जानें कैसी होनी चाहिए मूर्ति
हिन्दू धर्म में पूजा उपासना की तमाम पद्धतियां प्रचलित हैं. इसमें साकार और निराकार दोनों की उपासना की जाती हैं. साकार ईश्वर की उपासना में मूर्ति पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. साकार ब्रह्म की उपासना बिना मूर्ति या प्रतीक के नहीं हो सकती है.
आइए जानते हैं आखिर हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा कब से प्रचलन में हैं और पूजा के लिए किस तरह की मूर्ति का चयन करना चाहिए.
कब से प्रचलन में है मूर्ति
वैदिक काल और बाद में मूर्ति पूजा का कोई साक्ष्य नहीं मिलता है. हालांकि महाभारत में इंद्र का उल्लेख जरूर किया जाता है. सबसे पहले हड़प्पा की खुदाई में पशुपति की मूर्ति के प्रमाण मिलते हैं. इसके बाद सुविधा और समर्थन के कारण, मूर्ति पूजा तेजी से प्रचलित होती गई.
क्या है जरूरत मूर्ति पूजा की
व्यक्ति का मन अत्यधिक चंचल और नकारात्मक होता है. मन को एकाग्र करने के लिए किसी आधार का प्रयोग किया जाता है और अपने आपको जोड़ने तथा एकाग्रता के लिए मूर्ति का प्रयोग होता है. मूर्ति पूजा से चीज़ें थोड़ी आसन और भावात्मक हो जाती हैं.
किस प्रकार करें मूर्ति का चुनाव …
- घर में पूजा के लिए छोटी मूर्ति का प्रयोग करें.
- यह छह इंच तक की हो तो बेहतर होगा.
- देवी देवता की मूर्ति अगर आशीर्वाद की मुद्रा में हो तो उत्तम होता है.
- मूर्ति ठीक से बनी हुई हो और सुंदर होनी चाहिए.
- युद्ध की मुद्रा या निद्रा की मुद्रा की मूर्तियों का प्रयोग न करें.
मूर्ति लाने से पहले बरतें ये सावधानियां…
- मूर्तियां मिट्टी की ही हों तो उत्तम होता है.
- जब मूर्तियां पुरानी हो जाएं या रूप खराब हो जाए तो उनका विसर्जन कर्रें.
- नदियों में विसर्जन की जगह मूर्तियों को मिटटी में भी दबा सकते हैं.
- मूर्ति पूजा को अंतिम पूजा न मानें.