इस दिन व्रत करने से समस्त कार्यों में सफलता मिलती है
सफला एकादशी (Saphala Ekadashi) का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है. इस दिन सृष्टि के रचयिता श्री हरि विष्णु की पूजा का विधान है. मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से समस्त कार्यों में सफलता मिलती है.
सफला एकादशी कब है
हिन्दू पंचांग के अनुसार पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक यह हर साल दिसंबर के महीने में आती है. इस बार सफला एकादशी 22 दिसंबर को है.
सफला एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
सफला एकादशी की तिथि: 22 दिसंबर 2019 (रविवार)
एकादशी तिथि प्रारंभ: 21 दिसंबर 2019 को शाम 5 बजकर 15 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 22 दिसंबर 2019 को दोपहर 3 बजकर 22 मिनट तक
पारण का समय: 23 दिसंबर 2019 को सुबह 7 बजकर 10 मिनट से सुबह 9 बजकर 14 मिनट तक
महत्व
हिन्दू धर्म में सफला एकादशी का बड़ा महात्म्य है और एक साल में दो सफला एकादशी मनाई जाती हैं. इस एकादशी की महत्ता ब्रहमांड पुराण में भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताई थी. पौराणिक मान्यता है कि सफला एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं.
पूजा विधि
- अगर आप एकादशी का व्रत रख रहे हैं तो दशमी यानी कि एक दिन पहले से ही व्रत के नियमों का पालन करें.
- व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- एकादशी का व्रत निर्जला होता है.
- अब घर के मंदिर में विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें.
- विष्णु की प्रतिमा को तुलसी दल, फल, फूल और नैवेद्य अर्पित करें
- अब विष्णु जी की आरती उतारें और घर के सभी सदस्यों में प्रसाद वितरित करें.
- रात के समय सोना नहीं चाहिए. भगवान का भजन-कीर्तन करना चाहिए.
- अगले दिन पारण के समय किसी ब्राह्मण या गरीब को यथाशक्ति भोजन कराए और दक्षिणा देकर विदा करें.
- इसके बाद अन्न और जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें.
इन बातों का रखें ध्यान:
- कांसे के बर्तन में भोजन न करें
- नॉन वेज, मसूर की दाल, चने व कोदों की सब्जी और शहद का सेवन न करें.
- कामवासना का त्याग करें.
- व्रत वाले दिन जुआ नहीं खेलना चाहिए.
- पान खाने और दातुन करने की मनाही है.
- जो लोग एकादशी का व्रत नहीं कर रहे हैं उन्हें भी इस दिन चावल और उससे बने पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए.
व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार चम्पावती नगरी में एक महिष्मान नाम का राजा राज्य करता था. उसके चार पुत्र थे. उन सबमें लुम्पक नामवाला बड़ा राजपुत्र महापापी था. वह पापी सदा परस्त्री और वेश्यागमन तथा दूसरे बुरे कामों में अपने पिता का धन नष्ट किया करता था. सदैव ही देवता, बाह्मण, वैष्णवों की निंदा किया करता था. जब राजा को अपने बड़े पुत्र के ऐसे कुकर्मों का पता चला तो उन्होंने उसे अपने राज्य से निकाल दिया. तब वह विचारने लगा कि कहां जाऊं? क्या करूं?
अंत में उसने चोरी करने का निश्चय किया. दिन में वह वन में रहता और रात्रि को अपने पिता की नगरी में चोरी करता तथा प्रजा को तंग करने और उन्हें मारने का कुकर्म करता. कुछ समय पश्चात सारी नगरी भयभीत हो गई. वह वन में रहकर पशु आदि को मारकर खाने लगा. नागरिक और राज्य के कर्मचारी उसे पकड़ लेते किंतु राजा के भय से छोड़ देते.
वन के एक अतिप्राचीन विशाल पीपल का वृक्ष था. लोग उसकी भगवान के समान पूजा करते थे. उसी वृक्ष के नीचे वह महापापी लुम्पक रहा करता था. इस वन को लोग देवताओं की क्रीड़ास्थली मानते थे. कुछ समय पश्चात पौष कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वह वस्त्रहीन होने के कारण शीत के चलते सारी रात्रि सो नहीं सका. उसके हाथ-पैर अकड़ गए.
सूर्योदय होते-होते वह मूर्छित हो गया. दूसरे दिन एकादशी को मध्याह्न के समय सूर्य की गर्मी पाकर उसकी मूर्छा दूर हुई. गिरता-पड़ता वह भोजन की तलाश में निकला. पशुओं को मारने में वह समर्थ नहीं था अत: पेड़ों के नीचे गिर हुए फल उठाकर वापस उसी पीपल वृक्ष के नीचे आ गया. उस समय तक भगवान सूर्य अस्त हो चुके थे. वृक्ष के नीचे फल रखकर कहने लगा- हे भगवन! अब आपके ही अर्पण है ये फल. आप ही तृप्त हो जाइए. उस रात्रि को दु:ख के कारण रात्रि को भी नींद नहीं आई.
उसके इस उपवास और जागरण से भगवान अत्यंत प्रसन्न हो गए और उसके सारे पाप नष्ट हो गए. दूसरे दिन प्रात: एक अतिसुंदर घोड़ा अनेक सुंदर वस्तुअओं से सजा हुआ उसके सामने आकर खड़ा हो गया.
उसी समय आकाशवाणी हुई कि हे राजपुत्र! श्रीनारायण की कृपा से तेरे पाप नष्ट हो गए. अब तू अपने पिता के पास जाकर राज्य प्राप्त कर. ऐसी वाणी सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और दिव्य वस्त्र धारण करके ‘भगवान आपकी जय हो’ कहकर अपने पिता के पास गया. उसके पिता ने प्रसन्न होकर उसे समस्त राज्य का भार सौंप दिया और वन का रास्ता लिया.
अत: जो मनुष्य इस परम पवित्र सफला एकादशी का व्रत करता है उसे अंत में मुक्ति मिलती है. जो नहीं करते वे पूंछ और सींगों से रहित पशुओं के समान हैं. इस सफला एकादशी के माहात्म्य को पढ़ने से अथवा श्रवण करने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है.