इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.
जो कोई भी सच्चे मन से आमलकी एकादशी का व्रत करता है उसे एक हजार गौदान के फल के बराबर पुण्य मिलता है. पौराणिक मान्यता है कि श्री हरि विष्णु को समर्पित इस एकादशी का व्रत करने वाले भक्त को हर कार्य में सफलता मिलती है और अंत में वे विष्णुलोक को जाते हैं.
होली (Holi) से चार दिन पहले मनाई जाने वाले इस एकादशी (Ekadashi) का पौराणिक महत्व बहुत ज्यादा है. मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.
एकादशी कब है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार आमलकी एकादशी फाल्गुन माह के कृष्ण शुक्ल पक्ष को आती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल फरवरी या मार्च महीने में मनाई जाती है. इस बार आमलकी एकादशी 6 मार्च को है.
आमलकी एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
आमलकी एकादशी की तिथि: 6 मार्च 2020
एकादशी तिथि प्रारंभ: 5 मार्च 2020 को दोपहर 1 बजकर 18 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 6 मार्च 2020 को सुबह 11 बजकर 47 मिनट तक
पारण का समय: 7 मार्च 2020 को सुबह 6 बजकर 40 मिनट से 9 बजकर 1 मिनट तक
महत्व
आमलकी एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है. आमलकी यानी कि आंवला. आपको बता दें कि शास्त्रों में आंवला को श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है. मान्यता है कि श्री हरि विष्णु ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया, उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया. आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है. इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है. मान्यता है कि आमलकी एकादशी के दिन आंवला और श्री हरि विष्णु की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि जो लोग स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं, उनको आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए. कहते हैं कि आंवला भगवान विष्णु का प्रिय फल है. आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का निवास माना जाता है.
पूजा विधि
- आमलकी एकादशी से एक दिन पहले यानी कि दशमी को रात के समय भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए.
- एकादशी के दिन सबसे पहले नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- अब घर के मंदिर में विष्णु की प्रतिमा के सामने हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर व्रत का संकल्प करें.
- संकल्प लेते हुए इस प्रकार कहें, “मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता/रखती हूं. मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो इसके लिए श्री हरि मुझे अपनी शरण में रखें.”
- अब विधि-विधान से श्री हरि विष्णु की पूज करें.
- सबसे पहले विष्णु की प्रतिमा को स्नान कराएं और पोंछकर स्वच्छ वस्त्र पहनाएं.
- अब विष्णु को पुष्प, ऋतु फल और तुलसी दल चढ़ाए.
- इसके बाद श्री हरि विष्णु की आरती उतारें और उन्हें प्रणाम करें.
- अब विष्णु की प्रतिमा को भोग लगाएं.
- विष्णु की पूजा करने के बाद पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें.
- आंवले के वृक्ष की पूजा से पहले सबसे पहले वृक्ष के चारों ओर की भूमि साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें.
- पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें.
- इस कलश में देवताओं, तीर्थों और सागर को आमंत्रित करें.
- कलश में पंच रत्न रखें. इसके ऊपर पंच पल्लव रखें और फिर दीप जलाकर रखें.
- कलश पर श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं.
- अब कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की मूर्ति स्थापित करें और विधिवत पूजा करें.
- शाम के समय एक बार विष्णु जी की पूजा करें और फलाहार ग्रहण करें.
- रात्रि में भगवत कथा और भजन-कीर्तन करते हुए श्री हरि विष्णु का पूजन करें.
- अगले दिन यानी कि द्वादशी को सुबह ब्राह्मण को भोजन कराएं. उन्हें यथा शक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा करें.
- इसके बाद आप स्वयं भी भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करें.
कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बाार वैदिश नाम का नगर था, जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्ण आनंद सहित रहते थे. उस नगर में सदैव वेद ध्वनि गूंजा करती थी तथा पापी, दुराचारी तथा नास्तिक उस नगर में कोई नहीं था. उस नगर में चैतरथ नाम का चन्द्रवंशी राजा राज्य करता था. वह अत्यंत विद्वान तथा धर्मी था. उस नगर में कोई भी व्यक्ति दरिद्र व कंजूस नहीं था. सभी नगरवासी विष्णु भक्त थे और आबाल-वृद्ध स्त्री-पुरुष एकादशी का व्रत किया करते थे.
एक बार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी आई. उस दिन राजा, प्रजा तथा बाल-वृद्ध सबने हर्षपूर्वक व्रत किया. राजा अपनी प्रजा के साथ मंदिर में जाकर पूर्ण कुंभ स्थापित करके धूप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से आंवले का पूजन करने लगे और इस प्रकार स्तुति करने लगे. इसके बाद सबने उस मंदिर में रात्रि जागरण किया.
प्रात:काल होते ही सब लोग अपने घर चले गए तो बहेलिया भी अपने घर चला गया. घर जाकर उसने भोजन किया. कुछ समय बीतने के पश्चात उस बहेलिए की मृत्यु हो गई. मगर उस आमलकी एकादशी के व्रत तथा जागरण से उसने राजा विदूरथ के घर जन्म लिया और उसका नाम वसुरथ रखा गया. युवा होने पर वह चतुरंगिनी सेना सहित तथा धन-धान्य से युक्त होकर 10 हजार ग्रामों का पालन करने लगा. वह अत्यंत धार्मिक, सत्यवादी, कर्मवीर और विष्णु भक्त था. वह प्रजा का समान भाव से पालन करता था. दान देना उसका नित्य कर्तव्य था.
एक दिन राजा शिकार खेलने के लिए गया. दैवयोग से वह मार्ग भूल गया और दिशा ज्ञान न रहने के कारण उसी वन में एक वृक्ष के नीचे सो गया. थोड़ी देर बाद वहां कुछ लोग आ गए और राजा को अकेला देखकर ‘मारो, मारो…’ शब्द करते हुए राजा की ओर दौड़े. वे कहने लगे कि इसी दुष्ट राजा ने हमारे माता, पिता, पुत्र, पौत्र आदि अनेक संबंधियों को मारा है तथा देश से निकाल दिया है अत: इसको अवश्य मारना चाहिए.
ऐसा कहकर वे उस राजा को मारने दौड़े और अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र उसके ऊपर फेंके. वे सब अस्त्र-शस्त्र राजा के शरीर पर गिरते ही नष्ट हो जाते और उनका वार पुष्प के समान प्रतीत होता. अब उन लोगों के अस्त्र-शस्त्र उलटा उन्हीं पर प्रहार करने लगे जिससे वे मूर्छित होकर गिरने लगे. उसी समय राजा के शरीर से एक दिव्य स्त्री उत्पन्न हुई. वह स्त्री अत्यंत सुंदर होते हुए भी उसकी भृकुटी टेढ़ी थी, उसकी आंखों से लाल-लाल अग्नि निकल रही थी जिससे वह दूसरे काल के समान प्रतीत होती थी.
वह स्त्री उन लोगों को मारने दौड़ी और थोड़ी ही देर में उसने सबको काल का ग्रास बना दिया. जब राजा सोकर उठा तो उसने उन लोगोंको मरा हुआ देखकर कहा कि इन शत्रुओं को किसने मारा है? इस वन में मेरा कौन हितैषी रहता है? वह ऐसा विचार कर ही रहा था कि आकाशवाणी हुई, ”हे राजा! इस संसार में विष्णु भगवान के अतिरिक्त कौन तेरी सहायता कर सकता है.” इस आकाशवाणी को सुनकर राजा अपने राज्य में आ गया और सुखपूर्वक राज्य करने लगा.