Lord Shiva: भगवान शिव के पांच मुख में अघोर, सद्योजात, तत्पुरुष, वामदेव और ईशान शामिल हैं। इसलिए उन्हें पंचानन (Panchanan) या पंचमुखी (Panchmukhi) भी कहा जाता है। शिवजी के इन सभी मुख में तीन नेत्र भी हैं। इसी प्रकार शंकर जी के 11वें रुद्रावतार हनुमान जी के भी पांच मुख हैं। भगवान शिव का ही अवतार होने के कारण शिवजी की शक्ति भी हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप में समाई हुई हैं।(Lord Shiva)
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पंचानन रूप की कथा (Lord Shiva)
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु ने अत्यंत मनोहर किशोर रूप धारण किया। उनके इस मनमोहक रूप को देखने के लिए चतुरानन ब्रह्मा, बहुमुख वाले अनंत आदि सभी देवतागण प्रकट हुए। उन सभी ने अपने अनेक मुखों से भगवान के इस रूप माधुर्य का आनंद लिया और प्रशंसा भी की। ये देख शिवजी सोचने लगे कि यदि मेरे भी अनेक मुख और नेत्र होंते तो मैं भी भगवान के इस किशोर रूप का सबसे अधिक दर्शन करता जिससे मुझे भी अधिक आनंद का सौभाग्य प्राप्त होता।
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शिवजी के मन में यह इच्छा जागृत हुई और उन्होंने पंचमुखी रूप ले लिया। तभी से उन्हें पंचानन के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव के पंखमुखी रूप को लेकर शिवपुराण में भी वर्णन मिलता है जिसमें भगवान शिव कहते हैं कि सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह ये पांच कृत्य या कार्य मेरे ही पांच मुखों द्वारा धारित हैं।
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महत्व(Lord Shiva)
कहा जाता है कि भगवान शिव के पांच मुख में चार मुख चारों दिशाओं में और एक मध्य में है। भगवान शिव के पश्चिम दिशा का मुख सद्योजात बालक के समान स्वच्छ, शुद्ध व निर्विकार हैं। उत्तर दिशा का मुख वामदेव अर्थात विकारों का नाश करने वाला। दक्षिण मुख अघोर अर्थात निन्दित कर्म करने वाला। निन्दित कर्म करने वाला भी शिव की कृपा से निन्दित कर्म को शुद्ध बना लेता हैं। वहीं, शिव के पूर्व मुख का नाम तत्पुरुष अर्थात अपने आत्मा में स्थित रहना। ऊर्ध्व मुख का नाम ईशान अर्थात जगत का स्वामी है।
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