भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी (AjaEkadashi) कहा जाता है। इस वर्ष अजा एकादशी व्रत 03 सितंबर दिन शुक्रवार को है। इस दिन व्रत करने और भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति एक अश्वमेघ यज्ञ कराने से अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है। पापों का नाश होता है और बैकुण्ठ की प्राप्ति होती है। अजा एकादशी व्रत के पूजा के समय आप को व्रत कथा का श्रवण या पाठ जरुर करना चाहिए। ऐसा करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
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आइए जानते हैं अजा एकादशी व्रत कथा के बारे में…
बहुत समय पहले एक चक्रवर्ती राजा हरिश्चंद्र थे। एक बार उनके जीवन में कुछ ऐसी परिस्थितियां बनीं, जिसके कारण उनका सारा राजपाट चौपट हो गया, स्त्री, पुत्र, परिवार छूट गए। स्वयं को भी बेचकर एक चांडाल का दास बन गए। वह एक सत्यवादी व्यक्ति थे। सदा सत्य बोलते थे। वे सोचते थे कि वे क्या करें, जिससे सब कुछ पहले जैसा हो जाए। उनका और उनके परिवार का उद्धार हो जाए।
एक दिन वे बैठे हुए थे, तभी गौतम ऋषि उनके समक्ष आ गए। हरिश्चंद्र ने उनको प्रणाम किया। उन्होंने गौतम ऋषि से अपने मन की व्यथा बताई। उनके मन की पीड़ा सुनकर उन्होंने कहा कि आज से सात दिन बाद भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी आने वाली है।
आपको विधि विधान से अजा एकादशी का व्रत करना चाहिए। इससे आपके सभी पापों का नाश हो जाएगा और आपकी पीड़ा भी दूर हो जाएगा। ऐसा कहकर वे वहां से चले गए। गौतम ऋषि के सुझाव के अनुसार, राजा हरिश्चंद्र ने अजा एकादशी का व्रत विधि विधान से किया। भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा की। रात्रि के समय में भगवत जागरण किया।
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अजा एकादशी व्रत के पुण्य से राजा हरिश्चंद्र के सभी पाप नष्ट हो गए। आसमान से पुष्प वर्षा होने लगी। उनको उनका परिवार और राजपाट दोबारा प्राप्त हो गया। मृत्यु पश्चात उनको बैकुण्ठ की प्राप्ति हुई।