Pitru Paksha 2023: सनातन धर्म में पितृ पक्ष की अवधि विशेष महत्व रखती है। इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए अर्यमा देव की पूजा की जाती है। क्या आप जानते हैं अर्यमा देव के विषय में, जिन्हें पितरों के देव के रूप में भी जाना जाता है।
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ये हैं पितरों के देव (Aryama Dev)
हिंदू धर्म में अर्यमा देव को पितरों के देव के रूप में भी जाना जाता है। यही कारण है कि पितृ पक्ष में अयर्मा देव की पूजा जरूरी मानी जाती है। अर्यमा देव ऋषि कश्यप और अदिति के 12 पुत्रों में से एक हैं। माना जाता है कि आकाश में आकाशगंगा उन्हीं के मार्ग का सूचक है।
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प्रात: और रात्रि के चक्र पर अयर्मा देव का अधिकार माना गया है। अर्यमा चंद्रमंडल में स्थित पितृलोक के सभी पितरों के अधिपति भी नियुक्त किए गए हैं। वे इस बात का ब्यौरा रखते हैं कि कौन-सा पितृ किस कुल और परिवार से है। अर्यमा देव का वर्णन शास्त्रों में भी मिलता है जो इस प्रकार है –
ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः।
ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय।।
इस श्लोक का अर्थ है कि पितरों में अर्यमा श्रेष्ठ है। अर्यमा पितरों के देव हैं। अर्यमा को प्रणाम। हे पिता, पितामह और प्रपितामह तथा हे माता, मातामह और प्रमातामह, आपको भी बारम्बार प्रणाम। आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें।
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कौन होते हैं पितृ
शास्त्रों में वर्णित है कि जिस किसी व्यक्ति के परिजन की मृत्यु हो गई हो, फिर चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष उन्हें पितर की श्रेणी में रखा जाता है। पितृ पक्ष में पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं ताकि उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सके। साथ ही यह भी माना जाता है कि विधि-विधानपूर्वक पितरों का श्राद्ध कर्म करने से व्यक्ति को पितरों का आशीर्वाद भी मिलता है जिससे उनके सभी कार्य बिना किसी बाधा के सम्पन्न होते हैं।
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क्या है महत्व
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष विशेष महत्व है। यह अवधि पितरों के लिए समर्पित मानी गई है। इस दौरान पितरों के निमित्त तर्पण, श्राद्ध कर्म और पिंडदान किए जाते हैं जिससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही पितर अपने परिजनों पर दया दृष्टि बनाए रखते हैं। पितृ पक्ष की अवधि कम-से-कम 15 दिनों की मानी गई है। इसके पीछे भी एक कारण मिलता है।
दरअसल हिंदू मान्यताओं के अनुसार यह माना गया है कि मृत्यु के बाद यमराज 15 दिनों के लिए मृतक की आत्मा को मुक्त कर देते हैं, ताकि वह अपने परिजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें और उन्हें अपना आशीर्वाद दे सकें। इसके बाद 15 दिनों पूरे होते ही पितृ अपना भाग लेकर पितृ पक्ष के अंतिम दिन यानी शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को वापस स्वर्ग लोक लौट जाते हैं। इसलिए पितृ पक्ष की अवधि 15 दिनों की मानी गई है।
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