व्रत के प्रभाव से संतान की प्राप्ति होती है
हिन्दू धर्म में पौष पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व है. हिन्दू पंचांग के अनुसार, साल में 24 एकादशियां पड़ती हैं, जिनमें से दो को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. पुत्रदा एकादशी श्रावण और पौष शुक्ल पक्ष में पड़ती हैं. दोनों ही एकादशियों का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान की प्राप्ति होती है. पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद. पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं.
कब है पुत्रदा एकादशी
अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार पौष शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी दिसंबर या जनवरी महीने में आती है. इस बार यह एकादशी 6 जनवरी 2020 को है.
तिथि और मुहूर्त
पौष पुत्रदा एकादशी की तिथि: 6 जनवरी 2020
एकादशी तिथि प्रारम्भ: 6 जनवरी 2020 को सुबह 3 बजकर 6 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 7 जनवरी 2020 को सुबह 4 बजकर 2 मिनट तक
पारण (व्रत तोड़ने का) की तिथि और समय: 7 जनवरी 2020 को दोपहर 1 बजकर 30 मिनट से दोपहर 3 बजकर 55 मिनट तक
महत्व
सभी एकादशियों में पुत्रदा एकादशी का विशेष स्थान है. मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से योग्य संतान की प्राप्ति होती है. इस दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की आराधना की जाती है. कहते हैं कि जो भी भक्त पुत्रदा एकादशी का व्रत पूरे तन, मन और जतन से करते हैं उन्हें संतान रूपी रत्न मिलता है. ऐसा भी कहा जाता है कि जो कोई भी पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा पढ़ता है, सुनता है या सुनाता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है.
व्रत विधि
- एकादशी के दिन सुबह उठकर भगवान विष्णु का स्मरण करें.
- फिर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- अब घर के मंदिर में श्री हरि विष्णु की मूर्ति या फोटो के सामने दीपक जलाकर व्रत का संकल्प लें और कलश की स्थापना करें.
- अब कलश में लाल वस्त्र बांधकर उसकी पूजा करें.
- भगवान विष्णु की प्रतिमा या फोटो को स्नान कराएं और वस्त्र पहनाएं.
- अब भगवान विष्णु को नैवेद्य और फलों का भोग लगाएं.
- इसके बाद विष्णु को धूप-दीप दिखाकर विधिवत् पूजा-अर्चना करें और आरती उतारें.
- पूरे दिन निराहार रहें. शाम के समय कथा सुनने के बाद फलाहार करें.
- दूसरे दिन ब्राह्मणों को खाना खिलाएं और यथा सामर्थ्य दान देकर व्रत का पारण करें.
नियम
- जो लोग पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहते हैं उन्हें एक दिन पहले यानी कि दशमी के दिन से व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए.
- दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण न करें और रात में सोने से पहले भगवान विष्णु का ध्यान करें.
- व्रत के दिन पानी में गंगाजल डालकर स्नान करना चाहिए.
- दशमी और एकादशी के दिन मांस, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल का सेवन वर्जित है.
- रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए.
- एकादशी के दिन गाजर, शलजम, गोभी और पालक का सेवन न करें.
व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था. उसके कोई पुत्र नहीं था. उसकी स्त्री का नाम शैव्या था. वह निपुत्री होने के कारण सदैव चिंतित रहा करती थी. राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा. राजा को भाई, बांधव, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री इन सबमें से किसी से भी संतोष नहीं होता था. वह सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा. बिना संतान के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूंगा. जिस घर में संतान न हो उस घर में सदैव अंधेरा ही रहता है. इसलिए संतान उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए.
जिस मनुष्य ने संतान का मुख देखा है, वह धन्य है. उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात उनके दोनों लोक सुधर जाते हैं. पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में संतान, धन आदि प्राप्त होते हैं. राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था. एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया. एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा. उसने देखा कि वन में मृग, व्याघ्र, सूअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं. हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है.
इस वन में कहीं तो गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं, कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं. वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया. इसी प्रकार आधा दिन बीत गया. वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त हुआ, क्यों?
राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा. थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा. उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे. उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे. उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे. राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया. राजा को देखकर मुनियों ने कहा- “हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं. तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो.” राजा ने पूछा- “महाराज आप कौन हैं, और किसलिए यहां आए हैं. कृपा करके बताइए.” मुनि कहने लगे, “हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं.”
मान्यता है कि संतान की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए. कहते हैं कि जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है.
मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया. इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया. कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ. वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ.