AKHILESH MISHRA
रोको मत, जाने दो। रोको, मत जान दो।
KANPUR GSVM MEDICAL COLLEGE : कुछ इस तरह के शब्दों के मकड़जाल में उलझ गये हैलट अस्पताल (Hallett Hospital) के थैलेसीमिया डे केयर सेंटर के एचओडी व बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अरूण आर्या। बातचीत के दौरान डॉक्टर आर्या ने बताया कि हमने कोई भी गलत जानकारी शेयर नहीं की है।
सिर्फ वहीं बताया जो उनके दस साल के डे केयर सेंटर में कार्यरत रहने के दौरान विभिन्न जगहों से इलाज के लिए आएं बच्चे स्क्रीनिंग में संक्रमण से पॉजिटिव पाये गये। यहीं, जानकारी सोशल मीडिया में वायरल होते ही हमारे लिए परेशानी का सवब बन गयी।
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दस साल से संभाल रहे थैलेसीमिया सेंटर
बालरोग विशेषज्ञ डॉक्टर अरूण आर्या (Dr. ARUN ARYA) ने बताया कि पिछले दस सालों से थैलेसीमिया डे केयर सेंटर का एचओडी पद संभाल रहा हूं। यहां पर प्रदेश के कोने-कोने से बच्चे इस बीमारी से पीड़ित इलाज कराने के लिए आते है। बीमारी में बच्चों का चार सप्ताह के अंदर ब्लड बदला जाता है। देशभर में यह इलाज सरकारी अस्पतालों में पूरी तरह निशुल्क है। एडमिट होने के दौरान बच्चों कई प्रकार की जांचों से गुजरना होता है। सेंटर का काम होता है कि एडमिट होने के दौरान शरीर में होने वाला ब्लड की वास्तविक स्थिति क्या है। उसके बाद ही आगे की प्रक्रिया होती है। ब्लड जांच के दौरान अगर किसी प्रकार का संक्रमण होता है तो स्क्रीनिंग होते ही स्थिति साफ हो जाते है।
अब तक नौ बच्चे मिले स्क्रीनिंग में संक्रमित
उन्होेंने बताया कि उनके एचओडी कार्यकाल के दौरान विभिन्न जनपदों से आए थैलेसीमिया से पीड़ित नौ बच्चे जांच के दौरान एचआईवी व हेपेटायटिस बी से संक्रमित पाये गये। इन बच्चों के ब्लड में संक्रमण कहां से आया यह बताना संभव नहीं है। दूर जनपदों से आने वाले बच्चे कई बार सरकारी व्यवस्था का लाभ न लेकर अपने आसपास के प्राइवेट अस्पताल में जाकर भी इलाज करा लेते है। यहां पर लापरवाही पर संक्रमण संभव है।
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हैलट आने वाले बच्चों पर कड़ी निगाह
विशेषज्ञ ने बताया कि यहां पर थैलेसीमिया से पीड़ित आने वाले बच्चों को इलाज के दौरान और फिर जाने के बाद कड़ी निगाह रखी जाती है। ब्लड चढने के बाद भी विभाग अपडेट रहता है और परिजनों से बच्चों की लगातार जानकारी लेता रहता है। हर चार सप्ताह बाद दोबारा ब्लड बदलने की जरूरत आ जाती है। मेडिकल टीम हमेशा परिजनों को जागरूक करती है कि आवश्यकता पड़ने पर सरकारी ब्लड बैंक से ही मदद लें।
संक्रमण के आंकडे वायरल होने के बाद हंगामा
14 बच्चों में संक्रमित ब्लड चढ़ने की खबर वायरल होते ही हड़कंप मच गया। खबर पर कांग्रेस अध्यक्ष व सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तत्काल एक्स प्लेटफार्म के माध्यम से प्रदेश की सरकार को घेरा। प्रकरण पर राजनीति का प्रवेश होते ही सरकार और मेडिकल विभाग एक्टिव हुआ और प्राचार्य संजय काला ने तत्काल प्रभाव से मीडिया को अवगत कराया कि 2019 के बाद से कोई भी एचआईवी केस अस्पताल में नहीं आया है। हालांकि उससे पहले 2014 में एक एचआईवी, 2019 में एक एचआईवी, 2016 में हेपटाइटिस बी के दो, 2014 में हेपटाइटिस सी के दो, 2016 में दो व 2019 में एक यानी पूरे दस संक्रमित बच्चे जांच में पाये गये थे। प्राचार्य के अनुसार, 2019 के बाद कोई संक्रमित नहीं मिला।
प्राचार्य और डॉक्टर का संक्रमण का आंकड़ा एक
पूरे प्रकरण में प्राचार्य संजय काला (Dr. Sanjay Kala) और एचओडी डॉक्टर अरूण आर्या (Dr. ARUN ARYA) दोनों का आंकड़ा संक्रमण का एक है। सिर्फ अंतर बस इतना है कि उन्होंने आंकड़ों की फिगर एक बार में बता दी जबकि, प्राचार्य ने उसे सन के हिसाब से पार्ट करके बता दिया। इन परिस्थितियों में मामला कहां से बिगड़ा है यह एक यक्ष प्रश्न बन गया है। फिलहाल शब्द और आंकड़ों के मकड़जाल में डॉक्टर आर्या पूरी तरह उलझ गये है।