर उन्हें ब्रह्म वध से मुक्ति नहीं मिली। तब काल भैरव देव काशी पहुंचे। काशी में आकाशवाणी हुई कि इस स्थान पर आप तप करें। आपको ब्रह्म वध के पाप से अवश्य ही मुक्ति मिल जाएगी। कालांतर में काल भैरव देव ने बाबा की नगरी में कठिन तपस्या की। इसके बाद उन्हें ब्रह्म वध के पाप से मुक्ति मिली। उस समय भगवान शिव ने दर्शन देकर उन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया।
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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। JAIHINDTIMES यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है।