पितरों को तृप्त करने और उनकी आत्मा की शांति
#PitraPaksha : पितरों को तृप्त करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष PitraPaksha में श्राद्ध करने का विशेष महत्व माना जाता है. हिंदू पंचांग के मुताबिक, अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पितृ पक्ष पड़ते हैं. इसकी शुरुआत पूर्णिमा तिथि से होती है, जबकि समाप्ति अमावस्या पर होती है.
अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक इस साल पितृ पक्ष 1 सितंबर से शुरू हो रहे हैं और 17 सिंतबर को अमावस्या Amavasya के साथ खत्म हो रहे हैं. पितृ पक्ष PitraPaksha के दौरान लोग कुछ विशेष नियमों का पालन करते हैं. माना जाता है कि यदि इन नियमों का पालन न किया जाए तो पितृ नाराज हो जाते हैं और उनकी आत्मा को कष्ट पहुंचता है.
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नियम
पितृपक्ष PitraPaksha में रोज तर्पण Tarpan किया जाता है. तर्पण करने के लिए आपको दूध, पानी, जौ, चावल और गंगाजल की जरूरत है.
इस दौरान पिंड दान करना चाहिए. श्राद्ध कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं. पिंड को शरीर का प्रतीक माना जाता है.
इस दौरान किसी प्रकार के शुभ कार्य, विशेष पूजा-पाठ और अनुष्ठान नहीं किए जाते हैं. हालांकि, देवताओं की नित्य पूजा जरूर की जानी चाहिए.
श्राद्ध के दौरान पान खाने, तेल लगाने और संभोग करने की मनाही होती है.
इन दिनों में रंगीन फूलों का इस्तेमाल करना भी वर्जित होता है.
पितृ पक्ष में चना, मसूर, बैंगन, हींग, शलजम, मांस, लहसुन, प्याज और काला नमक भी नहीं खाना चाहिए,
इस समय में कई लोग नए वस्त्र या सामान आदि भी नहीं खरीदते हैं.
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श्राद्ध की तिथियां
1 सितंबर- पूर्णिमा का श्राद्ध, 2 सितंबर- प्रतिपदा का श्राद्ध, 3 सितंबर- द्वितीया का श्राद्ध, 5 सितंबर- तृतीया का श्राद्ध, 6 सितंबर- चतुर्थी का श्राद्ध, 7 सितंबर- पंचमी का श्राद्ध, 8 सितंबर- षष्ठी का श्राद्ध, 9 सितंबर- सप्तमी का श्राद्ध, 10 सितंबर- अष्टमी का श्राद्ध, 11 सितंबर- नवमी का श्राद्ध, 12 सितंबर- दशमी का श्राद्ध, 13 सितंबर- एकादशी का श्राद्ध, 14 सितंबर- द्वादशी का श्राद्ध, 15 सितंबर- त्रयोदशी का श्राद्ध, 16 सितंबर- चतुर्थी