Mahabharat : महाभारत (Mahabharat) का युद्ध होने के पीछे द्रौपदी के चीरहरण की घटना एक मुख्य कारण थी और उससे भी बड़ा कारण इसपर बड़े-बड़े विद्वानों का चुप रहना था। Mahabharat
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अर्जुन ने की बाणों की बरसात
भीष्म पितामह जानते थे कि इस युद्ध में पांडव धर्म के लिए युद्ध लड़ रहे हैं, वहीं कौरव अधर्म का साथ दे रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी अपने कर्तव्य से बंधे होने के कारण भीष्म पितामह को रणभूमि में कौरवों का साथ देना पड़ा। युद्ध के दौरान अर्जुन ने भीष्म पितामह पर बाणों की बरसात कर उन्हें बाण शय्या पर लेटा दिया था।
इच्छामृत्यु का वरदान
भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, इसलिए अत्यंत पीड़ा के बाद भी उन्होंने प्राण त्यागने के लिए 58 दिनों का इंतजार किया। बाण शय्या पर लेटे हुए भी भीष्म पितामह ने पांडवों को कई मूल्यवान बातें बताई थीं। जब भीष्म पितामह बाण शय्या पर लेटे हुए थे, तब द्रौपदी भी उनसे मिलने पहुची।
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दिया यह उत्तर
इस दौरान द्रौपदी ने भीष्म पितामह से यह प्रश्न किया कि आखिर क्यों वह चीरहरण जैसे कृत्य पर भी चुप रहे और उसे रोकने का प्रयास नहीं किया। तब भीष्म पितामह ने आत्मग्लानि के भरकर उत्तर देते हुए कहा कि मैं जानता था कि मुझे एक दिन इस प्रश्न का उत्तर देना पड़ेगा। आगे उन्होंने कहा कि व्यक्ति जैसा अन्न खाता है, उसका मन भी वैसा ही हो जाता है। जब मेरी आंखों के सामने चीरहरण जैसा अधर्म हो रहा था, तब भी मैं उसे नहीं रोक पाया। क्योंकि मेने दुर्योधन का अन्न खाया था, जिस कारण मेरा मन और मस्तिष्क उसी के अधीन हो गया था।
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