#Navratri का पहला दिन, जानें कलश स्थापना की सही जगह और शुभ मुहूर्त
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आज 18 मार्च से चैत्र नवरात्रि आरंभ होने जा रही है. नवरात्रि के यह 9 दिन मां दुर्गा की पूजा व उपासना के दिन होते हैं. कई श्रद्धालु इन दिनों में अपने घर पर मंगल घटस्थापना करते हैं. अखंड ज्योति जलाते हैं. नौ दिनों का उपवास रखते हैं. आइए जानते हैं चैत्र नवरात्रि 2018 के मंगल कलश स्थापना का शुभमुहूर्त एव दीपज्योति प्रज्वलन का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त…
आज प्रात: 9:30 से 12:30 तक शुभ मुहूर्त है. अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:03 से 12:51 तक है और सायंकाल का शुभ मुहूर्त 6:30 से 9:30 बजे तक है.
घटस्थापना की सही दिशा-
- ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) देवताओं की दिशा माना गया है. इसी दिशा में माता की प्रतिमा तथा घट स्थापना करना उचित रहता है.
- माता प्रतिमा के सामने अखंड ज्योति जलाएं तो उसे आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण) में रखें. पूजा करते समय मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें.
- घट स्थापना चंदन की लकड़ी पर करें तो शुभ होता है. पूजा स्थल के आस-पास गंदगी नहीं होनी चाहिए.
घटस्थापना में ध्यान रखें ये जरूरी बातें-
- ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) देवताओं की दिशा माना गया है. इसी दिशा मेंमाता की प्रतिमा तथा घट स्थापना करना उचित रहता है.
- माता प्रतिमा के सामने अखंड ज्योति जलाएं तो उसे आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण) में रखें. पूजा करते समय मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें.
- घट स्थापना चंदन की लकड़ी पर करें तो शुभ होता है. पूजा स्थल केआस-पास गंदगी नहीं होनी चाहिए.
- कई लोग नवरात्रि में ध्वजा भी बदलते हैं. ध्वजा की स्थापना घर की छतपर वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) में करें.
- पूजा स्थल के सामने थोड़ा स्थान खुला होना चाहिए, जहां बैठकर ध्यान व पाठ आदि किया जा सके.
- घट स्थापना स्थल के आस-पास शौचालय या बाथरूम नहीं होना चाहिए. पूजा स्थल के ऊपर यदि टांड हो तो उसे साफ-सुथरा रखें.
कैसे करें घटस्थापना?
- घटस्थापना हमेशा शुभ मुहूर्त में करनी चाहिए.
- नित्य कर्म और स्नान के बाद ध्यान करें.
- इसके बाद पूजन स्थल से अलग एक पाटे पर लाल व सफेद कपड़ा बिछाएं.
- इस पर अक्षत से अष्टदल बनाकर इस पर जल से भरा कलश स्थापित करें.
- इस कलश में शतावरी जड़ी, हलकुंड, कमल गट्टे व रजत का सिक्का डालें.
- दीप प्रज्ज्वलित कर इष्ट देव का ध्यान करें.
- तत्पश्चात देवी मंत्र का जाप करें.
- अब कलश के सामने गेहूं व जौ को मिट्टी के पात्र में रोंपें.
- इस ज्वारे को माताजी का स्वरूप मानकर पूजन करें.
- अंतिम दिन ज्वारे का विसर्जन करें.