KANPUR POLICE NEWS : पुलिस ने यह गलती अनजाने में की या जानबूझकर, कह नहीं सकते, लेकिन दिल्ली के रवि छाबड़ा को यह काफी भारी पड़ रही है। पुलिस ने गिरफ्तारी के समय उसके पते के कालम में खानाबदोश लिख दिया था। KANPUR POLICE NEWS
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धोखाधड़ी और साजिश के इस मामले में डेढ़ साल पहले उसे जमानत मिल गई थी लेकिन इस गलती के चलते अभी तक वह छूट नहीं पाया है। पुलिस (POLICE) ने एक पुराना पता दिया है लेकिन वहां उसके रहने की कोई पुष्टि नहीं कर रहा है। ऐसे में रवि छूट पाएगा या नहीं, कहना मुश्किल है। बहरहाल इस तकनीकी खामी को दूर करने के लिए अब यह मामला लीगल एड डिफेंस काउंसिल की टीम को सौंपा गया है।
कानपुर वरिष्ठ जेल अधीक्षक डा. बीडी पांडेय ने बताया कि कोर्ट के आदेश पर ही अभियुक्त का जेल में दाखिला और रिहाई की जाती है। आरोपी को जमानत मिल चुकी है लेकिन अभी तक रिहाई के दस्तावेज प्राप्त नहीं हुए हैं।
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यह था पूरा मामला
कानपुर के हर्ष नगर स्थित एमएलए इंडस्ट्रीज केमिकल बनाती है, जिसकी सप्लाई पूरे देश में है। 26 जून 2018 को दिल्ली की एक फर्म अनुष्का इंडस्ट्रीज से एक मेल आयी जिसमें तीन मीट्रिक टन जिंक आक्साइड जिसकी कीमत 5,48,700 रुपये थी, की मांग की गई और बिल अनुष्का इंडस्ट्रीज ए-1/7 पश्चिम विहार मेन रोहतक रोड दिल्ली के पते पर भेजने को कहा गया। माल की डिलीवरी के बाद भुगतान के बाबत संपर्क किया गया तो कंपनी फर्जी निकली। जिसके बाद कंपनी के सेल्स मैनेजर अमित कुमार गुप्ता ने 27 अगस्त 2018 को नजीराबाद थाने में तहरीर दी।
17 जुलाई 2023 को रवि की हुई जमानत
पुलिस ने धोखाधड़ी के इस मामले में 22 अक्टूबर 2019 को रवि छाबड़ा को रैन बसेरा, सेक्टर-12 नई दिल्ली से गिरफ्तार किया था। पते के कालम में पुलिस ने खानाबदोश भी दर्ज किया था। इसके साथ ही उसका पुराना पता 16/2 मुल्तानी मोहल्ला रानीगंज नई दिल्ली दर्ज किया था। दूसरे दिन रवि को कानपुर जेल भेज दिया गया। करीब चार साल जेल में रहने के बाद रवि को 17 जुलाई 2023 को जमानत मिल गई। अपर सत्र न्यायाधीश तृतीय ने एक लाख के बंधपत्रों पर उसे रिहा करने के आदेश दिए लेकिन रवि बंधपत्र नहीं दे सका और जमानत मिलने के बाद भी डेढ़ साल से जेल में है। न्यायालय ने अब बंधपत्र की राशि को काफी कम कर दिया है। पुलिस ने इस मामले दिल्ली से सचिन गुप्ता, हरीश कुमार और वरेश कुमार को गिरफ्तार कर जेल भेजा था। तीनों इस मामले में जमानत पर हैं।
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जमानतगीर नहीं मिले तो रिहाई में आएगी समस्या
विधि विशेषज्ञ आयुष अग्रवाल बताते हैं, यदि आरोपी का पता स्पष्ट नहीं हो रहा है तो उसे जमानतगीर मिलना मुश्किल हैं। यदि मानवीय दृष्टिकोण के तहत न्यायालय उसे निजी बंधपत्रों पर भी छोड़ना चाहेगा तो इसके लिए भी उसके पते का वेरीफिकेशन जरूरी है। यदि पते के वेरीफिकेशन के बिना उसे छोड़ दिया गया तो उसके फरार होने की अधिक संभावना है। जिसके बाद न्यायालय की सुनवाई प्रक्रिया के बाधित होने की प्रबल संभावना होगी। ऐसे में रवि की रिहाई पर फिलहाल बड़ा पेंच है।
पुलिस को स्पष्ट पता देना चाहिए
विधि विशेषज्ञ बताते हैं कि यह पुलिस की जिम्मेदारी थी कि उसका स्थायी पता अथवा पूर्व पता जहां उसके परिजन रहते हैं, स्पष्ट लिखा जाना चाहिए था। उसका आधार कार्ड अथवा अन्य जरूरी दस्तावेज भी लिए जाने चाहिए थे, जो इस मामले में नहीं लिए गए है।