पितृ पक्ष की नवमी तिथि को मातृ नवमी (Matri Navami) या सौभाग्यवती नवमी कहा जाता है। 30 सितंबर दिन गुरुवार को आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि है। इस अनुसार 30 सितंबर को मातृ नवमी है। मातृ नवमी श्राद्ध बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन माता पक्ष का श्राद्ध करने से व्यक्ति मातृ ऋण से मुक्त हो जाता है। जो लोग माता पक्ष का श्राद्ध नहीं करते हैं, उनको मातृ दोष का भागी बनना पड़ सकता है। पितृ दोष की तरह ही मातृ दोष भी होता है।
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आइए जानते हैं कि मातृ नवमी के दिन किनका श्राद्ध होता है…
मातृ नवमी श्राद्ध
मातृ नवमी (Matri Navami) के दिन माता पक्ष (वह चाहे दादी पक्ष हो या फिर नानी पक्ष का) का श्राद्ध कर्म किया जाता है। मातृ नवमी का दिन परिवार के मातृ पितरों से जुड़ा होता है। उनकी आत्म तृप्ति के लिए इस दिन पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण कर्म किए जाते हैं। मातृ पक्ष में आपको अपनी माता, दादी, परदारी, नानी आदि का श्राद्ध करना होता है।
मातृ नवमी श्राद्ध तिथि
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि का प्रारंभ आज रात 0 8 बजकर 29 मिनट से हो रहा है। इस तिथि का समापन 30 सितंबर दिन गुरुवार को रात 10 बजकर 08 मिनट पर होना है।
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कब करें मातृ नवमी श्राद्ध
श्राद्ध कर्म के लिए दिन में 11 बजे से लेकर दोपहर 02 बजकर 30 मिनट तक के समय काल को उत्तम माना गया है। इस समय में आपको अपने मातृ पक्ष का श्राद्ध कर्म करना चाहिए। श्राद्ध में कौआ, कुत्ता, पक्षी, चींटी, ब्राह्मण आदि को भोजन कराया जाता है।
पशु पक्षियों को भोजन देने के पीछे मान्यता यह है कि हमारे पितर जब पितृ लोक से पृथ्वी पर आते हैं, तो वे इन जीवों के माध्यम से ही श्राद्ध का भोजन ग्रहण करते हैं। इस वजह से ही हर वर्ष पितृ पक्ष में इन जीवों को भोजन दिया जाता है।
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मातृ नवमी को क्यों कहते हैं सौभाग्यवती नवमी
दरअसल माता पक्ष भी निधन के बाद पितर बनती हैं। नवमी श्राद्ध या मातृ नवमी के दिन विधि विधान से जब वे अपने वंश के किए श्राद्ध से तृप्त हो जाती हैं, तो प्रसन्न होकर वंश वृद्धि, सुख, समृद्धि, सौभाग्य एवं मनोकामनाओं की पूर्ति का आशीर्वाद देती हैं। इस वजह से मातृ नवमी (Matri Navami) को सौभाग्यवती नवमी भी कहा जाता है।