किसान नेता कहे जाने वाले राकेश टिकैत ने मुजफ्फरनगर में किसान महापंचायत के नाम से एक रैली कर डाली। अब पता नहीं उसमें आए हुए लोग किसान थे या कोई और। अब सवाल ये है कि राकेश टिकैत ने मुजफ्फरनगर को ही क्यों चुना। चलिए बताते हैं। असल में मुजफ्फरनगर जाटों और मुस्लिमों को गढ़ माना जाता है। साथ ही राकेश टिकैत खुद भी जाट बिरादरी से आते हैं। केवल मुजफ्फरनगर ही नहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों में जाट और मुस्लिम अच्छी खासी तादात में हैं।
अब राकेश टिकैत के कंधे पर बंदूक रखकर प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल सपा, कांग्रेस और बसपा अपना हित साधने में लगे हैं। क्योंकि राकेश टिकैत अब इस आंदोलन को किसान आंदोलन कहकर जातिवादी आंदोलन बनाने में लगे हुए हैं। और ये बात प्रदेश के लोग दावे के साथ कह रहे हैं कि राकेश टिकैत के पीछे प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल ही हैं, जिनका मकसद केवल ये है कि जाट बिरादरी को भड़काकर प्रदेश की योगी सरकार के खिलाफ किया जा सके। लेकिन शायद प्रदेश का जाट समुदाय राकेश टिकैत की बहलाने फुसलाने वाली बातों में आने वाला नहीं है। क्योंकि इस बार मंच से किसानों की बातों से ज्यादा जाति और धर्म की बातें हो रही थीं। तो राकेश टिकैत की मंशा स्पष्ट नजर आ रही थी।
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उत्तर प्रदेश में लगभग 5 परसेंट के आसपास जाट हैं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक कहावत है कि जिसके जाट उसके ठाठ. अब इसी बात को राकेश टिकैत सीरियसली ले लिए हैं। लेकिन भाजपा में इस वक्त पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बड़े जाट नेता मौजूद हैं। तो शायद ही जाटों को भड़काने में राकेश टिकैत सफल हो पाएँ। मतलब जाट नेताओं को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बारे में उलट हो जाता है। यहां न तो अजीत सिंह और न हीं राकेश – नरेश टिकैत वो बन पाए हैं जो उनके पिता हुआ करते थे। जब अजीत सिंह जैसों को पश्चिमी उत्तर के समझदार जाटों ने धूल-धूसरित कर दिया तो फिर राकेश टिकैत क्या हैंं।
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2014 से अब तक जाट भाजपा के साथ
अगर 2014 के लोकसभा चुनाव से लेकर 2021 तक के पंचायत चुनाव पर बारीकी से नजर डाली जाए तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जाट समुदाय मजबूती से भाजपा के साथ खड़ा नजर आ रहा है। ये बात तब भी सिद्ध हो गई थी जब 2017 में प्रचंड बहुमत से उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी थी।
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जाटलैंड में कितने जाट
जाटलैंट कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अगर बारीकी से नजर डाली जाए तो जाटों की संख्या लगभग 17 परसेंट के आसपास है। वहीं पूरे उत्तर प्रदेश में जाटों की संंख्या लगभग 5 परसेंट के आसपास है। मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, कैराना, मेरठ, बागपत, मथुरा, बिजनौर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, बुलंदशहर, हाथरस, अलीगढ़, नगीना, फिरोजाबाद और फतेहपुरसीकरी वो लोकसभा सीटें हैं जहां जाटों की संख्या अच्छी खासी मानी जाती है। वही अगर विधानसभा सीटों की बात की जाए तो 120 सीटें हैं जहां जाटों का बाहुल्य है।
स्तंभकार पूर्व संपादक हैं
यह लेखक की खुद की राय है
अब जाटों की इसी बड़ी संख्या पर राकेश टिकैत की नजर लगी हुई है। लेकिन राकेश टिकैत इस संख्या को सपा, बसपा या कांग्रेस की तरफ मोड़ने में कभी सफल नहीं हो सकते हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश का जाट समुदाय मजबूती से भाजपा के साथ खड़ा हुआ नजर आ रहा है, और पूरी संभावना है कि जाट समुदाय 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का पूरा समर्थन करेगा। जैसा कि वो 2014 से भाजपा के साथ है।