Khichdi 2 Review : 13 साल पहले बनी ‘खिचड़ी- द मूवी’ (Khichdi 2) उस वक्त की पहली फिल्म थी, जिसे धारावाहिक खिचड़ी पर बनाया गया था। अब सीक्वल की कहानी और किरदार पांथुकिस्तान पहुंच गए हैं, जहां पारेख परिवार एक मिशन पर निकलता है।
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क्या है खिचड़ी 2 की कहानी?
थोड़ी इंटेलिजेंस एजेंसी (टीआइए) का सदस्य (अनंत विधात शर्मा) पारेख परिवार को पांथुकिस्तान के शहंशाह के चंगुल में फंसे भारतीय वैज्ञानिक मक्खनवाला (परेश गणात्रा) को छुड़ाकर लाने का जिम्मा सौंपता है। Khichdi 2 Review
इसके लिए वह पारेख परिवार को पांच करोड़ रुपये देता है। पारेख परिवार के बेटे प्रफ्फुल (राजीव मेहता) की शक्ल हूबहू उस शहंशाह से मिलती है।
योजना यह होती है कि शहंशाह को अगवा करके प्रफ्फुल को उसकी जगह दे दी जाएगी और वैज्ञानिक को वहां से निकाल लिया जाएगा। इस मिशन में पारेख परिवार कितना कामयाब होता है, इस पर कहानी आगे बढ़ती है।
कोई लॉजिक न ढूंढें तो…
फिल्म का लेखन और निर्देशन करने वाले आतिश कपाड़िया की इस फिल्म में जो परिस्थितियां हैं, उसमें कोई लॉजिक न ढूंढें तो फिल्म मजेदार लगेगी।
हालांकि, ऐसा करना संभव नहीं है, क्योंकि कहानी में संदेश की तलाश भले ही न हो, लेकिन लॉजिक की होती है। बाकी इस फिल्म की कहानी साधारण है, जो पारेख परिवार की आपसी नोकझोंक और नादानियों की झलक प्रस्तुत करती है।
हालांकि, फिल्म के बजाय इन किरदारों को टीवी पर देखना ज्यादा मजेदार होता है। खैर, कहानी भले ही कमजोर हो, लेकिन इसके कलाकारों ने जिस तरह से अपने अभिनय से इसे संभाला है, उसकी प्रशंसा करना बनता है। कहीं से महसूस नहीं होता है कि इन किरदारों को 13 साल बाद देख रहे हैं।
फिल्म का क्लाइमेक्स मजेदार है, जहां बीच रेगिस्तान में सारे किरदार चुपचाप बैठकर अपना काम इसलिए करने लगते हैं, क्योंकि रोबोट को भागते हुए पारेख परिवार को मारने का आदेश दिया गया होता है, उन सब के बैठ जाने से रोबोट उन्हें मार नहीं पाता है।
वह हर किसी से केवल निवेदन करता रह जाता है कि वह भागे, ताकि वह उन्हें मार सके। अंग्रेजी शब्दों को हिंदी में अपने तरीके से समझकर उसका अजीबो-गरीब अनुवाद करने वाले प्रफ्फुल और हंसा के बीच के दृश्य इतने सालों बाद भी कहीं से ऊबाऊ नहीं लगते हैं।
कैसा है अभिनय?
हंसा की भूमिका में सुप्रिया पाठक का काम बेहतरीन है, हालांकि इस बार खुशी के मौके पर उनका उठकर गरबा करने वाले सीन की कमी महसूस होती है। हिमांशु के किरदार में जेडी मजेठिया को देखकर लगता है कि उन्होंने अपनी उम्र को बांध रखा है। वह फिट लगते हैं, साथ ही हंसा के साथ उनकी जुगलबंदी मजेदार है।
हालांकि, किसी को पता नहीं चलेगा… वाले जोक्स की कमी महसूस होती है। प्रफ्फुल की भूमिका में राजीव मेहता पर दोहरी जिम्मेदारी है। उन्होंने मासूम प्रफ्फुल की भूमिका के साथ निर्दयी शंहशाह की भूमिका को बिना किसी रुकावट के निभाया है। बाबूजी की भूमिका में अनंग देसाई और जयश्री की भूमिका में वंदना पाठक का काम सराहनीय है।
पायलट के रोल में प्रतीक गांधी और रोबोट बने कीकू शारदा हंसाने में कामयाब होते हैं। ‘खिचड़ी- द मूवी’ से अपने फिल्मी सफर की शुरुआत करने वाली कीर्ति कुल्हारी परमिंदर के रोल में पहले से बेहतर लगी हैं।