पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके तर्पण के निमित्त श्राद्ध किया जाता है
#PitruPaksha : सनातन मान्यता के अनुसार, हमारे जो परिजन अपना शरीर त्याग दुनिया छोड़ गए हैं उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए सच्चे मन से तर्पण Tarpan किया जाता है। इसे ही श्राद्ध कहा जाता है। मान्यता है कि मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध Śraddha पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं जिससे वो स्वजनों के यहां जाकर तर्पण Tarpan ग्रहण कर सकें। धार्मिक मान्यता के अनुसार, पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके तर्पण Tarpan के निमित्त श्राद्ध Śraddha किया जाता है।
इस दौरान कुछ बातों को लेकर सावधानी बरतने की भी जरुरत है। तो चलिए पंडित से जानते हैं इन सावधानियों के बारे में…
बरतें यह सावधानियां…
- पितृपक्ष PitruPaksha में श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को पान नहीं खाना चाहिए। साथ ही दूसरे के घर पर खाना और शरीर पर तेल भी नहीं लगाना चाहिए। पूरे पितृपक्ष में ब्रह्मचार्य के व्रत का पालन करना चाहिए।
- पितृपक्ष में लोहे के बर्तनों का उपयोग नहीं करना चाहिए। इस दौरान पत्तल पर स्वयं और ब्राह्राणों को भोजन करवाना उचित माना जाता है।
- पितृपक्ष PitruPaksha में हमारे पितर किसी भी रुप में श्राद्ध Śraddha मांगने आ सकते हैं। ऐसे में हमें किसी जानवर या भिखारी का इस दौरान अनादर नहीं करना चाहिए।
- पितृपक्ष PitruPaksha में बिना पितरों को भोजन दिए खुद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। घर पर जो भोजन बने उसमें गाय, कुत्ता, बिल्ली, कौआ का हिस्सा निकालकर उन्हें खिला देना चाहिए।
- श्राद्ध में जो भोजन बनाया जाता है उसे घर की महिलाओं को नहीं खिलाना चाहिए।
- श्राद्ध Śraddha में पुरुषों को दाढ़ी मूंछ नहीं कटवाना चाहिए।
- श्राद्ध के पिंडों को गाय, ब्राह्राण और बकरी को खिलाना चाहिए।
- चतुर्दशी को श्राद्ध नहीं करना चाहिए। लेकिन जिस किसी की युद्ध में मृत्यु हुई हो उनके लिए चतुर्दशी का श्राद्ध करना शुभ रहता है।
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