RAHUL PANDEY
Big Order of High Court Regarding Distribution of Ration: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि मृतक आश्रित सेवा नियमावली राशन वितरण के मामले में लागू नहीं होगी। कोर्ट ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में अविवाहित पुत्री को परिवार में शामिल करने को संवैधानिक करार देते हुए कहा कि यह मनमानापूर्ण एवं विवाहित पुत्री से विभेदकारी नहीं है। (Big Order of High Court Regarding Distribution of Ration)
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कंट्रोल आर्डर 2016 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि (Big Order of High Court Regarding Distribution of Ration)
यह निर्णय न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी एवं न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने कुसुमलता की विशेष अपील को खारिज करते हुए दिया है। खंडपीठ ने अविवाहित पुत्री को परिवार में शामिल करने को वैध करार देने के एकल पीठ के फैसले को सही माना और मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। खंडपीठ ने कहा कि कंट्रोल आर्डर 2016 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सरकार लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली से आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को राशन वितरित कराती है। सस्ते गल्ले के दुकानदार सरकार के एजेंट होते हैं। स्थानीय निवासी को ही एजेंट रखा जाता है।
दुकान पाने के अयोग्य (Big Order of High Court Regarding Distribution of Ration)
याची विवाहित पुत्री है और दूसरे गांव की रहने वाली है इसलिए वह मृतक आश्रित कोटे में राशन की दुकान का लाइसेंस पाने के योग्य नहीं है। अपीलार्थी का कहना था कि उसके पिता नेकराम इटावा के नेवादी खुर्द गांव में सस्ते गल्ले के दुकानदार थे। उनकी मृत्यु के बाद पत्नी सुमन देवी ने आश्रित कोटे में दुकान आवंटन की अर्जी दी। बाद में स्वयं को असमर्थ बताते हुए अपनी विवाहित पुत्री के नाम आवंटन अर्जी दी। एसडीएम की अध्यक्षता में गठित समिति ने पत्नी की अर्जी खारिज कर दी और विवाहित पुत्री को स्थानीय निवासी न होने तथा विवाहित पुत्री होने के कारण दुकान पाने के अयोग्य करार दिया।
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विवाहित व अविवाहित में भेद नहीं किया जा सकता (Big Order of High Court Regarding Distribution of Ration)
इस पर यह कहते हुए याचिका की गई कि पांच अगस्त 2019 के शासनादेश के खंड 4(10) को असंवैधानिक घोषित किया जाए क्योंकि परिवार में केवल अविवाहित पुत्री को शामिल करना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। विमला श्रीवास्तव केस के हवाले से कहा कि पुत्री में विवाहित व अविवाहित में भेद नहीं किया जा सकता। एकल पीठ ने याचिका खारिज कर दी, जिसे विशेष अपील में चुनौती दी गई थी। खंडपीठ ने कहा कि याची विवाहिता पुत्री है जिसे परिवार में शामिल नहीं किया गया है और वह तहसील चकरपुर के राजपुर गांव की निवासी है। दोनों कारणों से वह आश्रित कोटे में दुकान का लाइसेंस पाने के योग्य नहीं है।