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Ramadan : इस्लाम में रमज़ान (Ramzan) या रमदान (Ramadan) को बेहद पवित्र माना जाता है. यह इस्लामी कैलेंडर का नवां महीना है. रमजान को कुरान के जश्न का भी मौका माना जाता है. इस दौरान खुदा की इबादत में महीने भर रोजे रखे जाते हैं और ज़कात यानी कि दान-धर्म किया जाता है. साथ ही अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए इस महीने के गुजरने के बाद शव्वाल की पहली तारीख को ईद-उल-फितर मनाई जाती है. Ramadan
रमजान का महत्व
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इस्लाम में खुदा की इबादत के लिए रमज़ान के पाक महीने का बड़ा महत्व है. इस्लाम की मान्यता के अनुसार रमज़ान महीने की 27वीं रात शब-ए-क़द्र को क़ुरान का नुज़ूल यानी कि अवतरण हुआ.
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यही वजह है कि इस दौरान कुरान पढ़ने का विशेष महत्व है. रमजान को नेकियों का मौसम भी कहा जाता है. इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग अपनी-अपनी हैसियत के मुताबिक रमज़ान के पवित्र महीने में गरीबों और जरूरतमंदों को दान देते हैं.
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रमज़ान में ज़कात, सदक़ा, फित्रा, खैर-खैरात, गरीबों की मदद, दोस्त अहबाब में जो ज़रुरतमंद हैं उनकी मदद करना ज़रूरी माना जाता है. रमजान के दौरान खास दुआएं पढ़ी जाती हैं.
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हर दुआ का समय अलग-अलग होता है. दिन की सबसे पहली दुआ को फज्र कहते हैं, जबकि रात की खास दुआ को तारावीह कहते हैं.
क्या होते हैं रोज़े?
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रमज़ान या रमदान में इस्लाम को मानने वाले लोग रोज़ाना नमाज़ अता करने के साथ-साथ रोज़े रखते हैं. इस्लाम में रोजा को फर्ध माना गया है. फर्ध यानी कि अल्लाह के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करना.
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रोज़े के दौरान अल सुबह से लेकर शाम तक पानी की एक बूंद तक नहीं पीनी होती है.
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रोजे लगातार 30 दिनों तक चलते हैं. मान्यता है कि मोहम्मद सल्ल ने फरमाया है कि जो शख्स नमाज के रोज़े ईमान और एहतेसाब रखे उसके सब पिछले गुनाह माफ कर दिए जाएंगे.
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रोज़े खुद पर काबू रखने की तरबियत देते हैं. रमज़ान महीने के अंत में चांद के दीदार के साथ ही रोज़े खत्म हो जाते हैं और अगले दिन ईद होती है.
कैसे रखे जाते हैं रोज़े?
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रोज़ के दिन रोज़ादार को सूरज के उगने से पहले उठकर कुछ खाना होता है, जिसे सहरी कहते हैं. इसके बाद दिन भर कुछ भी खाने-पीने की मनाही होती है.
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शाम को सूरज के ढलने के बाद कुछ खाकर रोज़ा खोला जाता है, जिसे इफ्तारी कहते हैं.
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रमज़ान के महीने में रोज़ादार को इफ्तार कराने वाले के गुनाह माफ हो जाते हैं.
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मान्यता है कि पैगम्बर मोहम्मद सल्ल. से किसी ने पूछा- ‘अगर हममें से किसी के पास इतनी गुंजाइश न हो क्या करें.’ इस पर हज़रात मुहम्मद ने जवाब दिया कि एक खजूर या पानी से ही इफ्तार करा दिया जाए.
रमज़ान के दौरान रोज़ेदारों को बुरी सौहबतों से दूर रहना चाहिए. उन्हें न तो झूठ बोलना चाहिए, न पीठ पीछे किसी की बुराई करनी चाहिए और न ही लड़ाई झगड़ा करना चाहिए. इस्लामिक पैगंबरों के मुताबिक जो लोग इन बातों को मानते हैं उन्हें अल्लाह की रहमत मिलती है.
ईद-उल-फितर
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रमज़ान के महीने में 30 दिन के रोज़े के बाद जो ईद होती है उसे ईद-उल-फितर कहते हैं. इसे मीठी ईद भी कहा जाता है.
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ईद के दिन नमाज से पहले गरीबों में फित्रा बांटा जाता है. यही वजह है कि इस ईद को ईद-उल-फित्र कहा जाता है.
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इस दिन सभी रोज़ेदार नए कपड़े पहनकर मस्जिदों और ईदगाह में जाते हैं. वहां वे रमज़ान की आखिरी नमाज पढ़कर खुदा का शुक्रिया अदा करते हैं और एक दूसरे को गले मिलकर बधाई देते हैं.
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इस दिन घरों में मीठी सेवईं और तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं और इन्हें दोस्तों, परिजनों और सगे-संबंधियों में बांटा जाता हैं.
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इस दिन बड़े अपने छोटों को ईदी के तौर पर कोई तोहफ़ा या कुछ रकम भी अदा करते हैं.
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