Satyajit Ray Death Anniversary : सत्यजीत रे (Satyajit Ray) सिनेमा जगत में सर्वश्रेष्ठ फिल्ममेकरों में से एक है। उसने अपनी फिल्मों को उसी तरह दिखाया, जैसा वह चाहता था। Satyajit Ray Death Anniversary
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वह अपनी फिल्मों को कभी नहीं बदलते थे। भले ही फिल्म बनाने में एक साल या पांच साल लगे। फिल्मों के प्रति उनके क्रोध का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक बार उन्होंने साल भर केवल एक सीन के लिए शूटिंग बंद कर दी थी।
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2 मई 1921 को कलकत्ता में जन्मे सत्यजीत रे ने विश्व-भारती विश्वविद्यालय और प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ाई की। पढ़ाई पूरी करने के बाद वह ग्राफिक डिजाइनर के रूप में काम करते रहे। उनके पास काम के साथ-साथ लेखन का भी जोश था। फुरसत के पल निकालकर वह पटकथा भी लिखा करते थे। वह शुरू से ही कलात्मक स्वभाव के रहे थे।
पहले ये काम करते थे सत्यजीत रे
फिर 1949 में प्रसिद्ध फ्रांसीसी फिल्म निर्देशक जीन रेनायर अपनी फिल्म द रिवर की शूटिंग के लिए कलकत्ता आए और उनकी मुलाकात सत्यजीत रे से हुई। सत्यजीत ने रेनायर की मदद शूटिंग की जगह ढूंढने में करवाई। फिल्मों के प्रति सत्यजीत का जज्बा देख एक बार रेनायर ने पूछ ही लिया कि क्या वह फिल्ममेकर बनना चाहते हैं। तभी उन्होंने अपनी पहली फिल्म पाथेर पांचाली (Pather Panchali) के बारे में बताया, जिसकी संक्षिप्त रूपरेखा उन्होंने पहले ही तैयार कर ली थी।
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ऐसे तैयार की पहली फिल्म
सत्यजीत रे ने अपनी पहली फिल्म की शूटिंग शुरू करने से पहले रेनायर के साथ रहना चाहा, लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाया। सत्यजीत रे को रेनायर फर्म का कला निदेशक बनाया गया, तो उन्हें लंदन जाना पड़ा। “माई एडवेंचर्स विद सत्यजित रे” के मुताबिक, लंदन यात्रा के दौरान मात्र 16 दिन में सत्यजीत रे ने फिल्म को लेकर अपना खाका तैयार कर लिया था।
सत्यजीत रे ने अपनी नोटबुक में पाथेर पांचाली बनाने का तरीका बताया था। वह चाहते थे कि उनकी फिल्म में कलाकारों को बिना मेकअप के दिखाई देना चाहिए था। फिर छह महीने बाद वह कलकत्ता वापस आया और अपनी पहली फिल्म की तैयारी करने लगे। बजट कम था, इसलिए अपने ही दोस्तों को काम पर लगाया। सुब्रत मित्रा को सिनेमैटोग्राफर, अनिल चौधरी को प्रोडक्शन कंट्रोलर और बंसी चंद्रगुप्त को कला निर्देशक बनाया गया।
गहने बेचकर बनाई पहली फिल्म
फिल्म का पूरा ढांचा तैयार हो गया, लेकिन मुश्किल आई निर्माता ढूंढने में। स्क्रिप्ट तो निर्माता को पसंद आती, लेकिन जब बात पैसे लगाने की आती तो सभी अपने हाथ पीछे कर लेते थे। हालांकि, फिल्ममेकर हार मानने को तैयार नहीं थे। उन्होंने बीमा वाले पैसे लगाए, रिश्तेदार और दोस्तों से उधार पैसे मांगे, यहां तक कि बीवी के गहने तक बेच दिए।
एक सीन के लिए साल भर रोकी शूटिंग
साल 1952 में फिल्म की शूटिंग शुरू हो गई। फिल्म में एक सीन था, जहां अपू और उसकी बहन दुर्गा काश के फूलों के खेत में ट्रेन की खोज करते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस सीन के लिए रे ने एक साल के लिए शूटिंग रोक दी थी। दरअसल, जब वह फूलों के खेत में शूटिंग करने गए तो पता चला कि मवेशियों ने पूरे खेत को खा लिया है। यह देख रे को गहरा झटका लगा। मगर उन्होंने समझौता न करने की बजाय एक साल इंतजार किया और अगले सीजन में फिर से शूटिंग की।
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तमाम मु्श्किलों के बाद जब फिल्म बनकर तैयार हुई तो शुरुआती दो हफ्ते में फिल्म की कमाई खास नहीं रही, लेकिन तीसरे हफ्ते में मूवी का बिजनेस सातवें आसमान पर पहुंच गया। फिल्म के लिए सत्यजीत रे को दुनिया भर में प्रसिद्धि मिली। 23 अप्रैल 1992 को सत्यजीत रे का निधन हो गया था।
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