Sam Bahadur Movie Review : फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, जिसे बहादुरी का पर्याय माना जाता है, वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध का मुख्य नायक था। महान सैन्य अधिकारी सैम मानेकशॉ का पूरा नाम होरमुसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ है।
1971 में हुए युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी। इस युद्ध के परिणामस्वरूप ही बांग्लादेश का निर्माण हुआ था। उनकी जिंदगानी पर मेघना गुलजार ने फिल्म सैम बहादुर बनाई है। फिल्म में शीर्षक भूमिका में विक्की कौशल हैं। इरादों के पक्के सैम से संबंधित कई कहानियां प्रसिद्ध हैं। हालांकि, यह फिल्म उस स्तर की नहीं बन पाई है, जिसके वह हकदार थे। Sam Bahadur Movie Review
क्या कहती है कहानी
सबसे पहले फिल्म की कहानी की बात कर लें तो ये फिल्म भारतीय सेना के फील्ड मार्शल रहे सैम मानेकशॉ की बायोपिक है, जिसमें विक्की कौशल ने लीड रोल निभाया है. इस फिल्म की कहानी को सैम मानेकशॉ की जवानी के दिनों से शुरू करते हुए, दूसरे विश्वयुद्ध से लेकर और बांग्लादेश के बनने तक के हिस्सों के साथ मानेकशॉ के फील्ड मार्शल बनने तक के सफर को दिखाया गया है. इस कहानी में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी (फातिमा सना शेख) तक कई अहम किरदारों को दिखाया गया है. आयरन लेडी कही जाने वाली इंदिरा गांधी के आगे अच्छे-अच्छे मंत्री चुप रहते थे लेकिन मानेकशॉ ऐसे ऑफिसर थे जिन्होंने इंदिरा गांधी के सामने युद्ध लड़ने के लिए साफ मना कर दिया था. सैम मानेकशॉ की पर्सनेलिटी के इस हिस्सा को फिल्म में बखूबी दिखाया गया है.
फिल्म का फर्स्ट हाफ सैम की कहानी के शुरुआती हिस्सों, दूसरे विश्वयुद्ध में उनकी लड़ाई और कुछ हद तक उनकी पर्सनल जिंदगी के हिस्सों को दिखाती है. वहीं सेकंड हाफ में कहानी में इंदिरा गांधी की एंट्री होती है और फिर कहानी में नए बदलाव और उनकी जिंदगी के आगे के हिस्सों को दिखाया गया है. फिल्म की कहानी एक बेहद लंबे समय का पर्दे पर दिखाती है. ऐसे में सभी एक्टर्स को जवानी से लेकर उनके उम्रदराज होने तक दिखाया गया है.
दिल जीत लेगा विक्की कौशल का अंदाज
फिल्म का फर्स्ट हाफ थोड़ा फ्लेट लगता है, पर सेकंड हाफ काफी इंगेजिंग है. लेकिन अपने पहले सीन से लेकर आखिरी सीन तक, विक्की कौशल पर्दे पर सैम के अवतार में इतने सटीक रहे हैं कि आप उनसे नजरें हटा नहीं पाएंगे. विक्की कौशकी चाल हो या उनका अंदाज, सेना और अपने जवानों के लिए उनके दिल में जो सम्मान है, उसे आप हर सीन में महसूस करेंगे. सैम मानेकशॉ की कहानियां और किस्से आपने खूब सुने होंगे लेकिन अगर आपने उनके बारे में कम सुना है तो इस फिल्म के जरिए विक्की कौशल आपको इस किरदार की इज्जत और उसे प्यार दोनों करने पर मजबूर कर देंगे.
एक्टिंग के मामले में ये फिल्म आपको एक बेहतरीन एक्सपीरंस देगी, लेकिन कहानी के तौर पर इसमें बहुत नया नहीं है. सेना और युद्ध की कहानियां जिस तरीके से इससे पहले बयां की गई हैं, ये कहानी भी उससे बहुत अलग नहीं है. पर ‘सैम बहादुर’ की सबसे अच्छी बात ये है कि सेना की जिंदगी, उसके तौर तरीकों के नजदीक जितना ज्यादा एक फिल्म में रहा जा सकता है, ये फिल्म उससे ज्यादा करीब होने की कोशिश करती है.
‘सैम बहादुर’ एक साधारण फिल्म है, जिसे विक्की कौशल ने अपने कंधों पर चलाकर एक असाधारण फिल्म बना दिया है. इस फिल्म को बड़े पर्दे पर जरूर देखा जाना चाहिए.
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कैसा है कलाकारों का अभिनय?
कलाकारों की बात करें तो विक्की कौशल इससे पहले सरदार उधम फिल्म में उधम सिंह की भूमिका के लिए काफी सराहना बटोर चुके हैं। उन्होंने सैम के हावभाव, चाल-ढाल और वेशभूषा को समुचित तरीके से आत्मसात किया है। अपने अभिनय से उन्होंने सैम को जीने का भरपूर प्रयास किया है, लेकिन कमजोर स्क्रीनप्ले की वजह वह संभाल नहीं पाते हैं।
कहीं-कहीं उनका उच्चारण भी एक समान नहीं रहता है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को साहस-संघर्ष का प्रतीक और करिश्माई व्यक्तित्व का धनी माना जाता है। अफसोस उनके किरदार में यह सब नजर ही नहीं आता है। उनकी भूमिका में फातिमा सना शेख बेहद कमजोर लगी हैं।
वह इंदिरा के करिश्माई व्यक्तित्व को दर्शाने में विफल साबित हुई हैं। मानेकशा की पत्नी सिल्लू की भूमिका में सान्या मल्होत्रा के हिस्से में कुछ खास नहीं हैं। जिन दृश्यों में वह नजर आई हैं, उनमें बेहद थकी हुई लगी हैं। प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले किरदार में वह तनिक भी असर नहीं छोड़तीं।
मोहम्मद जीशान अय्यूब
पाकिस्तानी जनरल याह्या खान की भूमिका में मोहम्मद जीशान अय्यूब जरूर थोड़ा प्रभावित करते हैं। बायोपिक फिल्म को बनाने के दौरान लेखक और निर्देशक सिर्फ केंद्रीय भूमिका पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इसके चलते बाकी पात्रों को समुचित रूप से विकसित नहीं कर पाते। इस वजह से कहानी प्रभावी नहीं बन पाती है।
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