जानें, क्या है खासियत , क्यों होती है भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा
आषाढ़ महीने की द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का उत्सव मनाया जाता है. अहमदाबाद में आज यानी 14 जुलाई से भगवान जगन्नाथ की 141वीं रथयात्रा शुरू हो गई है. अहमदाबाद में रथयात्रा का शुभारंभ भगवान जगन्नाथ के मुख्य मंदिर से शुरू हुआ है, जिसके बाद ये रथयात्रा सरसपुर के रणछोड़दास मंदिर तक जाएगी. इसके अलावा ओडिशा के पुरी में भी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शुरू हो चुकी है.
9 दिनों तक मनाया जाता है
इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ को साल में एक बार उनके गर्भ गृह से निकालकर यात्रा कराई जाती है. भगवान जगन्नाथ के साथ भगवान कृष्ण, उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा को भी रथ में बैठाकर यात्रा कराई जाती है. ये उत्सव पूरे 9 दिनों तक मनाया जाता है. यात्रा के पीछे यह मान्यता है कि भगवान अपने गर्भ गृह से निकलकर प्रजा के सुख-दुख को खुद देखते हैं.
ये है भगवान जगन्नाथ और उनकी रथयात्रा का रहस्य
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निर्मित किए जाते हैं. रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है. इसे उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है.
पुरी में बना जगन्नाथ मंदिर भारत में हिंदुओं के चार धामों में से एक है. यह धाम तकरबीन 800 सालों से भी ज्यादा पुराना माना जाता है. भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलरामजी का तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है.
ओडिसा की पुरी जगन्नाथ यात्रा का महत्व
- ओडिशा के पुरी की रथयात्रा सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है. पुराणों में जगन्नाथ पुरी को धरती का बैकुंठ कहा गया है.
- ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार, पुरी में भगवान विष्णु ने पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतार लिया था.
- वह यहां सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए. सबर जनजाति के देवता होने की वजह से यहां भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं की तरह है.
- ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर की महीमा देश में ही नहीं विश्व में भी प्रसिद्ध हैं.
जगन्नाथ पुरी मंदिर से जुड़ी कुछ ऐसी चमत्कारी बातें हैं जो सभी को आश्चर्यचकित कर देती हैं-
- जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर स्थित झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है.
- हमने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे और उड़ते देखे हैं. जगन्नाथ मंदिर की यह बात आपको चौंका देगी कि इसके ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता. यहां तक कि हवाई जहाज भी मंदिर के ऊपर से नहीं निकलता.
- इसी तरह मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है. इस चक्र को किसी भी दिशा से खड़े होकर देखने पर ऐसा लगता है कि चक्र का मुंह आपकी तरफ है.
- मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं. यह प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी पर ही पकाया जाता है. इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है फिर नीचे की तरफ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है.
- मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखने पर ही आप समुद्र की लहरों से आने वाली आवाज को नहीं सुन सकते. आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देने लगती है. यह अनुभव शाम के समय और भी अलौकिक लगता है.
- मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता साथ ही मंदिर के पट बंद होते ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है.
- दिन के किसी भी समय जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती.
- एक पुजारी मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदलता है. ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा.
- आमतौर पर दिन में चलने वाली हवा समुद्र से धरती की तरफ चलती और शाम को धरती से समुद्र की तरफ. चकित कर देने वाली बात यह है कि पुरी में यह प्रक्रिया उल्टी है.