निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का व्रत सभी एकादशियों के व्रत (VRAT) में विशेष और सबसे कठिन भी है। हिंदी पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है। इसे पाण्डव एकादशी या फिर भीमसेन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष ये तिथि 21 जून को पड़ रही है। मान्यता है कि निर्जला एकादशी का व्रत रखने से सभी एकादशियों के व्रत का फल मिलता है परन्तु व्रत के नियमानुसार निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा पूरे दिन जल का त्याग करना पड़ता है।
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आज हम निर्जला एकादशी की व्रत कथा के बारे में जानते हैं…
व्रत कथा
यह घटना महाभारत की है जब पाण्डव अज्ञातवास के दौरान ब्राह्मणों के रूप में रह रहे थे। सभी पाण्डव नियमित रूप से एकादशी का व्रत रखते थे परन्तु भीमसेन से भूख बर्दाश्त नहीं होती थी। भीम सही तरीके से व्रत पूरा नहीं कर पाते थे, इससे भीम के मन में बहुत ग्लानि होने लगी। उन्होनें इस समस्या का हल निकालने के लिए महर्षि वेद व्यास जी का स्मरण किया। अपनी समस्या व्यास जी के सामने रखी। व्यास जी ने भीम को पुराणों में वर्णित निर्जला एकादशी के बारे में बताया और कहा कि निर्जला एकादशी का व्रत सभी एकादशियों के व्रत में सबसे कठिन है परन्तु इसको पूरा करने से सभी एकादशियों के व्रत का फल एक साथ मिल जाता है।
भीमसेन ने पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का व्रत रखा और अपनी ग्लानी से मुक्ति पाई। इस दिन से ही निर्जला एकादशी को पाण्डव एकादशी या भीमसेन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
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महत्व
भगवान विष्णु को समर्पित निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) व्रत नियमपूर्वक रखने से व्यक्ति के न केवल वर्ष भर की सभी एकादशी के व्रत का फल मिलता है बल्कि विष्णु लोक की भी प्राप्ति का द्वार खुल जाता है। व्यक्ति के समस्त पाप कर्म निष्फल हो जाते हैं।