“पितृपक्षे पितर श्राद्धम कृतम येन स गया श्राद्धकृत भवेत।”
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि दो सितम्बर को है, इस दिन अगस्त्य मुनि का तर्पण करने का शास्त्रीय विधान है। इस वर्ष शुद्ध आश्विन माह का कृष्ण पक्ष अर्थात् पितृपक्ष Pitri Paksha 03 सितम्बर दिन गुरुवार से प्रारम्भ होकर गुरुवार 17 सितम्बर तक रहेगा। इस पक्ष में पितरों के निमित्त दान, तर्पण आदि श्राद्ध के रूप में श्रद्धापूर्वक अवश्य करना चाहिए।
पितृपक्ष Pitri Paksha में किया गया श्राद्ध-कर्म सांसारिक जीवन को सुखमय बनाते हुए वंश की वृद्धि भी करता है। इतना ही नहीं, श्राद्धकर्म-प्रकाश में कहा गया है कि पितृपक्ष में किया गया श्राद्ध कर्म गया-श्राद्ध के फल को प्रदान करता हैं- “पितृपक्षे पितर श्राद्धम कृतम येन स गया श्राद्धकृत भवेत।”
पितृदोष
ज्योतिषाचार्य के अनुसार, श्राद्ध न करने से पितृदोष लगता है। श्राद्धकर्म-शास्त्र में उल्लिखित है-“श्राद्धम न कुरूते मोहात तस्य रक्तम पिबन्ति ते।” अर्थात् मृत प्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे-सम्बंधियों का रक्त-पान करते हैं। उपनिषद में भी श्राद्धकर्म के महत्व पर प्रमाण मिलता है- “देवपितृकार्याभ्याम न प्रमदितव्यम …।” अर्थात् देवता एवं पितरों के कार्यों में प्रमाद (आलस्य) मनुष्य को कदापि नहीं करना चाहिए।
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तर्पण एवं श्राद्ध विधि
पितृपक्ष Pitri Paksha में पितृतर्पण एवं श्राद्ध आदि करने का विधान यह है कि सर्वप्रथम हाथ में कुशा, जौ, काला तिल, अक्षत् एवं जल लेकर संकल्प करें- “ॐ अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये।।” इसके बाद पितरों का आवाहन इस मन्त्र से करना चाहिए।
-“ब्रह्मादय:सुरा:सर्वे ऋषय:सनकादय:। आगच्छ्न्तु महाभाग ब्रह्मांड उदर वर्तिन:।।”
तत्पश्चात् इस मन्त्र mantra से पितरों को तीन अंजलि जल अवश्य दे-“ॐआगच्छ्न्तु मे पितर इमम गृहणम जलांजलिम।।” अथवा “मम (अमुक) गोत्र अस्मत पिता-उनका नाम- वसुस्वरूप तृप्यताम इदम तिलोदकम तस्मै स्वधा नम:।।”
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प्रार्थना मंत्र
पितर तर्पण के बाद गाय और बैल को हरा साग खिलाना चाहिए। तत्पश्चात पितरों की इस मन्त्र mantra से प्रार्थना करनी चाहिए- “ॐ नमो व:पितरो रसाय नमो व:पितर: शोषाय नमो व:पितरो जीवाय नमो व:पितर:स्वधायै नमो व:पितरो घोराय नमो व:पितरो मन्यवे नमो व:पितर:पितरो नमो वो गृहाण मम पूजा पितरो दत्त सतो व:सर्व पितरो नमो नम:।”
कर्म मंत्र
पितृ तर्पण के बाद सूर्यदेव को साष्टांग प्रणाम करके उन्हें अर्घ्य देना चाहिए। तत्पश्चात् भगवान वासुदेव स्वरूप पितरों को स्वयं के द्वारा किया गया श्राद्ध कर्म इस मन्त्र से अर्पित करें- “अनेन यथाशक्ति कृतेन देवऋषिमनुष्यपितृतरपण आख्य कर्म भगवान पितृस्वरूपी जनार्दन वासुदेव प्रियताम नमम। ॐ ततसद ब्रह्मा सह सर्व पितृदेव इदम श्राद्धकर्म अर्पणमस्तु।।” ॐविष्णवे नम:, ॐविष्णवे नम:, ॐविष्णवे नम:।। इसे तीन बार कहकर तर्पण कर्म की पूर्ति करना चाहिए।