जेएनयू और आईआईटी दोनों जगह घर
दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) काफी वक्त से फीस बढ़ाने को लेकर विवादों में है. प्रशासन का तर्क है कि फिलहाल छात्रों की होस्टल वगैरह की फीस काफी कम है जिसे बढ़ाया जाना जरूरी था. लेकिन छात्र इसे गलत बता रहे हैं. वहीं, जेएनयू छात्रसंघ ने अब वाइस चांसलर एम. जगदीश कुमार के 2 सरकारी घर रखने का मुद्दा उठाया है.
4 साल से जेएनयू और आईआईटी दोनों जगह घर
जेएनयू में वीसी बनने से पहले कुमार आईआईटी दिल्ली में प्रोफेसर रहे हैं. जेएनयू छात्रसंघ का कहना है कि वीसी ने पिछले 4 साल से जेएनयू और आईआईटी दोनों जगह घर ले रखा है. वे आईआईटी में मिले क्वार्टर के लिए मामूली किराया देते हैं.
जेएनयू छात्रसंघ ने ट्विटर पर लिखा- ‘वीसी ने जेएनयू कैंपस में घर होने के बावजूद आईआईटी दिल्ली में भी सरकारी घर को अपने पास रखा है. इससे इंस्टीट्यूट का खर्च बढ़ता है जो टैक्स के पैसे से चलते हैं. जबकि आईआईटी दिल्ली में 500 फैकल्टी हैं और सिर्फ 300 घर. ऐसे में इंस्टीट्यूट कई फैकल्टी को घर देने में नाकाम रहता है और उन्हें पैसे देने पड़ते हैं.’
महज 1200 रुपये महीने किराया
छात्रसंघ का कहना है- ‘वीसी ने आईआईटी का जो घर अपने पास रखा है, उसका मार्केट रेन्ट 90,000 रुपये है. लेकिन वीसी महज 1200 रुपये महीने मामूली किराया चुकाते हैं. उन्होंने इसे अनैतिक तौर से अपने पास रखा है. क्यों वीसी को टैक्सपेयर्स के पैसे बर्बाद करने दिए जा रहे हैं?’
90 हजार प्रति माह लिए जाते हैं
एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर आईआईटी दिल्ली का कोई फैकल्टी इस्तीफा देकर प्राइवेट इंस्टीट्यूट जॉइन करता है और थोड़े समय के लिए क्वार्टर रखना चाहता है तो उससे 90 हजार प्रति माह लिए जाते हैं.
ये नियम था पहले
- आईआईटी दिल्ली में पहले ये नियम था कि अगर किसी प्रोफेसर की नियुक्ति किसी सेंट्रल यूनिवर्सिटी में वीसी के तौर पर होती है या वे किसी अन्य आईआईटी के डायरेक्टर बनते हैं तो वे 5 सालों तक क्वार्टर अपने पास रख सकते हैं.
- 2017 में आईआईटी दिल्ली ने नियम बदल दिया.
- बदलाव के बाद अन्य केंद्रीय संस्थानों में नियुक्ति के बाद फैकल्टी के लिए क्वार्टर रखने की समयसीमा 5 साल से घटाकर एक साल कर दी गई.