Maharani 3 Review : सोनी लिव की बहुप्रतीक्षित वेब सीरीज ‘ Maharani’ का तीसरा सीजन OTT पर स्ट्रीम हो रहा है। इस सीरीज की कहानी सीजन दो के आगे की है जिसमें रानी भारती राजनीतिक दंगल की बहुत बड़ी खिलाड़ी बनकर उभरी हैं।
सीरीज के क्रिएटर सुभाष कपूर ने इस बार निर्देशन की जिम्मेदारी सौरभ भावे दी है जो सुभाष कपूर की सोच को लेकर आगे बढ़े हैं। इससे पहले वेब सीरीज ‘महारानी’ के पहले सीजन का निर्देशन करण शर्मा, दूसरे सीजन का निर्देशन रवींद्र गौतम कर चुके हैं।
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वेब सीरीज ‘महारानी सीजन 3’ (Maharani 3) की कहानी वहीं से शुरू होती है जहां पर पिछले सीजन की कहानी खत्म हुई थी। रानी भारती तीन साल से जेल में हैं। रानी भारती के राजनीतिक सलाहकार मिश्राजी रानी भारती को बार – बार जमानत पर जेल से बाहर आने की सलाह देते हैं, लेकिन रानी भारती हर बार मना कर देती हैं। इसी बीच जब रानी भारती के बच्चों पर जानलेवा हमला होता है, तब वह जमानत पर बाहर आती हैं। रानी भारती के विरोधियों को लगता है कि जेल में रहकर वह अपनी पढ़ाई पूरी कर रही हैं,ले किन इस आड़ में वह जेल में अपनी सेना तैयार करती हैं और जेल से बाहर आने के बाद ना सिर्फ खुद को पति की हत्या के आरोप से बेकसूर साबित करती है बल्कि अपने विरोधियों को पटकनी देते हुए एक बार फिर बिहार के सियासत की महारानी बनती हैं।
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सियासत की खिलाड़ी
इस सीरीज के पहले सीजन में एक अनपढ़ और घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियों में डूबी महिला के मुख्यमंत्री बनने और प्रदेश की राजनीति में छा जाने की कहानी दिखायी गई थी। दूसरे सीजन में आरक्षण और अलग झारखंड राज्य की मांग को प्रमुख स्थान दिया गया है। और, अब तीसरे सीजन में रानी भारती को सियासत की खिलाड़ी के रूप मे दिखाया गया है, जिसकी सियासी चाल से राजनीति के अखाड़े के बड़े -बड़े धुरंधर चकमा खा जाते हैं। इस सीरीज की मूल कड़ी रानी भारती और नवीन कुमार हैं।
पटकथा कसी और संवाद रोचक
सीरीज के क्रिएटर सुभाष कपूर ने इस सीरीज की कहानी नंदन सिंह और उमा शंकर सिंह के साथ मिलकर लिखी है। पटकथा कसी हुई और संवाद रोचक हैं। एक कहावत है कि सूर्य, चंद्र और सत्य को कभी भी छुपाया नहीं जा सकता है, पूरी सीरीज इसी कहावत के इर्द -गिर्द घूमती है।
रानी भारती और नवीन कुमार अपनी -अपनी राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए किस तरह से एक दूसरे पर वार करते हैं, यही इस सीरीज का मूल सार है। राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोग बिहार की राजनीति से अच्छी तरह से परिचित होंगे। भले इस सीरीज की कहानी, किरदार, स्थान, घटनाएं, रहन-सहन, कानूनी-प्रक्रियाएं, धार्मिक मान्यताएं सब काल्पनिक बताए जा रहे हैं, लेकिन सीरीज देखने के बाद साफ पता चलता है कि कलाकार किन किरदारों को निभा रहे हैं।
कहानी को जबरन खींचा
तीसरा सीजन आठ एपिसोड का ही है। इस बार कहानी में कुछ ज्यादा कहने को नहीं है, बीच के कुछ एपिसोड की रफ्तार बहुत धीमी है। ऐसा लगता है कि कहानी को जबरन खींचा जा रहा है, बावजूद इसके बिहार की सामाजिक और राजनीतिक घटनाक्रमों इस सीरीज में जिस तरह से पेश किया गया है,वह काफी रोचक लगते हैं।
राज्यपाल की भूमिका में अतुल तिवारी खरे उतरे सीरीज में कलाकारों के अभिनय प्रदर्शन की जहां तक बात है तो हुमा कुरैशी एक बार फिर रानी भारती के किरदार में जबरदस्त नजर आई हैं। इस बार उनके ऊपर दबाव कुछ ज्यादा है, लेकिन वह दर्शकों की अपेक्षाओं पर खरी उतरी हैं। उन्होंने अपने दमदार अभिनय प्रदर्शन की बदौलत पूरी सीरीज को शानदार बनाने में अहम भूमिका निभाई है।
इस सीरीज के दूसरे सबसे मजबूत कड़ी अमित सियाल (Amit Sial) हैं, नवीन कुमार की भूमिका में उनका अभिनय अच्छा है। राज्यपाल की भूमिका में अतुल तिवारी, राजनीतिक सलाहकार मिश्रा जी की भूमिका में प्रमोद पाठक के अलावा दिव्येंदु भट्टाचार्य, कनी कुश्रुति, विनीत कुमार और अनुजा साठे अपनी अपनी भूमिकाओं में खरे उतरे हैं। सोहम शाह इस बार सिर्फ एक ही सीन में नजर आए हैं।